विजयदशमी पर लखनऊ में नहीं जलाए गए मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले, जानें वजह

लखनऊ के ऐशबाग में दशहरे पर रावण दहन धूमधाम से किया गया. लेकिन मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले नहीं जलाए गए. बता दें, लखनऊ रामलीला मैदान में पिछले साल दशहरे के दिन 350 साल की परंपरा टूटी थी और रावण के साथ मेघनाद और कुम्भकर्ण का पुतला रामलीला समिति ने नहीं जलाया था. इस बार भी उनके पुतले नहीं जलाए गए.

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लखनऊ में धूमधाम से मनाया गया दशहरा. लखनऊ में धूमधाम से मनाया गया दशहरा.

सत्यम मिश्रा

  • लखनऊ,
  • 25 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 7:06 AM IST

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पूरे हर्षोल्लास के साथ विजय दशमी का पर्व मनाया गया. ऐशबाग की ऐतिहासिक रामलीला मैदान में राम लीला का मंचन किया गया. पहले मेघनाद का वध हुआ. फिर श्रीराम ने अपने शारंग नामक धनुष से रावण का वध किया. वध के साथ ही 80 फीट ऊंचे रावण के पुतले को जलाया गया. रावण के पुतले पर लिखा था "सनातन धर्म के विरोध का अंत हो".

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हालांकि पहले की ही तरह इस बार भी रावण के पुतले के साथ कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले का दहन समिति ने नहीं किया. रावण वध के समय डिप्टी सीएम बृजेश पाठक और राज्य सभा सांसद दिनेश शर्मा मौजूद रहे. रावण के पुतले के दहन से पूर्व शानदार आतिश बाजी की गई.

लखनऊ के ऐशबाग स्थित रामलीला मैदान में सुरक्षा व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए गए थे. भारी संख्या में अधिकारियों के साथ पुलिस फोर्स मौजूद थी. आरएएफ के जवानों को भी सिक्योरिटी के तौर पर तैनात किया गया था.

लेकिन इस बार भी पिछली बार की ही तरह सिर्फ रावण का 80 फीट ऊंचा पुतला ही जलाया गया. दरअसल ,इसके पीछे का कारण यह था कि जब भगवान राम के साथ रावण का युद्ध हो रहा था तो मेघनाद और कुम्भकर्ण ने रावण को समझाया था कि वो प्रभु श्रीराम हैं, साक्षात ईश्वर स्वरूप हैं और देवी सीता कोई और नहीं साक्षात जगदंबा हैं. इसीलिए रावण को उनकी शरण में तत्काल चले जाना चाहिए और युद्ध पर विराम लगा देना चाहिए. मेघनाद और कुम्भकर्ण ने सिर्फ रावण के आदेश पर श्री राम से युद्ध किया था. इसलिए रावण के साथ कुंभकरण और मेघनाथ को नहीं जलाया गया.

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गौरतलब है कि लखनऊ रामलीला मैदान में पिछली बार दशहरे के दिन 350 साल की परंपरा टूटी थी और रावण के साथ मेघनाद और कुम्भकर्ण का पुतला रामलीला समिति ने नहीं जलाया था. इस बार भी रावण के भाई और पुत्र का पुतला नहीं दहन किया गया.

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