भारत का सबसे एडवांस मौसम सैटेलाइट INSAT-3DS 17 फरवरी 2024 की शाम पांच बजकर 35 मिनट पर लॉन्च किया जाएगा. लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर (SDSC-SHAR) के दूसरे लॉन्च पैड से जीएसएलवी-एफ14 (GSLV-F14) रॉकेट से होगी. आप इस शानदार नजारे को चार जगहों पर लाइव देख सकते हैं...
ISRO की वेबसाइट... isro.gov.in
फेसबुक... facebook.com/ISRO/
यूट्यूब... youtube.com/watch?v=jynmNenneFk
या फिर DD National TV चैनल पर.
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इस बार की लॉन्चिंग में खास क्या है?
इस लॉन्चिंग में तीन बड़ी उपलब्धियां हासिल होने वाली हैं. यह GSLV रॉकेट की 16वीं उड़ान है. स्वदेशी क्रायो स्टेज की 10वीं उड़ान है. यह स्वदेशी क्रायो स्टेज की सातवीं ऑपरेशनल फ्लाइट होगी. इस सैटेलाइट का मुख्य उद्देश्य जमीन, समंदर, मौसम और इमरजेंसी सिग्नल सिस्टम की जानकारी देना है. इसके अलावा यह राहत एवं बचाव कार्यों में मदद करेगा.
18 मिनट में पहुंच जाएगा तय ऑर्बिट में...
GSLV-F14 रॉकेट इनसैट-3डीएस सैटेलाइट को लॉन्चिंग के करीब 18 मिनट बाद उसकी तय कक्षा में पहुंचा देगा. यह सैटेलाइट 170 km पेरीजी और 36647 km एपोजी वाली अंडाकार जीटीओ कक्षा में चक्कर लगाएगा. सैटेलाइट का कुल वजन 2274 किलोग्राम है. इस सैटेलाइट को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) ने फंडिंग की है. इस सैटेलाइट में 6 चैनल इमेजर हौं. 19 चैनल साउंडर मेटियोरोलॉजी पेलोड्स मौजूद हैं.
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सातवां सैटेलाइट लॉन्च होने जा रहा है
इनसैट-3 सीरीज के सैटेलाइट में छह अलग-अलग प्रकार के जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स है. सातवां सैटेलाइट कल लॉन्च होने जा रहा है. इनसैट सीरीज के पहले की सभी सैटेलाइट्स को साल 2000 से 2004 के बीच लॉन्च किया गया था. जिससे संचार, टीवी ब्रॉडकास्ट और मौसम संबंधी जानकारियां मिल रही थीं. इन सैटेलाइट्स में 3ए, 3डी और 3डी प्राइम सैटेलाइट्स के पास मौसम संबंधी यंत्र लगे हैं.
मौसम की सटीक जानकारी जरूरी
ये सभी यंत्र भारत और उसके आसपास होने वाले मौसमी बदलावों की सटीक और समय से पहले जानकारी देते हैं. इनमें से हर एक सैटेलाइट ने भारत और उसके आसपास के इलाकों में संचार और मौसम संबंधी तकनीकों को विकसित करने में मदद की है. इन सैटेलाइट्स का संचालन इसरो के साथ-साथ भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) करता है. ताकि लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के आने से पहले ही जानकारी दी जा सके. उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके.
आजतक साइंस डेस्क