ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने बुधवार को लोकसभा चुनाव 2024 के लिए अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया. टीएमसी ने अपने मेनिफेस्टो में जो वादे किए हैं उनके बारे में उन्होंने पहले ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे. वह चुनाव प्रचार के दौरान कहती रही हैं कि केंद्र में सरकार बनने पर CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) को रद्द कर देंगी. साथ NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) पर तो उनकी नाराजगी जगजाहिर रही है. तृणमूल कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लागू नहीं करने का वादा भी किया है. टीएमसी का मेनिफेस्टो रिलीज करते हुए पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि इंडिया ब्लॉक के हिस्से के रूप में केंद्र में तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनने पर ये वादे पूरे किए जाएंगे. 19 अप्रैल को पश्चिम बंगाल के कूचबिहार, अलीपुरद्वार और जलपाईगुड़ी में मतदान होना है. पर टीएमसी की यह रणनीति बंगाल में बीजेपी को हराना ही नहीं है बल्कि उससे आगे की राजनीति है. आइये समझते हैं कि सीएए और यूसीसी पर उनका स्टैंड किस तरह उनकी दूर की रणनीति का हिस्सा हो सकता है.
क्या राहुल गांधी की जगह लेने की तैयारी है
राहुल गांधी सीएए पर बोलने से बचते रहे हैं. केरल में सीपीएम राहुल गांधी और कांग्रेस के पीछे इसलिए ही पड़ी हुई है. सीपीएम का कहना है कि राहुल गांधी ने अपनी न्याय यात्रा के दौरान कभी भी सीएए के खिलाफ स्टैंड लेते हुए कुछ नहीं बोला. केरल के सीएम विजयन तो यहां तक कहते हैं कि हमने केरल विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव भी पास किया पर राहुल गांधी या कांग्रेस ने राजस्थान या छत्तीसगढ़ आदि जब उनका शासन था तो भी ऐसा कुछ नहीं किया.विजयन कहते हैं कि सीएए के खिलाफ आंदोलन में जिन आंदोलनकारियों पर एफआईआर दर्ज हुई थी उनकी सरकार ने उन्हें वापस ले लिया पर कांग्रेस सरकारों ने ऐसा नहीं किया.दरअसल कांग्रेस शुरू से ही सीएए के खिलाफ कुछ बोलने को तैयार नहीं थी. अपने घोषणापत्र में भी कांग्रेस ने ऐसा कुछ नही किया जिससे यह लगे कि वो सीएए के खिलाफ है. ममता बनर्जी चाहती हैं कि सीएए का विरोध करके वो पैन इंडिया लेवल पर राहुल गांधी की जगह ले सकें .इंडिया गुट में कई मुद्दों पर ममता बनर्जी का साथ देने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी सीएए को लेकर काफी मुखर रहे हैं.
यही हाल यूसीसी को लेकर भी है. ममता बनर्जी ने यूसीसी कानून नहीं बनने देने का वादा किया है. यहीं नहीं उनकी विचारों से लगता है कि वो अलग पर्सनल लॉ भी ला सकती हैं. देश में सीएए और यूसीसी का सबसे अधिक विरोध अल्पसंख्यक समुदाय कर रहा है.जाहिर है कि ममता बनर्जी के इस स्टैंड से पूरे देश के मुसलमानों में उनकी पहुंच और तगड़ी हो सकेगी. जिस तरह इन दोनों मुद्दों पर कांग्रेस पर्दा डालती रही है उससे यही लगता है कि मौका पड़ने पर देश का मुसलमान कांग्रेस की बजाय टीएमसी को सपोर्ट करेगा.
