Vastu Tips: क्यों हिंदू धर्म के लोग दक्षिणावर्त दिशा में करते हैं आरती? जानें क्या कहता है शास्त्र

Vastu Tips: आरती केवल पूजा का एक हिस्सा नहीं, बल्कि यह ब्रह्मांड से संबंधित माना जाता है. वहीं, जब भी आरती की जाती है तो वह दक्षिणावर्त यानी घड़ी की दिशा की ओर जाती है. तो आइए जानते हैं उसके पीछे का कारण.

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दक्षिणावर्त दिशा (घड़ी की दिशा) में क्यों की जाती है आरती (Photo: Pexels) दक्षिणावर्त दिशा (घड़ी की दिशा) में क्यों की जाती है आरती (Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:09 AM IST

Vastu Tips: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और अनुष्ठानों की अपनी ही गहरी मान्यता है और उन्हीं परंपराओं में से एक है आरती करना. जब भी किसी देवी-देवता की पूजा की जाती है, तो अंत में दीपक या कपूर जलाकर आरती करने का विधान है. जिसके बाद मंत्रोच्चारण के साथ जलती हुए दीपक को देवी-देवता के सामने घुमाया जाता है.

लेकिन, इस अनुष्ठान की खास बात यह है कि आरती हमेशा दक्षिणावर्त मतलब घड़ी की दिशा में की जाती है. यह कोई संयोग नहीं है, बल्कि एक गहरी धार्मिक मान्यता से जुड़ा हुआ नियम है, जिसका पालन सदियों से किया जा रहा है. तो आइए आज हम आपको इसी अनुष्ठान से जुड़े कुछ कारणों से परिचित करवाते हैं. 

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आरती का है ब्रह्मांड की गति से संबंध

आरती को घड़ी की दिशा में यानी दक्षिणावर्त घुमाना सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक अर्थ छिपा है. यह दिशा ब्रह्मांड की प्राकृतिक गति का प्रतीक मानी जाती है. जब हम दीपक को इस दिशा में घुमाते हैं, तो यह भगवान के प्रति हमारी श्रद्धा को दर्शाता है. इसके अलावा, यह दक्षिणावर्त गति उसी दिशा से भी संबंधित होती है, जिसमें सूर्य आकाश में पूर्व से पश्चिम की ओर चलता दिखाई देता है. इसलिए, आरती की थाली उसी दिशा में घुमाई जाती है.

आरती है समर्पण का प्रतीक

कहा जाता है कि जब हम आरती को दक्षिणावर्त दिशा (घड़ी की दिशा) में घुमाते हैं, तो उसका हर चक्कर ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक माना जाता है. आरती करते समय जैसे-जैसे हाथ नीचे की ओर जाता है, वैसे वैसे भक्त का मन, शरीर, हृदय और आत्मा सब कुछ भगवान को अर्पित हो जाता है. आरती का हर चक्कर मन से अहंकार, चिंता और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है.  

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आरती से है प्रदक्षिणा का संबंध

शास्त्रों के अनुसार, मंदिरों में या किसी देवता के चारों ओर घूमने की परंपरा को प्रदक्षिणा या परिक्रमा कहा जाता है. माना जाता है कि आरती करते समय जब हम दीपक को दक्षिणावर्त यानी घड़ी की दिशा की ओर घुमाते हैं, तो वह भी एक तरह की परिक्रमा ही है. इस अनुष्ठान का मतलब होता है कि भक्त के मन में ईश्वर का स्थान बहुत ही विशेष है. ध्यान रहे कि आरती करते समय हमेशा भगवान दाईं ओर ही स्थापित होने चाहिए ताकि दक्षिणावर्त दिशा में आरती की जा सके. ऐसा भी माना जाता है कि आरती की थाली में जलती लौ सिर्फ रोशनी नहीं देती, बल्कि वह लौ जीवन से अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करती है. इसलिए, शास्त्रों में रोजाना आरती करने का विधान बताया गया है. 

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