एक चुनावी किस्सा है. ये किस्सा अक्सर याद आ ही जाता है. ये किस्सा बलिया में हुए किसी चुनाव के दौरान का है. आम चुनाव ही. किस्सा भले ही काल्पनिक लगे, लेकिन हकीकत से दूर नहीं. उस चुनाव में दो उम्मीदवारों के बीच कांटे की टक्कर थी. दोनों में उन्नीस-बीस का ही फर्क माना जा रहा था. उस चुनाव में एक उम्मीदवार ने रिश्ते की उसी भावना के आधार पर अपनी रणनीति बनाई. और सुनते हैं, वो उम्मीदवार चुनाव भी जीत गया.
कुछ दिनों से उस उम्मीदवार के कार्यकर्ता हर जगह से पॉजिटिव फीडबैक दे रहे थे, सिवाय एक बस्ती के. मालूम हुआ कि उस बस्ती के लोगों की जीत हार में निर्णायक भूमिका हो सकती है. परेशानी यह थी कि प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार का बस्ती के लोगों पर खास प्रभाव था.
इस चुनौती से सामना कर रहे उम्मीदवार ने निजी तौर पर बस्ती के बुजुर्गों को अलग अलग तरीके से समझाने की तमाम कोशिशें की, लेकिन वे मुंह पर ही बोल देते कि वे पहले से ही तय कर चुके हैं कि वोट किसे देना है. तभी सलाहकारों से विचार विमर्श में एक उपाय सूझा.
हार की आशंका से जूझ रहे उम्मीदवार ने कहा, 'हम दोनों में एक समझौता हुआ है. और, अब आप लोगों को पूरा वोट उनको ही देना है, लेकिन थोड़ा सा हमें भी देना है.'
लोगों को बात ठीक लगी. बोले, इसमें कौन सी बात है. ये तो हो ही जाएगा. आप बेफिक्र रहें. काम हो जाएगा. उधर, लोगों का पसंदीदा उम्मीदवार निश्चिंत होकर घर बैठ गया. जिन इलाकों के लोगों पर कम यकीन था, कार्यकर्ताओं को भेज दिया.
उम्मीदवार ने आगे बताया, बैलट पेपर पर आप लोगों को मुहर पहले उसी उम्मीदवार के चुनाव निशान पर लगानी है, जो आप सभी का पसंदीदा नेता है. बाद में थोड़ा सा मेरे चुनाव निशान पर भी मुहर छुआ देनी है. ज्यादा लगाने की जरूरत नहीं, जितना आप चाहें. अगर किसी का मन न बने, तो हल्का सा भी छुआ सकता है.
लोगों ने बात मान ली. पसंदीदा उम्मीदवार को पूरा वोट दिया, और विरोधी को बस थोड़ा सा. नतीजे आए तो कत्ल की रात में सक्रिय उम्मीदवार चुनाव जीत गया. हारे हुए उम्मीदवार को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था. बाद में विरोधी उम्मीदवार की चाल का पता चला तो सब लोग सिर पकड़कर बैठ गए. बस्ती का पूरा वोट अवैध घोषित करके रद्द कर दिए गये थे.
लगता है चुनाव लड़ने वालों के मन में ऐसी दहशत अब भी बनी हुई है. तभी तो उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जाने से पहले मतदाताओं की ट्रेनिंग हुई है. ये प्रशिक्षण वर्कशॉप दोनों तरफ के वोटर के लिए हुए हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष के सांसदों के लिए भी. एनडीए सांसदों की ट्रेंनिंग एक दिन पहले हुई, जबकि विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक के सांसदों की वोटिंग से ठीक एक दिन पहले.
एनडीए के ट्रेनिंग सेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे की सीट पर बैठने की काफी चर्चा रही. उपराष्ट्रपति चुनाव में सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने वोट डाला. विपक्ष की तरफ से कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी भी वोट डाल चुके हैं. हाल में राहुल गांधी कुछ दिनों के लिए विदेश यात्रा पर थे - जरा सोचिये, वोट देने की ट्रेनिंग उन लोगों को दी जा रही है, जो खुद देश भर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं.
सांसदों को वोट देने की ट्रेनिंग क्यों?
देश में लोकसभा-विधानसभा चुनाव दशकों से ईवीएम द्वारा हो रहे हैं, लेकिन उपराष्ट्रपति के चुनाव में अब तक प्रक्रिया मतपत्रों वाली ही है. नतीजा ये होता है कि मतदान से पहले सांसदों को ट्रेनिंग दी जाती है. ताकि, उनका वोट अवैध न हो जाए. कल्पना कीजिये कि यदि ईवीएम के बिना चुनाव कराने की मांग ली जाती है तो सौ करोड़ मतदाताओं को कैसे ट्रेनिंग दी जाएगी? तब अवैध मतदान एक बड़ी समस्या बन जाएगा.
