देश मुस्लिम बाहुल्य. लेकिन हिजाब पहन कर स्कूल गईं लड़कियां तो उनकी खैर नहीं

ये ऐसा करने वाला चुनिंदा मुस्लिम बहुल देशों में शामिल है. हालांकि इस प्रतिबंध को लेकर देश में बहस अब भी जारी है. धर्म में गहरी आस्था रखने वाले माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हिजाब पहनें.

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यहां स्कूल में लड़कियां हिजाब नहीं पहन सकतीं (प्रतीकात्मक तस्वीर- Pexels) यहां स्कूल में लड़कियां हिजाब नहीं पहन सकतीं (प्रतीकात्मक तस्वीर- Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:17 PM IST

दुनिया के लगभग सभी मुस्लिम देशों में महिलाएं हिजाब पहनती हैं. ईरान में तो इसकी अनिवार्यता ऐसी है कि अगर कोई महिला हिजाब न पहने, तो उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है. हाल में यहां से कई दर्दनाक मामले भी सामने आए. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक मुस्लिम बहुल देश ऐसा भी है,जिसने स्कूली छात्राओं के लिए हिजाब पर प्रतिबंध लगा दिया है.

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ये ऐसा करने वाला चुनिंदा मुस्लिम बाहुल्य देशों में शामिल है. हालांकि इस प्रतिबंध को लेकर देश में बहस अब भी जारी है. धर्म में गहरी आस्था रखने वाले माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे हिजाब पहनें.

इस देश का नाम कजाखस्तान है. यहां 2016 में लगी पाबंदी को कुछ लोग हटाने की मांग करते हैं. तब देश के शिक्षा मंत्रालय ने एक निर्देश जारी किया था. जिसमें कहा गया कि 'स्कूल की वर्दी के साथ किसी भी तरह के धार्मिक पहचान वाले कपड़े पहनने की मंजूरी नहीं है.

बेशक देश की सरकार इस्लाम को लेकर प्रतिबद्धता दिखाती है. लेकिन वो सोवियत संघ के वक्त से चले आ रहे धर्म पर नियंत्रण को कमजोर भी पड़ने देने को तैयार नहीं है.

इस देश की आबादी की बात करें, तो साल 2022 की जनगणना के मुताबिक कजाखस्तान में मुस्लिमों की आबादी सबसे ज्यादा है. यहां रहने वाले 69 फीसदी लोग मुस्लिम हैं.

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हालांकि कई अध्ययन बताते हैं कि देश में एक तिहाई लोग ही धर्म का सख्ती से पालन करते हैं. ये संवैधानिक तौर पर एक धर्मनिरपेक्ष देश है.

हालांकि राष्ट्रपति कासिम जोमार्त तोकायेव इस्लाम को लेकर प्रतिबद्धता दिखाते हैं. वो 2022 में मक्का गए थे. साथ ही रमजान पर सरकारी अधिकारियों और मशहूर हस्तियों के लिए अपने घर पर इफ्तार पार्टी रखी थी.

नियम न मानने वाली छात्राओं के माता-पिता पर जुर्माना लग जाता है. जिसके कारण कई छात्राएं या तो विरोध ही करती रह जाती हैं, या वो स्कूल आना बंद कर देती हैं.

सरकार इस मामले में देश के धर्मनिरपेक्ष होने पर ही जोर देती है. राष्ट्रपति तोकायेव ने बीते अक्टूबर को कहा था, 'हमें सबसे पहले इस बात को याद रखना चाहिए कि स्कूल एक शैक्षिक संस्थान है, जहां बच्चे शिक्षा लेने आते हैं.

मेरा ऐसा मानना है कि जब बच्चे बडे़ हो जाएं और उनका दुनिया देखने का अपना नजरिया हो, वो तब अपनी पसंद नापसंद तय करें.'

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