हमास ने इजरायल पर 7 अक्टूबर की सुबह अचानक हमला करने के बाद यहां बड़े स्तर पर हत्याओं को अंजाम दिया. लोगों के घरों में उनकी हत्या की. पूरे के पूरे परिवार खत्म कर दिए. यहां तक कि नाबालिग बच्चों और बुजुर्गों तक को नहीं बख्शा. आतंकियों ने सड़कों से गुजर रही गाड़ियों में बैठे लोगों को भी मारा. वो आसपास आयोजित फेस्टिवल और पार्टियों में भी गए और वहां भी उन्होंने लाशें बिछा दीं. साथ ही 150 से ज्यादा लोगों को आतंकी अगवा कर अपने साथ गाजा ले गए. अब इजरायली सेना घर घर जाकर लोगों के शव बरामद कर रही है. इस दौरान जो मंजर देखने को मिल रहा है, वो हर किसी को अंदर तक झकझोर रहा है.
इन शवों को बॉडी बैग्स में डाला जा रहा है. दरअसल हमास ने 20 मिनट में 5000 रॉकेट दागने का दावा किया था. इसके बाद इसके आतंकी दक्षिणी इजरायल में घुसे. यहां इन्होंने बर्बरता की सभी हदें पार कर दीं. सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक किबुत्ज है. यहां के बे'एरी में सेना और पुलिस अपना काम कर रहे हैं. इनके साथ मौजूद एक अधिकारी ने बताया कि ये सब उनके लिए कितना मुश्किल हो रहा है. अधिकारी ने बताया कि हमला 'अंदर का काम था.' उन्हें जीवित बची एक महिला ने बताया है कि बीते दो साल में हमास के आतंकियों को किबुत्जिम पर काम करने के लिए गाजा छोड़ने की अनुमति दी गई थी. वो उन्हें पहले से जानती है. उसका मानना है कि आतंकी कर्मचारी के तौर पर पहले इलाके की रेकी करने आए थे.
मिरर यूके की रिपोर्ट के अनुसार, बे'एरी सेटलमेंट में वयस्कों, बच्चों और नवजातों की हत्या की गई है. युवा सैनिक भी ये सब देखकर सकते में हैं. खासतौर पर वो जो पहली बार इस तरह के हालात देख रहे हैं. हमले के बाद से अभी तक शव बरामद किए जाने का काम पूरा नहीं हुआ है. कुछ हमास के आतंकियों के शव भी मिले. इस इलाके में ही 30 आतंकियों के शव मिले हैं. रिपोर्ट के मुताबिक यहां रहने वाला हर 10वां शख्स आतंकियों के हाथों मारा गया है. अगर पुलिस वक्त पर न आती और अपनी जान की बाजी लगाकर आतंकियों से न लड़ती, तो ये आंकड़ा और बड़ा हो सकता था.
रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नल गोलन वाल्च कहते हैं, 'जब हमने हमले के बारे में सुना, तो मैं 110 मील प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ी चलाकर आया. पुलिस अपनी मोटरसाइकिल से मेरे आगे निकल गई. कुछ के पास बंदूकें थीं और कुछ के पास नहीं. वो हमारे नागरिकों को बचाने के लिए तेज गति में उन्हें चला रहे थे. लेकिन दुख की बात है कि जब तक हम यहां पहुंचे, वो सभी पुलिस अफसर मर चुके थे, यहीं उनके शव पड़े थे. जो बिना हथियारों के आए वो भी लड़े. उन्होंने आतंकियों से उनकी बंदूकें छीनीं और बहादुरी के साथ इन लोगों के लिए लड़े. और क्या आपको पता है? जैसी उनसे उम्मीद थी उन्होंने वैसा ही किया, वो लड़े और लोगों की रक्षा की.'
इजरायल नेशनल रिसर्च एंड रेस्क्यू यूनिट के कर्नल ने आगे बताया कि हमले में जीवित बची एक महिला ने उन्हें बताया कि वो कुछ हत्यारों को पहले से जानती है. ये पहले किबुत्ज में ही काम करने आए थे. उसने दावा किया कि ये लोग एक कर्मचारी के तौर पर आए थे और उन जगहों पर नजर रख रहे थे, जहां लोग रहते थे और उनके घर-दुकाने हैं. हमले के बाद आतंकी घरों को लूटने के लिए भी आए. वो अपने साथ जितना कुछ ले जा सकते थे लेकर गए. उन्हें कैसे पता था कि कहां क्या मिलेगा? इसका मतलब वो यहां पहले भी आए थे.
कर्नल ने आगे कहा, 'मैंने सेना में सेवाएं दी हैं, लेबनान और दूसरी जगह. मैं 17 साल तक एक कॉम्बेट अफसर रहा और मैंने कई भयानक चीजें देखी हैं. मैंने यहां जो देखा, वो कभी कोई इंसान न देखे. मैंने यहां जो देखा वो अपमान था, बुजुर्ग मृत पड़े थे, हाथ बंधे हुए थे... उन्हें मार डाला गया था. एक बच्चे का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था. मैंने न केवल हमास द्वारा एक बच्चे का सिर धड़ से अलग देखा, बल्कि मैंने उसे अपने हाथों में भी पकड़ा. यही कारण है कि इस इलाके को इन लोगों से मुक्त कराए जाने की जरूरत है.'
Shilpa