Christmas 2025: क्रिसमस ईसाई धर्म का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है, जो कि हर साल 25 दिसंबर को बड़ी धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है. क्रिसमस के इस मौके पर चर्च और जगहों-जगहों पर रंग-बिरंगी लाइटिंग और खूबसूरत सजावट देखने को मिलती है. ऐसी मान्यता है कि इसी दिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था. इसी कारण हर साल 25 दिसंबर को दुनिया भर में क्रिसमस बड़ी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह दिन इस बात की याद भी दिलाता है कि हमें ईसा मसीह के बताए गए रास्ते पर चलना चाहिए.
समय-समय पर विभिन्न धर्मों और महापुरुषों ने भी ईसा मसीह की शिक्षा पर अपने विचार रखे. इन्हीं में से एक हैं स्वामी विवेकानंद, जिन्होंने सन् 1900 में अमेरिका के लॉस एंजेलिस में दिए गए अपने एक ऐतिहासिक भाषण में ईसा मसीह को ''क्राइस्ट, द मैसेंजर'' कहकर मानवता का महान मार्गदर्शक बताया था. लॉस एंजेलिस शहर में दिए गए इस भाषण में स्वामी विवेकानंद ने ईसा मसीह के जीवन और उनके संदेशों को बड़ी गहराई से समझाया था.
स्वामी विवेकानंद के मुताबिक, ईसा मसीह ईश्वर के दूत थे, जिनका जन्म लोगों को आध्यात्मिक सत्य का रास्ता दिखाने के लिए हुआ था. उनके अनुसार, ईसा मसीह किसी नए धर्म की स्थापना के लिए नहीं आए थे, बल्कि उनका उद्देश्य मानव चेतना को बदलना था ताकि लोग सच्चाई के मार्ग पर चलें. विवेकानंद ने कहा था कि ईसा का संदेश केवल विचारों या कर्मकांडों तक सीमित नहीं था, बल्कि उसे जीवन में उतारना ही उनका असली अर्थ समझना है.
आगे विवेकानंद ने कहा था कि, 'ईसा मसीह की शिक्षा का मूल आधार था अहंकार व लालच का त्याग. ईसा ने हमेशा पैसा, सत्ता और घमंड से दूर रहने की बात कही थी. 'मैं' और 'मेरा' की भावना को छोड़ना ही उनकी खास शिक्षा थी.' विवेकानंद ने ईसा मसीह से प्रेरित होकर एक बात यह भी कही थी कि त्याग संसार छोड़ने का नाम नहीं, बल्कि आत्मा को बंधनों से मुक्त होने का मार्ग है. लोगों से प्रेम करना, दुश्मनों को क्षमा करना और गरीबों की सेवा करना, ये सभी ईसा मसीह के संदेश का व्यावहारिक रूप रहे हैं. उनके जीवन से यह साफ झलकता था कि सच्चा धर्म दूसरों के लिए जीने में है, चाहे उसके लिए कितने भी कष्ट या यातनाएं ही क्यों न सहनी पड़ें.'
ईसा मसीह और ईसाई धर्म में क्या है अंतर?
विवेकानंद ने ईसा मसीह की उस शिक्षा पर भी विशेष जोर दिया था जिसमें वे कहते थे कि ईश्वर हर इंसान के अंदर हैं. ईसा ने इस सत्य को स्वयं अनुभव किया था और दूसरों को भी उसी अनुभव तक पहुंचाने की कोशिश की थी. आगे विवेकानंद ने बताया कि यह अनुभूति केवल ईसा तक सीमित नहीं, बल्कि हर व्यक्ति इसे पा सकता है.
इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद ने ईसा मसीह और ईसाई धर्म के बीच एक अंतर भी बताया था. उन्होंने ईसा के प्रति गहरी श्रद्धा प्रकट की, लेकिन धर्म संस्थाओं की उस प्रवृत्ति की आलोचना की, जिसमें ईसा के संदेश को कठोर नियमों और धारणाओं में बांध दिया गया. विवेकानंद का कहना था कि ईसा ने कभी नफरत या भेदभाव की शिक्षा नहीं दी थी. उन्होंने लोगों को हमेशा समझाया था कि ईश्वर के नाम पर नहीं बल्कि उनके गुणों जैसे करुणा और विनम्रता को अपने जीवन में अपनाओ.
स्वामी विवेकानंद का ईसा मसीह के प्रति आदरभाव
आगे विवेकानंद ने अपने भाषण में कहा था कि अगर मैं नासरत के यीशु के दिनों में होता तो मैं अपने आंसुओं से नहीं बल्कि अपने दिल के खून से उनके पैर धोता. अगर मुझे यीशु की आराधना करनी है तो उनकी शिक्षा को जीवन में उतारना ही सच्ची आराधना है. मुझे उन लोगों पर दया आती है, जो ईसा मसीह के चरित्र में सुंदरता को नहीं देखते हैं.
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