Nirjala Ekadashi 2025: कैसे निर्जला एकादशी का नाम पड़ा भीमसेनी एकादशी? जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

Nirjala Ekadashi 2025: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ही निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस एक व्रत को करने से सालभर की सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है. इस दिन बिना अन्न और जल ग्रहण किए व्रत रखने का विशेष नियम है, इसलिए इसे निर्जला कहा जाता है.

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निर्जला एकादशी 2025 निर्जला एकादशी 2025

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2025,
  • अपडेटेड 8:23 AM IST

Nirjala Ekadashi 2025: सनातन धर्म में निर्जला एकादशी को पुण्यदायी एकादशी माना जाता है. निर्जला एकादशी का दूसरा नाम भीमसेनी एकादशी भी है क्योंकि भीम ने भी यह व्रत किया था. हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को ही निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि इस एक व्रत को करने से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है. इस दिन बिना अन्न और जल ग्रहण किए व्रत रखने का विशेष नियम है, इसलिए इसे 'निर्जला' कहा जाता है. निर्जला एकादशी को लेकर एक भीम से जुड़ी एक कथा भी प्रसिद्ध है कि क्यों इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा? चलिए जानते हैं कि इससे जुड़ी रोचक कथा.

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कैसे पड़ा निर्जला एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी?

पद्म पुराण के उत्तरखंड में इससे जुड़ी पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार पांडवों ने महर्षि वेदव्यास से पूछा कि एकादशी व्रत का पालन कैसे करें और इसके क्या लाभ हैं. तब व्यास जी ने कहा कि साल में 24 एकादशियां आती हैं और सभी एकादशी का विशेष महत्व है. प्रत्येक व्रत करने से पाप नष्ट होते हैं और पुण्य फल की प्राप्ति होती है.

यह सुनकर भीमसेन ने चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा, मैं बहुत बलशाली हूं, लेकिन भोजन के बिना रहना मेरे लिए असंभव है. मैं सभी नियमों का पालन कर सकता हूं पर उपवास नहीं कर पाता. क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मैं एक ही दिन व्रत करूं और साल भर की सभी एकादशियों का फल मिल जाए? तब महर्षि वेदव्यास ने कहा, “हे भीम! तुम्हारे लिए एक ही उपाय है कि तुम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को उपवास करो, जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है. इस दिन अन्न और जल का त्याग कर भगवान विष्णु की पूजा करने से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है. 

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इस व्रत में बिना जल ग्रहण किए उपवास करना अनिवार्य है, इसलिए इसे ‘निर्जला’ कहा जाता है. यह व्रत कठिन जरूर है, लेकिन इसके फल अपार हैं. यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष प्रदान करता है. भीमसेन ने व्यास जी की बात मानते हुए निर्जला एकादशी का कठोर व्रत किया. उन्होंने दिनभर न तो जल पिया और न ही अन्न ग्रहण किया. अंत में भगवान विष्णु की कृपा से भीम को अक्षय पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति हुई. कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है और विष्णु लोक की प्राप्ति होती है.  

निर्जला एकादशी पूजन विधि (Nirjala Ekadashi Pujan Vidhi)

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगा जल या साफ पानी से स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें. फिर, भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लें. उसके बाद घर में पूजा स्थान को साफ करें और वहां भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें. पीले कपड़े में मौली बांधकर तांबे या पीतल का कलश रखें, उसमें जल, सुपारी, अक्षत, एक सिक्का और आम का पत्ता डालें. इसके बाद पीले फूल, तुलसी के पत्ते, धूप, दीप, चंदन, अक्षत और फल, मिठाई भगवान विष्णु को अर्पित करें. फिर, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप जरूर करें. 

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