Dhanteras 2025: क्यों तोड़ा था भगवान गणेश ने कुबेर देवता का घमंड? जानें धन के देवता की अद्भुत कथा

Dhanteras 2025: इस बार 18 अक्टूबर को धनतेरस का त्योहार मनाया जाएगा. पंचांग के मुताबिक, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. लेकिन क्या आपको पता कि एक बार भगवान गणेश ने कुबेर देवता का घमंड तोड़ा था. चलिए जानते हैं कि इससे जुड़ी कथा के बारे में.

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भगवान गणेश ने तोड़ा था कुबेर देवता का अहंकार (Photo: AI Generated) भगवान गणेश ने तोड़ा था कुबेर देवता का अहंकार (Photo: AI Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST

Dhanteras 2025: 18 अक्टूबर को पूरे देश में धनतेरस का पर्व मनाया जाएगा. इस दिन धन- समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है. साथ ही, इस दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि की भी उपासना की जाती है. हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है. कहते हैं कि इस दिन कुबेर देवता की पूजा-उपासना करने से जीवन में सुख-समृद्धि और धनधान्य की प्राप्ति भी होती है. लेकिन, क्या आपको पता है कि भगवान गणेश और महादेव ने मिलकर कुबेर देवता का घमंड तोड़ा था. तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान गणेश ने कुबेर देवता का घमंड चूर चूर किया था.

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भगवान गणेश ने तोड़ा था कुबेर देवता का अहंकार

स्कंद और पद्म पुराण की कथा के अनुसार, बहुत पुराने समय पहले की बात है. धन के देवता कुबेर के पास अपार सोना-चांदी और ऐश्वर्य था. चारों ओर उनकी समृद्धि की चर्चा थी, लेकिन इतने वैभव के बाद भी उनका अहंकार बढ़ता ही जा रहा था. एक दिन उन्होंने सोचा कि क्यों ना भगवान शिव को भी अपने महल बुलाकर अपने वैभव और ऐश्वर्य का प्रदर्शन किया जाए.

वे कैलाश पर्वत पहुंचे और भगवान शिव को अपने घर भोजन का निमंत्रण देने लगे. शिव जी मुस्कराए और बोले- 'मैं तो नहीं आ पाऊंगा, पर मेरा पुत्र गणेश तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार करेगा.' कुबेर यह सोचकर प्रसन्न हुए कि चलो पिता नहीं तो पुत्र ही सही, किसी के सामने को वैभव का प्रदर्शन किया जा सकता है. अगले दिन गणेश जी अपने वाहन मूषक पर सवार होकर कुबेर देवता के महल पहुंचें. कुबेर देवता ने उनका स्वागत किया और अपने स्वर्ण महल का भ्रमण कराने की इच्छा जताई. गणेश जी ने हंसते हुए कहा- 'मैं लंका देखने नहीं, भोजन करने आया हूं. जल्दी भोजन लगवाइए, मुझे बहुत भूख लगी है.'

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कुबेर देवता ने तुरंत भोजन परोसा, लेकिन गणेश जी की भूख तो जैसे बढ़ती ही चली गई. देखते ही देखते उन्होंने सारा भोजन खा लिया, उसके बाद ओर खाने की मांग करने लगे. महल का सारा भंडार खाली हो गया, फिर भी गणेश जी की भूख शांत नहीं हुई. अंत में थककर कुबेर देवता ने हाथ जोड़ लिए और बोले- 'भगवान, अब मेरे पास भोजन नहीं बचा.' तब गणेश जी ने कहा- 'जिसे एक अतिथि को भी तृप्त करना न आए, वह अपने धन पर घमंड करने योग्य नहीं है.' यह सुनकर कुबेर देवता को अपनी गलती का एहसास हुआ. वे गणेश जी के चरणों में गिर पड़े और क्षमा मांगी. गणेश जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा- 'धन का गर्व कभी मत करना, वरना यही अहंकार विनाश का कारण बनता है.'  

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