जब निर्भया जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, तो देश के लोग राजनीतिक संबंद्धता की परवाह किए बिना सड़कों पर उतर आए थे. इस हादसे ने जनता में बदलाव की उम्मीद जगी थी कि शायद समाज की व्यवस्थाओं और तरीकों में सुधार होगा. लेकिन समय के साथ यह खयाल टूट गया क्योंकि व्यवस्था और तरीकों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया. हालाँकि राजनीतिक हुकूमत ने खबरों के चक्र को अपनी मर्जी से नियंत्रित करना शुरू कर दिया है.