भारत में क्रिकेट एक धर्म की तरह है. इस खेल से लोग अंतरात्मा से जुड़े होते हैं. जिस तरह धर्म की हानि होते देख लोग मचल जाते हैं, उसी तरह भारतीय क्रिकेट को डूबते देख लोग कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं. इन दिनों टेस्ट क्रिकेट में भारत की किरकिरी के चलते कप्तान रोहित शर्मा और विराट कोहली को लेकर आम जनता में गुस्सा चरम पर है. एक क्रिकेट के समीक्षक ट्वीट करते हैं कि लगता है कि भारतीय टीम के कप्तान रोहित शर्मा को हटाने के लिए सीरियाई विद्रोहियों का सहारा लेना पड़ेगा. उनका इशारा शायद क्रिकेट प्रबंधन की ओर है. क्योंकि रोहित शर्मा के लगातार खराब प्रदर्शन के बाद भी उनकी कप्तानी को लेकर जिम्मेदारों के बीच कोई खुसफुसाहट तक नहीं है. हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर की मानें तो रोहित शर्मा से कप्तानी छिने जाने की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है. सीरीज खत्म होने के बाद कोई सम्मानित रास्ता निकाला जाएगा, जैसे कि रोहित खुद रिटायरमेंट की घोषणा कर दें. विराट के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि वो एक प्लेयर के रूप में फॉर्म में नहीं चल रहे हैं. हालांकि ऑस्ट्रेलिया सीरीज में एक टेस्ट में उन्होंने शतक बनाकर अपने लिए मोहलत ले ली है. फिर भी विराट कोहली को भी अपनी विदाई का ससम्मान रास्ता खुद ढूंढना चाहिए.
1- रोहित की कप्तानी में टीम इंडिया पर लगा सबसे बड़ा 'सफेद दाग'
घरों की रंगरोगन को व्हाइट वॉश कहा जाता है, लेकिन क्रिकेट की भाषा में यह शब्द बेहद अपमानजनक माना जाता है. ऐसे ही व्हाइट वॉश का बदनुमा दाग रोहित शर्मा की कप्तानी में भारतीय टीम पर लगा है. 130 साल के भारतीय क्रिकेट इतिहास में न्यूजीलैंड ने 3 टेस्ट मैचों की सीरीज के सभी मैच जीतकर भारत के खिलाफ सबसे बड़ा व्हाइट वॉश दर्ज किया. इससे पहले सिर्फ साउथ अफ्रीका 2000 में ऐसा कर पाई थी, लेकिन वह दो मैचों की सीरीज थी.
रोहित शर्मा की कप्तानी में भारत ने 24 टेस्ट मैच खेले हैं. जिसमें से 12 में भारत को जीत मिली जबकि 9 में हार और 3 मैच ड्रा रहे. यानी कामयाबी का औसत 50-50 ही है. जो कि बेहद औसत है. टेस्ट क्रिकेट में नाकाम बल्लेबाजी का बोझ रोहित की कप्तानी में दिखता है. मैदान में उनकी झुंझलाहट अक्सर दिखाई दे जाती है.
2- उम्र से लेकर परफॉर्मेंस तक, आंकड़े भी साथ नहीं दे रहे हैं रोहित शर्मा के
रोहित शर्मा की पहचान एकदिवसीय खिलाड़ी के रूप में ही रही है. 2007 में अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू करने वाले इस खिलाड़ी को पहली बार इंटरनेशनल टेस्ट मैच खेलने का मौका छह साल बाद 2013 के आखिर में मिला. वह भी मध्यमक्रम के बल्लेबाज के रूप में. उनकी जगह इतनी अस्थायी रही कि वे अगले छह साल यानी 2019 तक के केवल 32 मैच ही खेल पाए. अपनी क्रिकेट करिअर के उत्तरार्ध में जब उन्हें टेस्ट कप्तानी मिली भी तो उन्होंने कोई कमाल नहीं किया. पिछले तीन सालों में उन्होंने सिर्फ 4 शतक बनाए हैं. उसमें से भी 3 घरेलू मैदानों पर. टेस्ट में उनकी बल्लेबाजी का औसत 40 को भी नहीं छू पाया है. ऐसे में 37 साल 245 दिन उम्र वाले रोहित शर्मा से बल्लेबाजी के दम पर कोई कमाल करने की उम्मीद नहीं बची है. लाल गेंद वाले क्रिकेट फॉर्मेट में जहां गेंद ज्यादा स्विंग होती है, रोहित निरुत्तर नजर आते हैं.
3- रोहित और विराट का स्टारडम उन्हें बाहर करने में आड़े आ रहा है?
