अगर गौतम गंभीर ने 'कामसूत्र' लिखा होता, तो हर पेज भारतीय बल्लेबाजों की अलग-अलग 'पोजीशन' के बारे में होता. गंभीर को बदलाव बहुत पसंद है और यही उनकी रणनीति का मुख्य हिस्सा है. टीम में चीजों को रोचक बनाने के लिए वह लगातार बल्लेबाजों की पोजीशन, संयोजन और खिलाड़ियों को बदलते रहते हैं. अगर टीम के बोर्डरूम में हो रहीं गतिविधियां कोई खेल होतीं, तो गंभीर इसमें जीतते... लेकिन अफसोस, उनकी यह कल्पना टीम को उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं दे पा रही.
गंभीर के आने के बाद भारतीय बल्लेबाजी एक करौसेल (घूमता हुआ चक्र) जैसी हो गई है. यशस्वी जयसवाल को छोड़कर लगभग हर बल्लेबाज का क्रम बार-बार बदलता रहा है. उदाहरण के लिए, साई सुदर्शन ने नंबर 3 पर 87 और 39 रन बनाए, फिर भी उन्हें बाहर कर दिया गया. उनके स्थान पर वॉशिंगटन सुंदर आए, जिन्होंने पहले टेस्ट में 29 और 31 रन बनाए, लेकिन उन्हें भी नीचे कर दिया गया. फिर सुदर्शन को वापस मौका मिला. इसी तरह खिलाड़ियों का लगातार चक्र चलता रहा.
गंभीर की टीम में स्थिरता बहुत कम है. बल्लेबाजों को उनके प्राकृतिक स्थानों से हटाकर नए रोल में डाल दिया जाता है. यह कोई चुनौती नहीं, बल्कि अधीरता और प्रयोग की वजह से होता है. कई खिलाड़ी टेस्ट स्क्वॉड में शामिल हुए और जल्दी ही बाहर कर दिए गए (या बेंच पर भेजे गए), जैसे- सरफराज खान, करुण नायर, देवदत्त पडिक्कल, अभिमन्यु ईश्वरन, नारायण जगदीशन, अंशुल कम्बोज, अर्शदीप सिंह और आकाश दीप. रिटायर हुए खिलाड़ी जैसे रोहित शर्मा, विराट कोहली और रविचंद्रन अश्विन भी इसमें शामिल हैं. ODI और T20 में भी यही स्थिति है, जहां खिलाड़ी आते-जाते रहते हैं.
भारतीय क्रिकेट का नेतृत्व भी हठीला नजर आता है. महान खिलाड़ी रिटायर होने के बाद कमेंटेटर बन जाते हैं, औसत खिलाड़ी कोच बन जाते हैं और बाकी चयनकर्ता बन जाते हैं. लेकिन ज्यादातर लोग सही जगह पर नहीं हैं. अपने पद को साबित करने के लिए, चयनकर्ता लगातार नई चीजें आजमाते रहते हैं, जिससे पोजीशन और संयोजन बार-बार बदलते रहते हैं.
इस तरह के बदलाव का असर पहले ही दिख रहा है. भारत अब घर में लगातार दूसरी हार की ओर बढ़ रहा है. विपक्षी गेंदबाज पिच का पूरा फायदा उठा रहे हैं. गंभीर की रणनीति से भारतीय टेस्ट क्रिकेट, खिलाड़ियों की लय और फैन्स की उम्मीदें कमजोर हो रही हैं. ऑलराउंडरों का चयन जो गेंदबाजी में कम उपयोग होते हैं, विशेषज्ञों की भूमिका कमजोर कर रहा है. जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज को अनजानी परिस्थितियों में मेहनत करनी पड़ रही है. अगर गंभीर अपनी नीति नहीं बदलते, तो तेज गेंदबाजों का भविष्य खतरे में है.
कई लोग गंभीर युग की तुलना ग्रेग चैपल के समय से करते हैं. चैपल ने भी टीम में बदलाव किए थे, लेकिन उनकी गलतियों का आरोप कप्तान और वरिष्ठ खिलाड़ियों पर गया. गंभीर को ऐसा कोई विरोध नहीं मिला. उनकी गलतियां सीधे ही उनकी जिम्मेदारी हैं. उन्होंने भारतीय टीम को एक करौसेल बना दिया और पारंपरिक ज्ञान को नजरअंदाज किया.
अगर कामसूत्र का उद्देश्य सुख पाने के लिए अलग-अलग पोजीशन को आजमाना था, तो गंभीर का संस्करण लगता है कि टीम को उलझन और दर्द में डालने के लिए बनाया गया है. उनके खिलाड़ी हर मैच में नई भूमिकाओं में घुसते, मुड़ते और उलझते हैं, लेकिन उन्हें न तो लय मिलती है, न तालमेल... और निश्चित रूप से कोई संतोषजनक परिणाम भी नहीं मिलता.
इसलिए, भारतीय क्रिकेट अब मैच के बाद खुशी या उत्साह में नहीं, बल्कि अजीब चुप्पी में फंसी है. यह सोचते हुए कि अगली बार उन्हें किस पोजीशन में खेलना होगा.
(संदीपन शर्मा, हमारे अतिथि लेखक. क्रिकेट, सिनेमा, संगीत और राजनीति पर लिखना पसंद करते हैं. उनका मानना है कि ये सभी आपस में जुड़े हैं.)
संदीपन शर्मा