दिल्ली-NCR ही नहीं, इन शहरों की हवा भी है 'साइलेंट किलर', अब कहां मनाएं छुट्टियां

सर्दियों की शुरुआत होते ही उत्तर भारत के कई शहरों में AQI खतरे के निशान के पार पहुंच गया है. दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, बल्कि यूपी और बिहार के कई बड़े इलाकों की हवा भी अब जानलेवा हो चुकी है.

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फेफड़ों पर वार करने वाला 'धीमा जहर' (Photo: PTI) फेफड़ों पर वार करने वाला 'धीमा जहर' (Photo: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 16 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST

उत्तर भारत में सर्दियों का आगमन तो हो गया है, लेकिन अफसोस कि इस बार भी छुट्टियां मनाने निकले लोगों को ताजी ठंडी हवाओं की जगह 'जहरीली धुंध' नसीब हो रही है. भारत के आसमान पर अब एक 'साइलेंट किलर' का कब्जा हो चुका है, जो दिखता तो कोहरे जैसा है, पर चुपके से आपके फेफड़ों पर वार कर रहा है.

अगर आप यह सोचकर मुस्कुरा रहे हैं कि आप दिल्ली-एनसीआर से दूर किसी दूसरे शहर में घूमने जा रहे हैं, तो जरा ठहरिए! यह आपकी सबसे बड़ी गलतफहमी हो सकती है. हकीकत यह है कि अब देश के कई नामी पर्यटन स्थलों और बड़े शहरों की हवा भी उतनी ही ख़राब हो चुकी है. साफ हवा का एक कतरा ढूंढने के लिए भी आपको अपनी ट्रैवल लिस्ट को दोबारा जांचने की जरूरत पड़ेगी.

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गाजियाबाद की उड़ती धूल हो या पटना की गलियों का काला धुआं, देश के कई शहर अब जहरीली धुंध वाले इलाकों में बदल चुके हैं. इन शहरों में सांस लेना अब सेहत के लिए वरदान नहीं, बल्कि बीमारियों को खुला न्योता देने जैसा हो गया है. आलम ये है कि बाहर निकलना तो आफत है ही, अब घर के अंदर भी चैन की सांस लेना मुश्किल हो गया है. ऐसा लगता है मानो हम सभी किसी अदृश्य कैद में जी रहे हैं. जहरीली हवा से जूझ रहे उन शहरों पर एक नजर डालते हैं, जहां वातावरण खतरे के निशान को पार कर जानलेवा स्तर पर पहुंच गई है.  

समंदर किनारे भी 'दमघोंटू' हुई हवा

कभी मुंबई अपनी समुद्री हवा के लिए जानी जाती थी, लेकिन अब यहां भी प्रदूषण का पहरा है. मायानगरी में इन दिनों आसमान नीला नहीं, बल्कि मटमैला और धुंधला दिखता है. शहर में जगह-जगह चल रहे कंस्ट्रक्शन और सड़कों पर घंटों लगे रहने वाले ट्रैफिक जाम ने हवा को जहरीला बना दिया है. यही वजह है कि लोगों की आंखों में जलन और गले में खराश अब आम बात हो गई है. समंदर के किनारे भी अब साफ हवा की जगह धुंध नजर आती है.

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गार्डन सिटी बेंगलुरु पर छाई धूल की परत

बेंगलुरु के लोग अब सिर्फ घंटों लंबे ट्रैफिक जाम से नहीं, बल्कि हवा में घुले जहर से भी परेशान हैं. शहर में पुरानी इमारतों के टूटने और नई बिल्डिंग्स के बनने से उड़ने वाले सीमेंट के कण सांसों के जरिए सीधे फेफड़ों पर अटैक कर रहे हैं. आलम ये है कि लोग अब मॉर्निंग वॉक पर जाने से डर रहे हैं और घर से काम (Work from Home) को प्राथमिकता दे रहे हैं.

यूपी के बड़े शहरों पर प्रदूषण का साया

नवाबों के शहर लखनऊ में भी अब खुली हवा में सांस लेना सपना जैसा हो गया है. वाहनों की संख्या और सड़कों के किनारे जलने वाला कूड़ा यहां की हवा को प्रदूषित कर रहा है. वहीं औद्योगिक शहर कानपुर की कहानी तो रसायनों और धूल के बीच उलझी हुई है. यहां के चमड़ा कारखानों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं सर्दियों में हवा में इस कदर जम जाता है कि सामने की सड़कों पर देखना भी मुश्किल हो जाता है. इतना ही नहीं धार्मिक और आध्यात्मिक नगरी वाराणसी भी अब प्रदूषण की मार से अछूती नहीं है. भारी ट्रैफिक और गलियों में पुराने वाहनों का दबाव यहां की फिजा बिगाड़ रहा है. अपनी खूबसूरती और गंगा आरती के लिए मशहूर इस शहर की हवा में अब रसायनों की गंध घुलने लगी है. यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) अक्सर खतरे के निशान को पार कर जाता है, जो स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों के लिए चिंता का विषय है.

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पटना से मुजफ्फरपुर तक धूल का गुबार

प्रदूषण अब सिर्फ महानगरों तक सीमित नहीं रहा, बिहार के पटना और मुजफ्फरपुर जैसे शहर भी इसकी चपेट में हैं. पटना में संकरी गलियां और धूल मिट्टी हवा को भारी बना देती हैं, वहीं मुजफ्फरपुर जैसे छोटे शहर में खराब कचरा प्रबंधन और ईंट भट्टों का धुआं फेफड़ों के लिए आफत बन गया है.

फरीदाबाद में फैक्ट्रियों की छाया

फरीदाबाद जैसे औद्योगिक इलाकों में सुबह की शुरुआत साफ धूप से नहीं, बल्कि फैक्ट्रियों और गाड़ियों से उठते घने काले धुएं के साथ होती है. दिन चढ़ने के साथ हवा और भारी हो जाती है, जिससे आंखों में जलन, सांस लेने में परेशानी और गले में खराश आम बात बन गई है.

जो कि साफ इशारा करते हैं कि प्रदूषण अब सिर्फ दिल्ली की परेशानी नहीं रहा. देश के कई शहर उसी खतरनाक मोड़ पर खड़े हैं, जहां अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो साफ हवा केवल एक सपना बनकर रह जाएगी.

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