रात का पहर, सुनसान स्थल और 48 घंटे की साधना... जानिए कितनी कठिन है नागा साधु बनने की प्रक्रिया, बेहद गुप्त होते हैं नियम!

महाकुंभ में नागा साधु दिगंबर विजय पुरी ने नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया को लेकर बात की. उन्होंने बताया कि तप, त्याग और आत्मानुशासन ही संत का जीवन हो जाता है. उन्होंने कहा कि रात के गहरे अंधेरे में सुनसान स्थल पर नागा साधु बनने की यात्रा शुरू होती है. 48 घंटे की कठोर साधना के साथ ही गुप्त नियमों का पालन करना होता है.

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नागा साधु दिगंबर विजय पुरी. (Photo: Aajtak) नागा साधु दिगंबर विजय पुरी. (Photo: Aajtak)

कुमार अभिषेक

  • प्रयागराज,
  • 10 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

UP News: प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत से पहले आस्था का महासागर उमड़ने लगा है. साधु-संन्यासियों की आमद महाकुंभ में रंग भर रही है, लेकिन इन सबके बीच नागा साधुओं की परंपरा और रहस्य हमेशा चर्चा का केंद्र रहते हैं. हमारी मुलाकात महाकुंभ में मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर से आए नागा साधु दिगंबर विजय पुरी से हुई, जिन्होंने अपने शरीर पर 35 किलो रुद्राक्ष धारण कर रखा है. उन्होंने नागा साधु बनने की कठिन और रहस्यमय प्रक्रिया के बारे में कई चौंकाने वाली बातें बताईं.

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दिगंबर विजय पुरी ने बताया कि नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत गुप्त और कठिन होती है. रात के सन्नाटे में जब चारों ओर गहरी शांति होती है, उस समय साधुओं को दीक्षा दी जाती है. दीक्षा का यह कार्यक्रम आधी रात को 2 से 2:30 बजे के बीच शुरू होता है और लगातार 48 घंटे तक चलता है. इस दौरान बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं होता.

नागा साधु बनने के लिए सबसे बड़ी चुनौती मन पर नियंत्रण और कामवासना से मुक्ति पाना है. विजय पुरी बताते हैं कि इस प्रक्रिया में साधुओं को आयुर्वेदिक औषधि दी जाती है, जिससे उनके मन और शरीर पर नियंत्रण पाया जा सके. पहले इस दीक्षा प्रक्रिया में शारीरिक झटके दिए जाते थे, लेकिन इससे होने वाली मौतों के चलते अब इसे आयुर्वेदिक तरीके से किया जाता है.

यह भी पढ़ें: नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया! जिस्म पर लगाए रहते हैं श्मशान की राख

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दिगंबर विजय पुरी ने बताया कि नागा साधु का जीवन पूरी तरह से परंपराओं और तप पर आधारित है. उनके अनुसार, हमारे लिए भस्म ही हमारा वस्त्र है. हम कपड़े धारण नहीं करते और यह हमारी परंपरा का हिस्सा है. मैंने अपने शरीर पर 35 किलो रुद्राक्ष धारण किया है, जो हमारे तप और आस्था का प्रतीक है.

आत्मा की बात सुनने का संदेश

कामवासना और सांसारिक इच्छाओं से मुक्ति के बारे में विजय पुरी कहते हैं कि यह सब मन का खेल है. मन बहुत चंचल होता है, लेकिन हमें आत्मा की आवाज सुननी चाहिए. नागा साधु का जीवन बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए है. नागा साधु बनने की प्रक्रिया के दौरान साधु दीक्षा स्थल पर साधना करते हैं. यह 48 घंटे की दीक्षा प्रक्रिया जीवन को बदल देती है. यह न केवल उनके लिए, बल्कि उन लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है, जो आत्मिक शांति की खोज में हैं.

महाकुंभ में नागाओं की धूनी

महाकुंभ में नागा साधुओं की उपस्थिति हमेशा आकर्षण का केंद्र होती है. उनकी तपस्या, भस्म से सजे शरीर और रहस्यमयी जीवन शैली आस्था और जिज्ञासा का संगम हैं. दिगंबर विजय पुरी जैसे साधु महाकुंभ में श्रद्धालुओं के लिए न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक संदेश भी लाते हैं. महाकुंभ में नागा साधुओं की यह रहस्यमयी परंपरा आत्मा की गहराई और तपस्या की महत्ता को समझने का अवसर देती है. उनका जीवन तप, साधना और आत्मिक शांति का प्रतीक है, जो सांसारिक इच्छाओं से परे जाकर वास्तविक मोक्ष का मार्ग दिखाता है.

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