राहुल गांधी की 4 मांगें मानकर चुनाव आयोग चाहे तो गंगा नहा सकता है

राहुल गांधी लगातार चुनावों को लेकर कई मुद्दे उठा रहे हैं. उनमें बहुत सी बातें फिजीबल नहीं हो सकती हैं. पर उनकी चार मांगें ऐसी हैं जिन पर चुनाव आयोग को विचार करना चाहिए. ये ऐसी डिमांड्स हैं जिन्हें पूरा करके आयोग चुनावों पर भारतीय जनता का भरोसा बढ़ा सकता है.

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चुनाव सुधार पर बहस के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी चुनाव सुधार पर बहस के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:14 PM IST

9 दिसंबर 2025 को लोकसभा में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग (Election Commission of India - ECI) की विश्वसनीयता पर एक बार फिर जोरदार हमला किया. उन्होंने बाद में ट्वीट कर के भी अपनी खास चार मुख्य मांगों के लिए फिर से चुनाव आयोग का याद दिलाया है. राहुल गांधी का कहना है कि अगर चुनाव आयोग इन बातों को मान ले तो चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और निष्पक्षता बढ़ जाएगी. ये मांगें सिर्फ विपक्ष की शिकायत नहीं हैं, बल्कि पिछले एक दशक में ECI पर लगे आरोपों का सार हैं . जैसे EVM टैंपरिंग, वोटर लिस्ट में फर्जीवाड़ा, और संस्थागत कब्जा. राहुल इसी आधार पर वोट चोरी का आरोप लगाते रहे हैं.

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राहुल गांधी का लोकसभा में भाषण संविधान की रक्षा और चुनावी सुधार पर केंद्रित था. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा (BJP) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने ECI सहित कई संस्थानों पर कब्जा कर लिया है, जो लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है. उन्होंने तीन सवाल उठाए कि (1) मुख्य न्यायाधीश (CJI) को चुनाव आयुक्त चयन समिति से क्यों हटाया गया? (2) चुनाव आयुक्तों को कानूनी कार्रवाई से इम्यूनिटी क्यों दी गई? (3) CCTV फुटेज मिटाने का नियम क्यों बदला गया? ये सवाल सीधे ECI की निष्पक्षता पर हमला करते हैं.

राहुल गांधी के इन डिमांड्स को राजनीतिक चश्मे को उतारकर देखें तो लगता है कि चुनाव आयोग को इन मांगों को पूरा करने में हर्ज क्या है. इससे तो आयोग की विश्वसनीयता ही बढ़ेगी. हालांकि ये बात भी सही है कि इन डिमांड्स का कोई अंत नहीं है. चुनाव आयोग ज्यों ही इन मांगों को मान लेगा , विपक्ष की ओर से नई मांगों का पुलिंदा हाजिर हो जाएगा. पर किसी भी लोकतंत्र के लिए इस तरह के डिमांड को पूरा करते रहना हेल्दी टैक्टिस माना जाता है.

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1-पहली मांग: चुनाव से कम से कम एक महीने पहले मशीन-रीडेबल वोटर लिस्ट सार्वजनिक हो 

यह मांग वोटर लिस्ट की पारदर्शिता से जुड़ी है. वर्तमान में ECI वोटर लिस्ट PDF फॉर्मेट में जारी करता है, जो स्कैन इमेज होती हैं. इन्हें OCR (Optical Character Recognition) से पढ़ा जा सकता है, लेकिन मशीन-रीडेबल फॉर्मेट (जैसे CSV, Excel या JSON) न होने से डेटा एनालिसिस मुश्किल है. परिणामस्वरूप, फर्जी वोटर, डुप्लीकेट एंट्री, या मृतकों के नाम आसानी से पकड़े नहीं जाते. 

2019 चुनावों में उत्तर प्रदेश में 1.2 करोड़ फर्जी वोटर के आरोप लगे. 2024 में महाराष्ट्र और हरियाणा में विपक्ष ने दावा किया कि लाखों नाम गायब थे. ECI का ERONET सिस्टम पूरा डेटाबेस रखता है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जाता. राहुल की मांग है कि चुनाव से 30 दिन पहले मशीन-रीडेबल लिस्ट जारी हो, ताकि पार्टियां, NGO और नागरिक जांच कर सकें. 