भारत के पूर्व विकेटकीपर-बल्लेबाज सुरिंदर खन्ना ने सोमवार को मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चौथे टेस्ट में 184 रन से मिली हार के बाद खराब फॉर्म में चल रहे सीनियर बल्लेबाज रोहित शर्मा और विराट कोहली को बेंच पर बैठाने की मांग की है. इस अनुभवी क्रिकेटर ने कहा कि टीम प्रबंधन को अन्य खिलाड़ियों के लिए रास्ता बनाने के लिए उनसे बात करने का साहस दिखाने की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा- आपको कप्तान और विराट कोहली से यह कहने की हिम्मत चाहिए कि वे बैठकर एक-एक करके बात करें, ताकि कोई और खेल सके. खन्ना अपने बयान में 'उनसे बात करने का साहस दिखाने की जरूरत', और कप्तान और विराट कोहली से 'यह कहने की हिम्मत चाहिए' जैसे शब्द इस्तेमाल करते हैं. इसका साफ मतलब है कि रोहित शर्मा और विराट कोहली का स्टारडम बीसीसीआई से बड़ा हो गया है. रोहित और विराट कोहली का फैन बेस बहुत बड़ा है, जिससे क्रिकेट प्रबंधन घबराता है. भारतीय क्रिकेट के इको सिस्टम में इन दोनों खिलाड़ियों का कद ऐसा हो गया है, इन्हें क्रिकेट से बाहर करने के बारे में सोचना भी लोगों को अपराध लगता है. पर आखिर कब तक इन दोनों खिलाड़ियों के टेस्ट में खराब परफार्मेंस को इग्नोर किया जाएगा.
4-टीम को एकजुट करने में रहे हैं असफल, अश्विन हैं सबसे बड़ा उदाहरण
रविचंद्रन अश्विन पिछले एक दशक से टेस्ट क्रिकेट में टीम इंडिया के फ्रंटलाइन स्पिनर रहे हैं. जिस तरह ऑस्ट्रलिया दौरे में उन्होंने अचानक संन्यास की घोषणा कर दी उसका मतलब है कि कैप्टन ने उनकी समस्याओं को नजरअंदाज किया. नहीं तो कोई भी महान खिलाड़ी कम से कम सीरीज के खत्म होने का इंतजार करता. अश्विन के घर पहुंचने पर उनके पिता ने जो सवाल उठाएं हैं वो बहुत कुछ रोहित शर्मा के कैप्टेंसी की ओर ही इशारा करते हैं. अश्विन की प्रतिभा पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. वे टीम इंडिया की तरफ से लाल गेंद फॉर्मेट में दूसरे सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज बन चुके हैं. ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले टीम इंडिया में अश्विन के लिए सब कुछ ठीक चल रहा था. न्यूजीलैंड के खिलाफ अश्विन ने दमदार गेंदबाजी भी की, लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सिर्फ एक मैच खेलने का बाद ही संन्यास की घोषणा कर दी. अश्विन एडिलेड में पिंक बॉल टेस्ट मैच में मैदान पर उतरे थे, जिसमें उनके नाम सिर्फ 1 ही विकेट रहा. इससे पहले पर्थ में उन्हें खेलने का मौका नहीं मिला था. रोहित शर्मा के मुताबिक अश्विन पर्थ में ही संन्यास की घोषणा की करना चाहते थे, लेकिन कप्तान के कहने पर रुक गए. पर रोहित का बयान ही उन्हें संदेह के घेरे में डाल देता है. एडिलेड के बाद ब्रिस्बेन में उनकी जगह रवींद्र जडेजा को मैदान पर उतारा गया. क्योंकि सीनियर खिलाड़ी के तौर पर लगातार अनदेखी करना एक तरह का यह संदेश ही था कि अब अश्विन की टीम में जगह नहीं बन रही है.
5-खराब कप्तानी , शुभमन गिल जैसे भविष्य के उभरते क्रिकेटर को बाहर रखना
खराब बल्लेबाजी फॉर्म ने रोहित के दिमाग पर भी असर डाला है. जिससे उनकी कप्तानी भी प्रभावित हुई है. जब युवा ऑस्ट्रेलियाई सैम कॉन्स्टास ने जसप्रीत बुमराह पर आक्रमण किया, तो रोहित प्रतिक्रिया देने में धीमे रहे. मेलबर्न में 52वें ओवर तक स्पिनर वाशिंगटन सुंदर को गेंदबाजी पर नहीं लगाया. और उन्होंने बुमराह को बिना सोचे-समझे इस्तेमाल किया. एमएसके प्रसाद ने स्टार स्पोर्ट्स के लिए कॉमेंट्री करते हुए कप्तान रोहित शर्मा की के बारे में कहा कि पहली गलती शुभमन गिल को प्लेइंग इलेवन से ड्रॉप करने की रही. प्रसाद ने कहा कि जो खिलाड़ी पिछले दो साल से बेहतरीन प्रदर्शन कर रहा है, उसे बाहर बैठाना सही नहीं है. एमएसके प्रसाद ने कहा कि टीम मैनेजमेंट नीतीश रेड्डी को प्लेइंग इलेवन में चाहता था, इस कारण शुभमन गिल को ड्रॉप करके वॉशिंगटन सुंदर को शमिल किया गया. लेकिन यह भी डिफेंसिव फैसला था. टीम का फोकस बॉलिंग की मजबूती से ज्यादा बैटिंग की गहराई पर था. इस पिच पर दो स्पिनरों के साथ जाना सही फैसला नहीं था. अच्छा होता कि सुंदर की जगह कोई पेसर चुना जाता. रवि शास्त्री ने सवाल उठाया कि इस पिच पर दो स्पिनर खिलाने की क्या जरूरत थी?
संयम श्रीवास्तव