झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है. असम में स्थित मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा में स्थित मां का छिन्नमस्तिका मंदिर है.
कहा जाता है कि इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है. मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.
रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका के मंदिर को आस्था का धरोहर भी माना जाता है. यहां साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, लेकिन शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र के समय यहां भक्तों की संख्या दोगुनी हो जाती है.
क्या है इस रूप की कथा- माता द्वारा सिर काटने के पीछे एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि एक बार मां भवानी अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं थीं. उस दौरान स्नान करने के बाद उनकी सहेलियों को तेज भूख लगी और वे भूख से बेहाल होने लगी. भूख की वजह से उनकी सहेलियों का रंग काला पड़ने लगा था.
इसके बाद उन दोनों ने माता से भोजन देने के लिए कहा, लेकिन माता ने जवाब में कहा कि वे थोड़ा सब्र और इंतजार करें. लेकिन उनको भूख इतनी ज्यादा लगी थी कि वे भूख से तड़पने लगीं. जिसके बाद मां भवानी ने खड्ग से अपना सिर काट दिया.
कहा जाता है कि सिर काटने के बाद माता का कटा हुआ सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा और उसमें से खून की तीन धाराएं बहने लगीं. माता ने सिर से निकली उन दो धाराओं को अपनी दोनों सहेलियों की ओर बहा दिया. बाकी को खुद पीने लगीं. तभी से मां के इस रूप को छिन्नमस्तिका नाम से पूजा जाने लगा.