ममता बनर्जी की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा से कोई इनकार नहीं कर सकता
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी को बुरी तरह परास्त करने के बाद अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को कई बार दिखाया था. एक बार तो उन्होंने बनारस से चुनाव लड़ने की भी बात कर दी थी. चुनाव जीतने के कुछ दिनों बाद ही तृणमूल कांग्रेस ने अपने मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ में लिखा था कि वह देश भर में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए अपनी पार्टी का विस्तार करेगी. बाद में ममता बनर्जी वैसा किया भी. गोवा से लेकर दिल्ली-हरियाणा यूपी में बहुत से नेताओं को टीएमसी अपने खेमें में लायी. उस दौर में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस पार्टी का ही हुआ. दिल्ली में कीर्ति आजाद और हरियाणा में अशोक तंवर (अब बीजेपी में हैं) भी पार्टी में लाए गए. उत्तर प्रदेश और गोवा में भी तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस में सेंधमारी की. बाद में कुछ पारिवारिक संकटों के चलते उन्होंने विस्तार की रणनीति त्याग दी थी. इंडिया गठबंधन के बैठकों में उन्होंने जिस तरह का रवैया अपनाया वह उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा का ही नमूना था.
क्या कांग्रेस से राज्य में गठबंधन में नहीं करने के पीछे यही रणनीति काम कर रही थी
जिस तरह इंडिया गठबंधन में शामिल होने के बाद भी ममता बनर्जी ने राज्य में कांग्रेस से गठबंधन से दूरी बनाई वह भी इस बात को बल देता है कि ममता बनर्जी की नजर राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जगह लेने की है. यह सामान्य सी बात है कि अगर टीएमसी ने बंगाल में कांग्रेस से सीट शेयरिंग की होतीं तो बीजेपी को रोकने में उन्हें तगड़ी सहायता मिली होती. कांग्रेस भले ही कमजोर हो पर उसकी उपस्थिति बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. 2019 के लोकसभा चुनावों में जो पार्टी वोट शेयरिंग में केवल 2.7 प्रतिशत वोट से ही पीछे रह रही हो उसे अकेले चुनाव लड़ने में जरा भी डर नहीं है. बीजेपी ने 2019 में जहां40.6 परसेंट वोट हासिल किया था वहीं TMC 43.3 परसेंट वोट पाने में कामयाब हुई थी.
2019 लोकसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि पश्चिम बंगाल की कम से कम 3 सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस को वोट इतना जरूर है जो कि TMC और कांग्रेस के अलग लड़ने की दशा में बीजेपी को फायदा पहुंचा सकती हैं. रा्ज्य की मालदा उत्तर , जंगीपुर और मुर्शिदाबाद सीट पर कांग्रेस को मिलने वाले वोट निर्णायक हैं. टीएमसी यह जानते हुए भी कि कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने से कुछ सीटें जीतने में उन्हें फायदा हो सकता है ,इसके बावजूद उन्होंने दूरी बना ली. मतलब साफ है कि उनके लक्ष्य बहुत दूर के हैं. टीएमसी नहीं चाहती है कि कांग्रेस के साथ किसी भी तरीके का संबंध बनाया जाए जो आगे चलकर मुसीबत बने.
बीजेपी से एकदम अलग स्टैंड लेने वाली इकलौती पार्टी बन रही है टीएमसी
भारत में आमतौर पर कम्युनिस्ट पार्टियों को अगर छोड़ दिया जाए तो सभी पार्टियों के घोषणापत्र एक जैसे ही रहते रहे हैं. कम्युनिस्ट पार्टियां अब देश की राजनीति में मेन स्ट्रीम में कभी नहीं आ सकीं. बीजेपी और कांग्रेस इस समय देश की नंबर एक और नंबर दो पार्टियां हैं. पर दोनों के मैनिफेस्टो में उस तरह का अंतर नहीं देखने को मिला है जिस तरह का अंतर बीजेपी और टीएमसी में देखने को मिल रहा है. अगर पश्चिम बंगाल में टीएमसी को अच्छी खासी संख्या में सीट मिलती हैं और बीजेपी पूर्ण बहुमत पाने में असफल रहती है तो इसमें कोई 2 राय नहीं कि ममता बनर्जी देश में राहुल गांधी पर भारी पड़ेंगी. फिलहाल उन्होंने देश में ऐसी शुरूआत कर दी है जैसी यूके और यूएस में द्विदलीय प्रणालियों में होता है. दोनों दल मेनिफेस्टो के लेवल पर एक दूसरे से अलग ध्रुव पर होते हैं.
संयम श्रीवास्तव