दिल्ली-NCR की हवा जब 'जहरीली' हो जाती है और AQI का स्तर 400 के पार पहुंच जाता है, तो लोग राहत की तलाश में घरों में एयर प्यूरीफायर चलाने के बजाय सीधे पहाड़ों की राह पकड़ लेते हैं. लेकिन इस बार पहाड़ों पर जो मंजर दिखा, उसने सबको हैरान कर दिया है. प्रदूषण से बचने की यह होड़ अब उन शांत वादियों के लिए 'दमघोंटू' साबित हो रही है.
रोहतांग का हाल किसी व्यस्त मेट्रो शहर के चौराहे जैसा दिखने लगता है. रोहतांग में अक्सर बर्फबारी या सीजन के दौरान घंटों लंबा जाम लगता रहा है. सिर्फ रोहतांग ही नहीं, दिल्ली के नजदीक होने के कारण मसूरी और नैनीताल जैसे हिल स्टेशनों का भी यही हाल है.
वीकेंड पर मसूरी की माल रोड और 'जीरो पॉइंट' तक जाने वाले रास्तों पर गाड़ियों की लंबी कतारें लगती हैं. पहाड़ों की रानी मसूरी, जो कभी अपनी शांति के लिए जानी जाती थी, अब वहां भी दिल्ली जैसा शोर और गाड़ियों का धुआं नजर आने लगा है. साफ हवा की उम्मीद में आए लोग अब खुद ही उन वादियों का दम घोंट रहे हैं.
राहत की तलाश या प्रकृति पर दबाव?
दिल्ली के खतरनाक AQI से बचने के लिए लोग पहाड़ों की ओर तो भाग रहे हैं, लेकिन वहां पहुंचकर वे उसी समस्या का हिस्सा बन रहे हैं जिससे वे दूर भागे थे. रोहतांग और मसूरी जैसे नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र वाले इलाकों पर गाड़ियों का यह बोझ पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है.
लगातार दो महीने से पहाड़ों की ओर पलायन इस साल दिल्ली-NCR के हालात पिछले सालों की तुलना में कहीं अधिक चिंताजनक रहे हैं. दो महीनों से दिल्ली की हवा 'गंभीर' श्रेणी में बनी हुई है, जिससे राहत की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही. हवा में घुली इस कड़वाहट के कारण लोग अपने घरों में कैद होने को मजबूर थे, लेकिन धैर्य जवाब देने लगा और बड़ी संख्या में लोगों ने पहाड़ों का रुख करना शुरू कर दिया इस पलायन का नतीजा यह हुआ कि जो भीड़ साल में एक-दो बार छुट्टियों में दिखती थी, वह अब हर सप्ताहांत पहाड़ों की ओर उमड़ रही है.य शिमला से लेकर मनाली तक की सड़कें अब दिल्ली के रिंग रोड जैसी नजर आने लगी हैं, जहां ताजी हवा के बदले केवल डीजल-पेट्रोल का धुआं ही मिल रहा है.
गाड़ियों के भारी बोझ और सड़कों पर बेतहाशा भीड़ के कारण संकरे पहाड़ी रास्तों पर भूस्खलन और गाड़ियों के अनियंत्रित होने की घटनाएं बढ़ी हैं. रोहतांग और मसूरी जैसे इलाकों का नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र इस दबाव को झेलने में असमर्थ हो रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि प्रदूषण से बचने की यह 'अंधी दौड़' न केवल पर्यावरण को स्थायी नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि अनियोजित पर्यटन के कारण हादसों के खतरे को भी कई गुना बढ़ा रही है.
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