अमेरिका में वोटर लिस्ट CSV में उपलब्ध है, जहां कोई भी डुप्लीकेट चेक कर सकता है. कनाडा में Elections Canada वेबसाइट पर डेटाबेस डाउनलोडेबल है. ब्राजील में Supremo Tribunal Federal ने 2022 में GitHub पर वोटर डेटा अपलोड किया, जिससे पारदर्शिता बढ़ी. भारत में ऐसा न होने से संदेह बढ़ता है. एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने 2020 में कहा था कि डिजिटल फॉर्मेट से फर्जीवाड़ा 90% कम हो सकता है. 

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हालांकि सरकार के अपने तर्क हैं. सरकार कहती है कि PDF पहले से OCR-सपोर्टेड है, और प्राइवेसी कानून (DPDP Act 2023) के तहत पूरा डेटा साझा नहीं किया जा सकता. लेकिन इसका जवाब है कि प्राइवेसी बनाए रखते हुए (जैसे नाम और पता मास्क करके) लिस्ट जारी की जा सकती है. इस काम के लिए कोई विशेष खर्च भी नहीं करना है. इस काम के लिए NIC के पास पहले से ही इंफ्रास्ट्रक्चर है. 

जाहिर है कि यह मांग लागू हुई तो वोटर लिस्ट में विश्वास बढ़ेगा, और वोट चोरी के आरोप कम होंगे इससे ECI का भरोसा बहाल होगा, क्योंकि जनता खुद सत्यापन कर सकेगी.

2-दूसरी मांग: CCTV फुटेज मिटाने वाला 'काला कानून' तुरंत वापस लिया जाए 

2024 चुनावों के बाद ECI ने सर्कुलर जारी किया कि पोलिंग बूथ CCTV फुटेज 45 दिन बाद ऑटोमेटिक डिलीट हो जाएगी. पहले यह 1 साल तक रखी जाती थी. राहुल इसे काला कानून कहते हैं, क्योंकि इससे अनियमितता की जांच असंभव हो जाती है. 2024 में बहुत से बूथों पर जहां मामले संदिग्ध लगे वहां जब याचिकाएं दाखिल हुईं तो ECI ने कहा फुटेज डिलीट हो गई. 
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (2024) में भी ऐसी शिकायतें मिलीं जिनकी फुटेज तकनीकी खराबी के चलते गायब बताईं गईं थीं. राहुल का सवाल स्वाभाविक है कि अगर सब ठीक है, तो फुटेज मिटाने की क्या जरूरत है ? 

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जब दुनिया भर में फुटेज को संभाल कर रखा जाता है. दक्षिण कोरिया में फुटेज 5 साल रखी जाती है. जर्मनी में अनिश्चित काल तक. अमेरिका के कई राज्यों (जैसे जॉर्जिया) में 2 साल तक. चुनाव आयोग कहता है कि देश में लाखों बूथ हैं और उनकी वीडियो रिकॉर्डिंग का डेटा पेटाबाइट्स (Petabytes) में होता है, जिसे अनिश्चितकाल तक स्टोर करना बहुत खर्चीला और तकनीकी रूप से कठिन है. इसलिए, यदि कोई कोर्ट केस नहीं होता, तो स्टोरेज खाली करने के लिए पुराना डेटा हटा दिया जाता है. पर आयोग का यह तर्क बहुत हल्का है जो आसानी से हजम नहीं होता है.

 45 दिन किसी भी तरीके से पर्याप्त नहीं माना जा सकता है.विपक्ष का कहना सही है कि शिकायत के बाद फुटेज मिट जाती है, तो जांच कैसे? क्लाउड स्टोरेज (जैसे AWS) से लागत कम हो सकती है . कुछ लोगों का मानना है कि सालाना 10 करोड़ रुपये से कम में भी यह काम हो सकता है. जाहिर है कि यह रकम ऐसी नहीं है जो चुनाव आयोग वहन न कर सके. 

3-तीसरी मांग: विपक्ष को EVM तक पहुंच मिले और उसका आर्किटेक्चर सार्वजनिक किया जाए

EVM पर संदेह 2009 से है. 2010 में लाल कृष्ण आडवाणी तक को EVM हैक होने अंदेशा था.हालांकि ECI ने 2017 और 2019 में हैकाथॉन आयोजित किया, लेकिन शर्तें सख्त थीं , जैसे केवल 4 घंटे और सीमित मशीनें. विपक्ष का कोई भी नेता चुनाव आयोग के इस आयोजन में नहीं पहुंचा. जिससे यह संदेश गया कि विपक्ष को भी अपने आरोप पर भरोसा नहीं है. 

