लोकसभा चुनाव में भले ही ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी परंपरागत सीट पर बीजेपी से मात खा गए थे, लेकिन 13 महीने के बाद उसी भाजपा के कंधे पर सवार होकर राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंच गए हैं. मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार की सत्ता से विदाई और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की वापसी में सिंधिया ने अहम भूमिका अदा की थी. सिंधिया समर्थकों ने उन्हें मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाने की मांग उठानी शुरू कर दी है. ऐसे में अब देखना है कि केंद्र में मंत्री के तौर पर सिंधिया की ताजपोशी उपचुनाव से पहले ही होगी या फिर बाद में?
कोरोना संकट के चलते मार्च में होने वाले राज्यसभा चुनाव टाल दिए गए थे. इसी के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के केंद्र में मंत्री बनने का प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में चल गया है. राज्यसभा चुनाव के जरिए सिंधिया बीजेपी नेता के तौर पर संसद पहुंच गए हैं. सिंधिया के संसद में एंट्री के साथ ही उनके सर्मथक पूर्व विधायकों ने उन्हें मोदी सरकार में मंत्री बनाने की मांग शुरू कर दी है.
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ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक पूर्व विधायक सुरेश धाकड़ ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि महाराजा सांसद बनने के बाद अब जल्द ही केंद्र में मंत्री भी बनेंगे. हमें उम्मीद है कि अगस्त के पहले सप्ताह में मंत्री के तौर पर उनकी ताजपोशी हो जाएगी. सिंधिया के केंद्र में मंत्री बनने से उपचुनाव की सभी 24 सीटों पर बीजेपी को फायदा मिलेगा. बता दें कि सिंधिया के साथ सुरेश धाकड़ ने भी कांग्रेस के साथ विधायकी पद से भी इस्तीफा दे दिया था.
वहीं, पूर्व विधायक ओपीएस भदोरिया ने भी मांग उठाते हुए कहा कि मोदी सरकार जल्द ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए ताकि मध्य प्रदेश के उपचुनाव में बीजेपी को राजनीतिक तौर पर फायदा पहुंचा सके. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि केंद्र सरकार इस दिशा में जल्द ही कदम उठाएगी. मध्य प्रदेश के चंबल और ग्वालियर इलाके के नेता ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश की जनता भी महाराज को मंत्री के तौर पर देखना चाहती है. उन्हें सिर्फ मंत्री ही नहीं बल्कि भारी अहम विभाग भी दिया जाए ताकि मध्य प्रदेश में वो विकास की इबारत लिख सकें.
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सितंबर में मध्य प्रदेश की 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने की संभावना हैं. दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मार्च में कांग्रेस के 22 विधायकों ने इस्तीफे देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था. इसके चलते ही राज्य की सत्ता से कमलनाथ सरकार को बाहर होना पड़ा था. इसके बाद ही शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही थी. इसके अलावा दो सीटें पहले से ही रिक्त हैं.
मध्य प्रदेश की जिन 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं है, उनमें से 16 सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल इलाके की है. इसके अलावा मालवा में भी जिन पांच सीटों पर उपचुनाव है वहां पर सिंधिया का अच्छा खासा सियासी दखल है. इस तरह से सिंधिया के लिए उपचुनाव अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. एक तरफ अपने सर्मथक विधायकों को जीत दिलवाने की चुनौती है तो दूसरी तरफ उपचुनाव में सभी सीटों पर जीत का परचम फहराकर शिवराज सरकार के भविष्य को सुरक्षित करने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर है.
कुबूल अहमद