ब्रिटेन से मिल रहे संकेतों पर गौर करें तो एलेक्जेंडर बोरिस दे फेफेल जॉनसन देश के नए प्रधानमंत्री बन सकते हैं. इंग्लैंड में वे बोरिस जॉनसन के नाम से जाने जाते हैं. पीएम पद का ओहदा संभालने के बाद बोरिस जॉनसन जब 10 डाउनिंग स्ट्रीट में प्रवेश करेंगे, तो उनके सामने फौरी तौर पर सिर्फ और सिर्फ एक चुनौती होगी. ये चुनौती होगी-ब्रेग्जिट (Brexit). पिछले महीने बोरिस जॉनसन ने कहा था कि 31 अक्टूबर तक हम अपने प्लान को हर हाल में अमलीजामा पहनाएंगे, डू ऑर डाई, चाहे जो कुछ भी हो.
ब्रिटेन की सरकार को इस साल 31 अक्टूबर तक यूरोपियन यूनियन से अलग होने की प्रक्रिया पूरी करनी है. इतने कम समय में बोरिस जॉनसन को वह काम करना है जो आने वाले सालों में ब्रिटेन की आर्थिक स्वतंत्रता और कूटनीतिक ताकत को तय करेगा. निश्चित रूप से उनके सामने चुनौतियां अपार है और वक्त कम, लेकिन ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा प्राप्त बोरिस जॉनसन को इस डील को सुलझा लेने का भरोसा है.
बदल सकते हैं आर्थिक हालात
बोरिस जॉनसन यूरोपियन यूनियन से बिना डील बाहर निकलना चाहते हैं, लेकिन जॉनसन का ये फैसला ब्रिटिश इकोनॉमी के लिए जोर का झटका साबित हो सकता है. इस फैसले के बाद ब्रिटेन एक झटके में दुनिया की एक शक्तिशाली आर्थिक संगठन से बाहर हो जाएगा. दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था में शुमार ब्रिटेन पर इसका व्यापक असर पड़ेगा. इसका अप्रत्यक्ष असर वर्ल्ड इकोनॉमी पर भी पड़ सकता है. दुनिया जॉनसन को अपने देश को ये बताना होगा कि इसके बाद पैदा होने वाले आर्थिक हालात से निपटने का उनका क्या प्लान है. ब्रिटेन के कई छोटे उद्योग धंधे इस आकस्मिक चुनौती से निपटने को तैयार नहीं हैं. उन्हें अबतक उम्मीद है कि सरकार ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होने देगी. आलोचक कहते हैं कि अगर बोरिस जॉनसन ऐसा कोई कदम उठाते हैं तो दुनिया में आर्थिक सत्ता के तौर पर लंदन की स्थिति कमजोर होगी.
कंजरवेटिव पार्टी में घोर विरोध
बाहरी मोर्चों पर चुनौतियों के अलावा बोरिस जॉनसन को अपनी पार्टी में भी विरोध झेलना पड़ रहा है. बोरिस जॉनसन अगर बिना ट्रांजिसन समझौते के ब्रेग्जिट से बाहर होते हैं तो वित्त मंत्री फिलिफ हैमंड और न्याय मंत्री डेविड गौक ने इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है. दोनों मंत्रियों ने कहा है कि इससे पहले कि जॉनसन उन्हें पद से हटा दें, वे खुद बाहर होना पसंद करेंगे. अभी जब बातचीत की प्रक्रिया जारी ही है तो कंजरवेटिव पार्टी के दो जूनियर मंत्री पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं.
नए कैबिनेट में मुकम्मल चेहरे की तलाश
पीएम बनते ही बोरिस जॉनसन के सामने अपना नया कैबिनेट गठन करने की चुनौती होगी. इस कैबिनेट में मौजूद मंत्रियों का बायोडाटा इस बात का सिग्नल होगा कि बोरिस जॉनसन कैसी सरकार चलाने वाले हैं. इसका संदेश मतदाताओं, यूरोपियन यूनियन तक जाएगा.
बोरिस जॉनसन के सामने बड़ी चुनौती अपना चांसलर (Chief financial minister) और ब्रेग्जिट विभाग का मुखिया चुनने की होगी. इससे पहले तो ब्रिटेन की सिविल सोसायटीज और मीडिया चर्चा तो ये थी कि ब्रेग्जिट विभाग को बनना ही नहीं चाहिए था और इसे 10 डाउनिंग स्ट्रीट से पीएम को खुद चलाना चाहिए था, लेकिन पिछली सरकार ने ने ब्रेग्जिट विभाग का गठन किया था.
ब्रेग्जिट विभाग के मुखिया का चयन यूरोपियन यूनियन के साथ बातचीत का लहजा तय कर देने वाला है. चांसलर के रूप में बोरिस जॉनसन को एक ऐसे शख्स की जरूरत है जो बजट बनाने की जिम्मेदारी ले सके, जनता के सामने सरकार का पक्ष मजबूती से रख सके, साथ ही इन धारणाओं को भी ध्वस्त कर सके कि अगर ब्रिटेन बिना डील के ईयू से बाहर आता है तो आर्थिक मंदी आ सकती है.
EU वार्ताकारों के के लिए योग्य नौकरशाह की तलाश
थेरेसा मे के प्रधानमंत्री काल में नौकरशाह ओली रॉबिन्सन ईयू टीम के साथ ब्रिटेन की बातचीत का नेतृत्व कर रहे थे. अब जबकि बोरिस जॉनसन थेरेसा मे की डील को खारिज कर चुके हैं, उन्हें इस टीम का नेतृत्व करने के लिए एक नए चेहरे की तलाश है.
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