मोदी और मुद्दों के विरोध में राहुल गांधी की भाषा को क्‍या हो गया? 'मुहब्बत की दुकान' में मर्यादा तार-तार

बिहार में वोटर अधिकार यात्रा पर निकले राहुल गांधी लगातार पीएम मोदी के लिए तू-तड़ाक जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. जाहिर है कि यह यूं ही नहीं है. क्योंकि इसका असर कांग्रेस के हर स्तर पर दिखाई दे रहा है. आम कार्यकर्ता से लेकर राष्ट्रीय प्रवक्ता तक बीजेपी समर्थकों और उनसे हमदर्दी रखने वालों पर भाषा की परवाह किये बिना आक्रामक हो गए हैं.

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नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 29 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:01 PM IST

राहुल गांधी द्वारा 2023 की भारत जोड़ो यात्रा और 2024 की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान 'मुहब्बत की दुकान' खोलने का मंसूबा पेश किया गया. इस नारे को कांग्रेस ने राहुल गांधी की छवि को प्रेम, एकता, और सामाजिक न्याय से जोड़ने की कोशिश थी. इसका एक उद्देश्य यह भी था कि भारतीय जनता पार्टी को एक ऐसी पार्टी के रूप में बदनाम करना जो केवल तोड़फोड़ और नफरत की बदौलत सरकार में है. हालांकि इसके बावजूद कांग्रेस नेता, कांग्रेस सोशल मीडिया हैंडल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में जहर भरे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे. 2024 में एक दौर तो ऐसा था कि कांग्रेस की एक्स हैंडल हर रोज पीएम मोदी के बारे में कोई एक शब्द ऐसा लिखा जाता जो उनके लिए किसी जहर भरे तीर से कम नहीं होता.

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लोकसभा चुनावों में मिली आंशिक सफलता से राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस के उत्साह में बढ़ोतरी हुई है. पार्टी का आईटी सेल और मीडिया सेल के कर्ताधर्ताओं ने तो हद ही कर दी है. कभी उनकी शिक्षा को लेकर, कभी उनकी शादी को लेकर तो कभी उनके चाय बेचने वाली पृ्ष्ठभूमि को लेकर इस तरह की बयानबाजी होने लगी जिससे वो अपने ही नेताओं सोनिया गांधी, मणिशंकर अय्यर और सैम पित्रोदा के रखे गए माइलस्टोन को हर रोज पीछे छोड़ा जा रहा है.

हद तो तब हो गई जब बिहार की अपनी चुनावी यात्रा में राहुल गांधी ने जिस तरह अपनी शैली में तू तड़ाक को शामिल कर लिया है वो उनसे उम्मीद नहीं थी. वोटर अधिकार यात्रा के दौरान कई बार ऐसै मौका आया जब राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तू तड़ाक वाली भाषा का इस्तेमाल किया. यानि कि अब ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने इसे अपनी रणनीति में शामिल कर लिया है. क्योंकि लगातार ऊपर से नीचे तक के नेताओं में लगातार मोदी के ऊपर ऐसे हमले हो रहे हैं जो कतई भारतीय राजनीति के लिए नई परिपाटी ही कहा जाएगा. सवाल यह उठता है कि अचानक कांग्रेस राहुल की मुहब्बत की दुकान बंद करने पर क्यों आतुर हो गई हैं?

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क्या मोहब्बत की दुकान बंद की जा रही है?

बीजेपी का दावा है कि दरभंगा के सिमरी विठौली में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के दौरान मंच से पीएम मोदी और उनकी मां के लिए अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं. हालांकि, घटनाक्रम के दौरान राहुल गांधी वहां मौजूद नहीं थे. जहां यह घटना हुई, उस मंच के संयोजक और कांग्रेस नेता आरोपी नौशाद ने इस मामले में माफी मांगी है. बिहार पुलिस ने अपशब्‍द कहने वाले को गिरफ्तार कर लिया है.

