Antim Sanskar: काशी यानी वाराणसी को मोक्ष देने वाली नगरी कहा जाता है. यहां गंगा के किनारे स्थित मणिकर्णिका घाट पर सदियों से लगातार अंतिम संस्कार होते आए हैं. यह वो महाश्मशान है, जहां राजा हरिशचंद्र के समय से लेकर आज तक चिताओं की अग्नि कभी नहीं बुझी है. हाल ही में यही घाट एक अनोखी और रहस्यमय परंपरा की वजह से सोशल मीडिया पर चर्चा में बना हुआ है कि क्यों चिता की राख पर 94 अंक लिखा जाता है.
मान्यतानुसार, मणिकर्णिका घाट पर जब भी किसी का दाह संस्कार पूरा होता है और चिता ठंडी पड़ जाती है, तब राख को गंगा में प्रवाहित करने से पहले कई पुजारी या स्थानीय लोग उस राख पर 94 अंक लिख देते हैं. घाट के आसपास रहने वालों के लिए यह आम बात है, लेकिन जो लोग पहली बार ये देखते हैं, वे इसे काफी रहस्यमय समझते हैं.
94 अंक का क्या मतलब है?
स्थानीय लोगों के अनुसार, यह परंपरा गीता और प्राचीन मान्यताओं पर आधारित है. कहा जाता है कि मृत्यु के बाद मनुष्य का मन पांचों इंद्रियों को अपने साथ ले जाता है. मन को जोड़कर यह संख्या कुल छह हो जाती है. हिंदू दर्शन में मनुष्य के जीवन को 100 कर्मों का फल माना गया है. इनमें से 94 कर्म ऐसे होते हैं, जिन पर मनुष्य का नियंत्रण होता है- जैसे उसके नैतिक, सामाजिक, धार्मिक और व्यवहारिक कर्म. ये ही उसके जीवन की दिशा तय करते हैं. बाकी 6 कर्म जीवन, मृत्यु, यश, अपयश, लाभ और हानि ये सभी ईश्वर के हाथ में माने जाते हैं और मनुष्य उन्हें बदल नहीं सकता है.
94 अंक का वैज्ञानिक रहस्य
दाह संस्कार के समय चिता की अग्नि को इन 94 नियंत्रित कर्मों को प्रतीकात्मक रूप से समाप्त करने वाला माना जाता है. इसी कारण राख पर 94 लिखा जाता है. यह इस बात का संकेत होता है कि व्यक्ति अपने सांसारिक कर्मों और बंधनों से मुक्त हो चुका है. शेष 6 कर्म अब ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिए जाते हैं.
कुछ विद्वान तो 94 को एक मुक्ति-संकेत या मोक्ष का प्रतीक भी मानते हैं. अंतिम क्रिया में पुजारी जब पानी से भरी मटकी फोड़ते हैं, तो यह मृतक के दुनिया से संबंध टूटने का इशारा होता है. काशी के लोग इसे मृतक के लिए एक मौन संदेश की तरह देखते हैं, 'तुमसे इस जन्म में जो हुआ वो तुमने कर लिया. अब बाकी ईश्वर पर छोड़ दो.' भगवद्गीता जैसे ग्रंथों में भी मृत्यु के बाद मन और इंद्रियों की यात्रा का उल्लेख मिलता है, जो इस परंपरा को और दृढ़ आधार देता है.
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