महान संत और कवि गोस्वामी तुलसी दास ने एक जगह लिखा है. 'कै लघु कै बड़ मीत भल, सम सनेहु सुख होई - तुलसी ज्यों घृत मधु सरिस मिले महा विष होई'. उनके कहने का मतलब है कि दो महत्वपूर्ण और समान ताकत वाले लोगों में कभी मित्रता हो ही नहीं सकती. मित्रता तो हमेशा एक बड़े और एक छोटे व्यक्ति में ही हो सकती है. क्योंकि घी और शहद अगर एक समान मात्रा में मिला दिया जाए तो यह विष बन जाता है. अमेरिका में भी कुछ ऐसा ही हुआ है.
दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति और दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति के बीच की दोस्ती अपनी मौत खुद मर गई है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप और एलॉन मस्क की राहें जुदा हो गई हैं. इन दोनों को नजदीक से देखने वालों को पहले दिन से ही लगता था कि ये दोस्ती परवान चढने से पहले ही दम तोड़ देगी. वैसा ही हुआ भी. रॉयटर्स ने व्हाइट हाउस के सूत्रों के हवाले से कहा है कि दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति एलॉन मस्क की ट्रंप प्रशासन से विदाई का फैसला सीनियर स्टाफ लेवल पर लिया गया. व्हाइट हाउस से मस्क की विदाई उसी तरीके से हुई जिस तरह कोई अहंकारी राजा किसी मंत्री की बात को दिल पर लेकर बिना किसी बातचीत के सभा से बाहर का रास्ता दिखा दिया करता था. फटाफट हुई और पूरी प्रक्रिया अनौपचारिक थी. अपनी विदाई की खबर सार्वजनिक करने से पहले एलॉन मस्क ने ट्रंप से मुलाकात भी नहीं की थी.
दरअसल एलॉन मस्क और डोनाल्ड ट्रंप, दोनों एक ही टेंपरामेंट के होने के कारण साथ निभा नहीं पाए. दोनों व्यक्तियों के मजबूत, स्वतंत्र और सुर्खियों में रहने वाले व्यक्तित्व ने उनके रिश्ते को शुरू में तो मजबूत किया, लेकिन वही विशेषताएं उनके बीच टकराव और अंततः अलगाव का कारण बनीं. दोनों के व्यक्तित्व में अहंकार का टेंपरामेंट समान था. जाहिर है कि ये ज्यादा दिन नहीं चल पाता.
एलॉन मस्क और डोनाल्ड ट्रंप दोनों ही अपनी-अपनी दुनिया में अल्फा व्यक्तित्व के धनी हैं. मस्क ने टेस्ला और स्पेस एक्स जैसे नवाचारों के जरिए पारंपरिक उद्योगों को चुनौती दी, जबकि ट्रंप ने अपनी अपरंपरागत राजनीतिक शैली से अमेरिकी राजनीति को हिला दिया. दोनों ही नियमों को तोड़ने और बड़े जोखिम लेने में विश्वास रखते हैं.
दोनों को सुर्खियों में रहने की चाह पागलपन के हद तक है. मस्क X पर अपने विवादास्पद पोस्ट और ट्रंप अपने ट्रुथ सोशल पोस्ट और रैलियों के जरिए हमेशा दुनिया का ध्यान आकर्षित करते रहते हैं. शायद यही कारण रहा कि मस्क ने ट्विटर को खरीदने के लिए मुंहमांगी रकम दी. दूसरी तरफ ट्रंप चर्चा में रहना कितना पसंद करते हैं वो भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का श्रेय कोई दूसरा न ले इसके लिए करीब दर्जन बार वो प्रेस को बता चुके हैं कि मेरे प्रयासों से दोनों देशों के बीच जंग रुक गई. भारत बार-बार इससे इनकार कर चुका है फिर भी ट्रंप श्रेय लेने से नहीं चूक रहे हैं. शायद यही कारण है कि अमेरिकी प्रेसिडेंट भारत के पीएम नरेंद्र मोदी के रूप में अपने एक और मित्र को खो चुके हैं या बहुत जल्दी खो देने वाले हैं.
दोनों की शैली आक्रामक नेतृत्व वाली है. मस्क अपनी कंपनियों में कठोर प्रबंधन और ट्रंप का प्रशासन में 'मेरी तरह बनो या बाहर रास्ता देखो' का रवैया रखते हैं. दोनों ही अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए दबाव डालते हैं. दोनों ही अपने आप को युगांतकारी बदलाव लाने वाले के रूप में पेश करते हैं. मस्क तकनीक और अंतरिक्ष में, ट्रंप राजनीति और शासन में.
दो मजबूत व्यक्तित्वों का एक साथ काम करना तब तक संभव है, जब तक एक दूसरे के सामने झुकने को तैयार हों. मस्क और ट्रंप दोनों ही नेतृत्व और नियंत्रण पसंद करते हैं, जिससे उनके बीच समझौता मुश्किल हो गया. मस्क की ट्रंप की नीतियों जैसे, वन बिग ब्यूटीफुल बिल की सार्वजनिक आलोचना ने ट्रंप के ईगो को ठेस पहुंचाई. जिस तरह ट्रंप को अपने सहयोगियों से निष्ठा की उम्मीद थी, उसी तरह मस्क को अपने टैलेंट पर अभिमान था. और दोनों टकरा गए.
दोनों ही अपनी-अपनी छवि को लेकर संवेदनशील हैं. ट्रंप को यह पसंद नहीं था कि मस्क को कुछ GOP (Grand Old Party अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी को कहा जाता है) राजनीतिक हलकों में असली शक्ति के रूप में देखा जा रहा था. जबकि मस्क को ट्रंप का उन्हें नीचा दिखाना जैसे, पेंटागन ब्रीफिंग की खबर को नकारना बहुत अपमानजनक लगा था.
संयम श्रीवास्तव