उपराष्ट्रपति चुनाव में संसद के दोनों सदनों के सदस्य वोट डालते हैं. राज्यसभा के नामित सदस्यों को भी वोट देने का अधिकार होता है. लोकसभा में सांसदों की संख्या फिलहाल 542 है, क्योंकि एक सीट खाली है. राज्यसभा में 245 सांसद होते हैं, लेकिन वहां भी 5 सीटें खाली हैं.
उपराष्ट्रपति चुनाव में गुप्त मतदान कराये जाते हैं, इसके कारण सांसद वोटर अपनी पार्टी व्हिप से बाध्य नहीं होते. वोटिंग के लिए सासंदों को बैलट पेपर दिए जाते हैं. बैलट पेपर पर दो उम्मीदवारों के नाम हैं. एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन हैं, जबकि इंडिया ब्लॉक के जस्टिस (रिटा.) बी. सुदर्शन रेड्डी.
वोट देने के लिए सांसदों को अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम के आगे 1 अंक लिखकर अपनी प्राथमिकता दर्ज करानी होती है. ट्रेनिंग के दौरान सांसदों को डेमो दिया जाता है. बताया जाता है कि कैसे बैलेट पेपर पर सही निशान लगाना है.
निशान लगाने के लिए भी चुनाव अधिकारी की तरफ से दिए गये पेन का ही इस्तेमाल करना होता है - और फिर सही तरीके से बैलट पेपर को फोल्ड कर बैलट बॉक्स के अंदर डालना होता है.
वोट चोरी मुद्दा ही है, आशंका का क्या?
उपराष्ट्रपति चुनाव में भी गुप्त मतदान होता है, जिसमें एक ही बात का खतरा होता है, क्रॉस वोटिंग का. अगर ऐसा हुआ तो दोनों तरफ से समीकरण बिगड़ सकता है - और इसीलिए एनडीए और विपक्षी इंडिया ब्लॉक ने अपने सांसदों को वोटिंग से पहले ट्रेनिंग दी है.
चुनाव में इस बार तेलंगाना के मुख्यमंत्री रहे के. चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस और ओडिशा के पूर्व सीएम नवीन पटनायक की पार्टी BJD ने किसी भी गठबंधन का समर्थन नहीं करने का फैसला किया है. राज्यसभा में बीआरएस के 4 और BJD के 7 सांसद हैं - पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने भी ऐसा ही किया था.
उपराष्ट्रपति पद के लिए अब तक 4 बार निर्विरोध चुनाव हो चुका है. डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दो बार 1952 और 1957 में , 1979 में मोहम्मद हिदायतुल्लाह और 1987 में शंकर दयाल शर्मा निर्विरोध उपराष्ट्रपति चुने गए थे.
विपक्ष इन दिनों वोट-चोरी को मुद्दा बना रहा है. बिहार में तो राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा भी निकाल चुके हैं. एटम बम के बाद हाइड्रोजन बम की भी बात कर चुके हैं. लेकिन, वोट चोरी मुद्दा वहां बना है, जहां ईवीएम से चुनाव होते हैं. चुनाव बाद अक्सर ईवीएम पर सवाल उठते रहे हैं, और बैलट पेपर से ही चुनाव कराए जाने की मांग होती है.
उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट चोरी का मुद्दा तो नहीं है, लेकिन क्रॉस वोटिंग की आशंका तो सभी को खाए जा रही होगी. विपक्ष के उम्मीदवार ने चुनाव में अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील की है.
इसीलिए कहते हैं मतदाता सूची और मतदान में कोई रिश्ता नहीं है
राहुल गांधी अकसर मतदाता सूची में गड़बड़ी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि किस तरह उन्हें चुनाव हराया जाता है. लेकिन, क्रॉस वोटिंग के उदाहरण से यह साबित हो जाता है कि जिसे मतदाता सूची देखकर आप अपना मान रहे हैं, हो सकता है कि वह मतदान करते समय आपके विरोधी को वोट डाल आ रहा है. चुनाव आयोग मान चुका है कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां होती हैं, जिसको सुधारने की प्रक्रिया अनवरत चलती रहती है. लेकिन, यह नहीं मान लेना चाहिये कि इन गड़बड़ियों से कोई एक ही पार्टी प्रभावित हो रही है. वोट डालते समय सभी पार्टियों के पोलिंग एजेंट मतदान केंद्र पर होते हैं. वे मतदाता की पहचान भी करते हैं. हां, वो वोट किसको डालेगा, यह सस्पेंस ही रहता है. ईवीएम सिर्फ इस बात की गारंटी देती है कि एक मतदाता का वोट वैध ही होगा. अवैध नहीं. जैसा कि मतपत्रों के मामले में होता था. देश भर में लाखों वोटरों के वोट अवैध करार दे दिए जाते थे.
मृगांक शेखर