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धर्म

मिलाद-उन-नबी: जानें-क्यों नहीं मिलती पैगंबर मोहम्मद की कोई तस्वीर

प्रज्ञा बाजपेयी
  • 21 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 7:11 AM IST
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ईद-ए-मिलाद-उन-नबी इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन मनाया जाता है. यह दिन पैगंबर मोहम्मद के जन्म की खुशी में मनाया जाता है. आइए ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के मौके पर जानते हैं पैगंबर मोहम्मद के जन्म से जुड़ीं खास बातें.

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पैगंबर मोहम्मद का जन्म अरब के रेगिस्तान के शहर मक्का में 570 ईस्वी में हुआ था. पैगंबर साहब के जन्म से पहले ही उनके पिता का निधन हो चुका था. जब वह 6 वर्ष के थे तो उनकी मां की भी मृत्यु हो गई. मां के निधन के बाद पैगंबर मोहम्मद अपने चाचा अब्बू तालिब और दादा अबू मुतालिब के साथ रहने लगे. इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था.

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पैगंबर की पत्नी आयशा के मुताबिक, पैगंबर घर के कामों में भी मदद करते थे. घर के काम करने के बाद वह प्रार्थना के लिए बाहर जाते थे. कहा जाता है कि वह बकरियों का दूध भी दुहते थे और अपने कपड़े भी खुद धुलते थे.

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पैगंबर मोहम्मद मूर्ति पूजा या किसी भी चित्र की पूजा के खिलाफ थे. यही वजह है कि उनकी कहीं भी तस्वीर या मूर्ति नहीं मिलती है.

बताया जाता है कि पैगंबर मोहम्मद ने कहा था कि जो भी उनकी तस्वीर बनाएगा, उसे अल्लाह सजा देगा.

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पैगंबर मोहम्मद इस्लाम के सबसे महान नबी और आखिरी पैगंबर माने जाते हैं. कुरान के मुताबिक, एक रात जब वह पर्वत की एक गुफा में ध्यान कर रहे थे तो फरिश्ते जिब्राइल आए और उन्हें कुरान की शिक्षा दी.

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मोहम्मद की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि मक्का में प्रभावशाली लोगों को खतरा महसूस होने लग गया. सन् 622 में मोहम्मद को अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना कूच करना पड़ा. उनके इस सफर को हिजरत कहा गया. इसी वर्ष इस्लामिक कैलेंडर हिजरी की भी शुरुआत हुई.

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मदीना के लोग आपसी लड़ाइयों से परेशान थे और मोहम्मद साहब के संदेशों ने उन्हें वहां बहुत लोकप्रिय बना दिया. उस समय मदीना में तीन महत्वपूर्ण यहूदी कबीले थे.

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10 वर्षों के भीतर मोहम्मद के बड़ी संख्या में अनुयायी हो चुके थे और तब उन्होंने मक्का लौटकर विजय हासिल की. मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया गया. सन् 632 में हजरत मुहम्मद साहब का देहांत हो गया पर उनकी मृत्यु तक लगभग पूरा अरब इस्लाम कबूल कर चुका था.

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