वोटर अधिकार यात्रा ने महागठबंधन की कई तस्वीरें सामने ला दी हैं. मसलन, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल का रिश्ता कैसा है? राहुल गांधी बिहार में कांग्रेस के लिए क्या करना चाहते हैं? तेजस्वी यादव और लालू यादव क्या चाहते हैं? तेजस्वी यादव के बारे में राहुल गांधी क्या सोचते हैं? राहुल गांधी के बारे में तेजस्वी यादव क्या राय रखते हैं?
देखा गया कि किस तरह राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा में नेतृत्व की भूमिका में नजर आए. ये भी देखा गया कि कैसे तेजस्वी यादव पूरी यात्रा में राहुल गांधी के पीछे खड़े रहे - सवाल ये है कि तेजस्वी यादव ने तो राहुल गांधी को बड़ा भाई बता दिया, लेकिन लगा नहीं कि वो भी तेजस्वी को छोटे भाई का हक देना चाहते हैं. मुख्यमंत्री के चेहरे पर राहुल गांधी की चुप्पी आखिर क्या कहती है?
लेकिन, ये सब हुआ क्यों? निश्चित तौर पर ये गांधी और लालू परिवार के बीच रिश्तों में आई खटास का नतीजा है, जिसे जैसे तैसे बाहर से ठीक ठाक दिखाने की कोशिश हो रही है. जैसे राहुल गांधी कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े झेलते आ रहे हैं, महागठबंधन में भी रिश्ते निभाए चले जा रहे हैं.
मुश्किल तो होता ही होगा. जब लालू यादव कहते हैं कि ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बना देना चाहिए, तो जाहिर है राहुल गांधी को बुरा लगता होगा. बहुत बुरा लगता होगा. लेकिन, जब कन्हैया कुमार को कांग्रेस में लिया जाता है, तो लालू यादव को भी बुरा लगता होगा. जब पप्पू यादव की पीठ पर कांग्रेस का हाथ देखते होंगे, तो तेजस्वी यादव भी मन मसोसकर रह जाते होंगे.
और यही कारण है कि राहुल गांधी को भी समझौते करने पड़ रहे हैं - वरना, बिहार की राजनीति में पांव मजबूत करने निकले राहुल गांधी को भला कन्हैया कुमार और पप्पू यादव की कुर्बानी क्यों देनी पड़ती?
वोटर अधिकार यात्रा में शामिल तो कन्हैया कुमार और पप्पू यादव दोनों हुए, लेकिन आम कार्यकर्ताओं की ही तरह. नेताओं की तरह नहीं. एक-दो मौकों पर थोड़ी तवज्जो भी मिली, लेकिन उतना ही कि लोगों के मन में रजिस्टर भी न हो पाए. और, जो रजिस्टर हुआ वो दोनों के लिए अपमानजनक ही था. और, ऐसा पहली बार भी नहीं था. वोटर अधिकार यात्रा के समापन के मौके पर पटना में राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी, डी. राजा, हेमंत सोरेन और दीपांकर भट्टाचार्य जैसे नेता मंच पर थे, लेकिन पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव और बिहार में कांग्रेस के युवा चेहरे कन्हैया कुमार नीचे ही रह गए. बल्कि, मंच पर चढ़ने से रोक दिया गया. सोशल मीडिया पर तो ऐसी चर्चा रही कि पप्पू यादव रोते देखे गए.
क्या से क्या हो गए देखते-देखते
2022 के भारत जोड़ो यात्रा से देखें तो 2025 की वोटर अधिकार यात्रा तक कन्हैया कुमार की राजनीति में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन सिर्फ बिहार में. बाकी जगह कन्हैया कुमार वैसे ही छाए रहते हैं, जैसा तीन साल पहले कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बताया था.
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान जयराम रमेश ने कहा था, कन्हैया कुमार को लोग सुनना चाहते हैं... वो आम लोगों की डिमांड हैं... भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी के बाद सबसे ज्यादा कन्हैया कुमार की मांग है - और ये बातें जयराम रमेश ने बिहार के लोगों को संबोधित करते हुए ही कही थी. तब जयराम रमेश ने यहां तक कहा था कि भारत जोड़ो यात्रा के लिए राहुल गांधी के बाद कांग्रेस पार्टी में कन्हैया कुमार दूसरे सबसे पॉपुलर नेता हैं.
लेकिन, वोटर अधिकार यात्रा से पहले जब राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव के साथ चुनाव आयोग के दफ्तर तक मार्च किया था, तब भी कन्हैया कुमार को गाड़ी पर चढ़ने से रोक दिया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, मुंगेर और भागलपुर में कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी के साथ मंच साझा जरूर किया था. और, देखने वाले बताते हैं कि तेजस्वी यादव ने भी कोई तल्खी नहीं दिखाई थी. बेशक, ये सब कन्हैया कुमार को लेकर तेजस्वी यादव के रुख में बदलाव के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन संकेत तो कांग्रेस की तरफ से भी समझौते के ही नजर आ रहे हैं.
कांग्रेस बैकफुट पर क्यों
अररिया पहुंची वोटर अधिकार यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव की गाड़ी पर पप्पू यादव भी सवार हुए. और, इस एहसान के बदले तारीफ में कसीदे पढ़ने पड़े, जननायक और मेरे भाई तेजस्वी यादव नफरत और आतंक को खत्म करने में लगे हैं. तेजस्वी यादव ने भी पप्पू यादव का स्वागत किया. कभी एक-दूसरे पर शिद्दत से कीचड़ उछालने वाले दो नेता एक मंच पर खड़े थे, और सूत्रधार राहुल गांधी ही थे.
तेजस्वी यादव या लालू प्रसाद यादव का हाल ये है कि कभी भी पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को फूटी आंख भी देखना नहीं चाहते. ऐसे कई मौके रहे हैं जब ये बात महसूस की गई है. 2019 के आम चुनाव में कन्हैया कुमार के कारण ही तेजस्वी यादव ने सीपीआई को एक भी सीट नहीं दी थी. तब कन्हैया सीपीआई में हुआ करते थे. ऊपर से बेगूसराय में अपना उम्मीदवार भी उतार दिया था. 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा ही देखा गया. कन्हैया कुमार को तो कांग्रेस बिहार से चुनाव भी नहीं लड़ा पाई, और दिल्ली में मनोज तिवारी के खिलाफ उतारना पड़ा. पप्पू यादव को कांग्रेस साथ नहीं ले पाई. तेजस्वी यादव ने तो पप्पू यादव को हराने के लिए पूर्णिया में ही डेरा डाल दिया था, लेकिन नाकाम रहे.
वोटर अधिकार यात्रा में जिस तरह राहुल गांधी ने पूरे रास्ते तेजस्वी यादव को आगे नहीं आने दिया, ये सब कन्हैया कुमार और पप्पू यादव के नाम पर लालू परिवार के रिजर्वेशन का ही रिजल्ट लगता है - अगर ऐसा नहीं होता तो तेजस्वी यादव के प्रधानमंत्री बनाने वाले बयान के बाद भी क्या राहुल गांधी उनको मुख्यमंत्री का चेहरा मानने से इनकार कर देते?
मृगांक शेखर