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अब  राहुल मांग करते हैं कि EVM का पूरा हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, सोर्स कोड सार्वजनिक हो. और विपक्ष को 1000 से अधिक EVM टेस्टिंग के लिए मिलें. विपक्ष आरोप लगाता है कि 2024 में VVPAT और EVM काउंट में 5.5 लाख वोटों का अंतर मिला.  ECI कहता है इंटरनल ऑडिट ठीक है लेकिन विपक्ष की वहां तक पहुंच नहीं है. जाहिर है कि सवाल तो उठेंगे ही. आयोग चाहे तो इस इंटरनल ऑडिट में विपक्ष को शामिल कर सकता है.जर्मनी ने 2009 में ई-वोटिंग बैन की क्योंकि सोर्स कोड सार्वजनिक नहीं था. नीदरलैंड्स कागजी मतपत्र पर लौटा. 
 
ECI कहता है कि EVM चिप-बेस्ड हैं, हैक-प्रूफ है. लेकिन कई  विशेषज्ञ कहते हैं कि बिना ऑडिट के दावा खोखला हो सकता है. पर चुनाव बाद अगर  कोई कैंडिडेट ईवीएम की जांच कराना चाहता है तो उसके लिए ये एक महंगा सौदा है. एक ईवीएम के टेस्ट के लिए करीब 45 हजार का खर्चा आता है. अगर एक हजार ईवीएम का टेस्ट करवाया जाए तो कई करोड़ रुपये खर्च हो सकते हैं. जाहिर है कि ईवीएम की टेस्टिंग आसान नहीं है.

जाहिर है कि अगर इस तरह की जांच का खर्च चुनाव आयोग खुद वहन करे तो बेहतर हो सकता है. लोकतंत्र की कीमत पर बचत क्यों? यह लागू हुई तो EVM संदेह खत्म होगा. इससे ECI की साख मजबूत होगी. 

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वैसे चुनाव आयोग का यह कहना भी सही है कि मशीन की माइक्रोचिप का डिजाइन और सोर्स कोड गोपनीय है. अगर इसे किसी बाहरी व्यक्ति या पार्टी को जांच के लिए दिया गया, तो हैकर्स इसकी संरचना समझकर भविष्य में इसमें सेंध लगाने का तरीका ईजाद कर सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट का भी इस मामले पर यही रुख रहा है.

4-चौथी मांग: चुनाव आयुक्तों को सजा से बचाने वाला कानून बदला जाए 

2023 के Chief Election Commissioner Act में CJI को चयन समिति से हटाया गया, और आयुक्तों को इम्यूनिटी दी गई. अब इस समिति में PM के साथ विपक्ष के नेता  और कुछ  मंत्री होते हैं. राहुल गांधी इसे संस्थागत कब्जा कहते हैं.मार्च 2024 में दो नए आयुक्त 10 मिनट में चुन लिए गए. सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में CJI को शामिल करने का आदेश दिया था, लेकिन संसद ने कानून बदल दिया. राहुल कहते हैं कि यह RSS/BJP की विचारधारा से जुड़ा है. ADR डेटा बताता है कि 2014-2025 में ECI ने BJP के अधिकतर उल्लंघनों पर उसे क्लीन चिट दे दी थी. जाहिर है कि जब चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका सबसे अधिक होगी तो आयुक्त जिस पार्टी की सरकार होगी उसके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर रखेंगे ही.

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ऑस्ट्रेलिया में चुनाव आयोग की नियुक्ति संसदीय समिति से, जिसमें विपक्ष का बराबर प्रतिनिधित्व होता है. कनाडा में स्वतंत्र पैनल चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करता है. भारत में बदलाव से ECI सरकारी प्रभाव से मुक्त होगा. पर सरकार कहती है कि कानून संसद का अधिकार है, और इम्यूनिटी जजों जैसी है.

यही कारण है कि Pew Research (2025) में 45% भारतीय ECI को पक्षपाती मानते हैं. जहां तक चुनाव आयुक्त की इम्युनिटी हटाने का सवाल है वो बहुत ही गंभीर मुद्दा है.अगर चुनाव आयुक्तों को संविधान से जो संरक्षण मिला हुआ है उसे खत्म होते ही हर छोटे-बड़े फैसले पर उन पर मुकदमे हो सकते हैं, जिससे पूरी चुनाव प्रक्रिया ठप हो सकती है. सरकार और आयोग इसे संस्था की स्वतंत्रता के लिए खतरा मानते हैं तो यह सही ही है.

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