सिर्फ निचले स्‍तर पर ही नहीं, अब कांग्रेस के प्रवक्ता भी अनाप शनाप तरीके से बोलने लगे हैं. जबकि, देश की राजनीति में भाषा की मर्यादा का नियम सभी पार्टियों द्वारा समान रूप से पालन किया जाता रहा है. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह जैसे प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में भी विपक्ष तीखी आलोचनाएं करता रहा है. उदाहरण के लिए, इंदिरा गांधी के आपातकाल (1975-77) के दौरान विपक्ष ने उनकी नीतियों को तानाशाही करार दिया था. इसी तरह, मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कोयला घोटाला और 2जी घोटाले को लेकर विपक्ष ने उनकी सरकार को भ्रष्ट और कमजोर जैसे शब्दों से नवाजा. लेकिन पीएम मोदी के प्रति जिस तरह के अपमानजनक शब्दों का उपयोग हो रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ. पहले की आलोचनाएं मुख्य रूप से नीतियों और सरकार की कार्यप्रणाली पर केंद्रित थीं, न कि व्यक्तिगत हमलों पर. 

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चौकीदार चोर है, मौत का सौदागर जैसे नारे और व्यक्तिगत टिप्पणियां हों या उन्हें अनपढ़-गंवार बोलना, उनके चाय बेचने की पृष्ठभूमि को निशाना बनाना, उन्हें नीच तक बोल देना यही दिखलाता है कि यह रणनीति प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ लगातार इस्‍तेमाल होती रही है . क्या किसी पीएम का इस रह फोटो लगाकर उसे 'कुख्यात चोर' कभी भारत की राजनीति में लिखा गया है. देखिए कांग्रेस के एक्स हैंडल पर कल गुरुवार को पब्लिश हुआ एक पोस्ट.

 

क्या ये लगातार हार का फ्रस्ट्रेशन है?

पिछले एक दशक में कांग्रेस लगातार राष्ट्रीय और राज् स्तर पर लगातार चुनाव हार रही है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ करारी हार मिली. 2014 में कांग्रेस को केवल 44 सीटें मिलीं, जो उसका अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था, और 2019 में यह संख्या मामूली सुधार के साथ 52 तक पहुंची. इसके अलावा, कई प्रमुख राज्यों में भी कांग्रेस की सत्ता या तो खत्म हुई या कमजोर हुई है.आज देश में हिमाचल , तेलंगाना और कर्नाटक में केवल कांग्रेस की सरकार है. साउथ और नॉर्थ ईस्ट से भी कांग्रेस अकेले दम पर सरकार बनाने की हैसियत में नहीं है. जाहिर है कि ऐसी दशा में हताशा स्वाभाविक है.

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निरंतर हार ने पार्टी के भीतर नेतृत्व, रणनीति और संगठनात्मक ढांचे को लेकर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. पार्टी के भीतर नेतृत्व को लेकर असंतोष, जैसे कि राहुल गांधी की नेतृत्व शैली पर सवाल और वरिष्ठ नेताओं के बीच मतभेद (उदाहरण के लिए, G-23 समूह की मांगें), इस निराशा को दर्शाते हैं.

इन परिस्थितियों में, कुछ नेताओं का अपमानजनक या आक्रामक भाषा का उपयोग करना उनकी हताशा और जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश का परिणाम हो सकता है. डिजिटल युग में, सोशल मीडिया पर आक्रामक और विवादास्पद टिप्पणियां वायरल होने की संभावना अधिक होती हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की अपेक्षाएं कि नेता आक्रामक रुख अपनाएं, भी इस तरह की भाषा को बढ़ावा देने का एक कारण हो सकता है.

कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने तो हद कर दी है

इस बीच यह देखने में आया है कि कांग्रेस प्रवक्ता हर उस शख्स से लड़ने भिड़ने को तैयार हैं जो बीजेपी के लिए कहीं से सॉफ्ट कॉर्नर रखता है. पार्टी की आईटी सेल की हेड सुप्रिया श्रीनेत हों या राष्ट्रीय प्रवक्ता आलोक शर्मा और रागिनी नायक हों. इन लोगों के आए दिन टीवी एंकर से झगड़े हो रहे हैं. यहां तक भी ठीक था, पर कांग्रेस की राष्‍ट्रीय प्रवक्‍ता यदि किसी गुजरात की महिला को प्रधानमंत्री की पत्‍नी बताकर ट्वीट करे, तो उसे क्‍या कहा जाएगा?

 

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