देश में मतदाता सूची में घालमेल को लेकर किस तरह का पोलिटिकल स्टंट खड़ा किया जा रहा है, इसे इस तरह समझ सकते हैं कि बिहार में चुनाव आयोग मतदाता सूचियों की गहन समीक्षा (SIR) के बाद करीब 65 लाख लोगों का नाम मतदाता सूची से हटा देता है और इसकी पूरी सूची राजनीतिक दलों को सौंप देता है. लेकिन, एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी किसी दल की ओर से कोई आपत्ति या दावा पेश नहीं किया जाता है.
चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के प्रकाशन के साथ सभी बीएलए ( राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट) को एक-एक प्रति भी दे दी. दावे आपत्ति के लिए एक महीने का समय दिया गया. लेकिन पहले हफ्ते में राजेडी और कांग्रेस सहित किसी भी दल के बीएलए ने कोई भी आपत्ति दर्ज नहीं कराई.
इसका साफ मतलब निकलता है कि बिहार में चुनाव आयोग ने जो मतदाता सूची बनाई है उसमें सभी मतदाताओं का नाम, पता, फोटो आदि सही है. कहीं भी किसी एक पते पर सैकड़ों वोट नहीं दर्ज हैं. मतलब बिहार में मतदाता सूची बनाने में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है.
कहने को तो ऐसा समझा जा सकता है पर यह सही नहीं है. क्योंकि असली लड़ाई तो चुनाव परिणाम आने के बाद होगा. जब हार मिलने के बाद पार्टियों को मतदाता सूची में तमाम गड़बड़ियां मिलेंगी. अगर महागठबंधन को बिहार में चुनावी हार मिलती है तो हो सकता है कि राहुल गांधी और तेजस्वी एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस करें और बताएं कि किस लेवल पर मतदाता सूचियों में गड़बड़ी हुई है. जैसा कि विपक्षी पार्टियों ने ईवीएम को लेकर किया था. चुनाव आयोग ने ईवीएम की कार्यप्रणाली में दोष ढूंढने के लिए राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया था, जिसमें कोई नहीं गया. लेकिन, चुनाव परिणाम विपरीत आने पर ईवीएम में तमाम तरह के दोष गिना दिये गए.
ईवीएम का मुद्दा फीका पड़ जाने के बाद अब मतदाता सूची में हेर फेर का चुनाव आयोग पर आरोप लगाकर मोदी सरकार को घेरने का काम हो रहा है. अगर चुनाव आयोग लोगों का नाम हटा दे तो गड़बड़ी की शिकायत, और न हटाए तो इसकी शिकायत कि फर्जी वोट बनाकर चुनाव जीते जा रहे हैं. मतलब साफ है कि किसी न किसी रूप में मोदी सरकार को घेरना तय है.
65 लाख नाम हटाए गए पर राजनतिक दलों के बीएलए को एक भी गलत एग्जिट नहीं मिला?
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विपक्षी दलों, खासकर महागठबंधन (RJD, कांग्रेस और अन्य सहयोगी) का आरोप है कि 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची से 65 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, जो मुख्य रूप से उनके समर्थक वर्गों (विशेषकर अल्पसंख्यक, दलित, और पिछड़े समुदायों) से हैं.
दूसरी ओर राहुल गांधी ने गुरुवार को प्रेस कान्फ्रेंस करके कहा कि चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और कर्नाटक में लाखों फर्जी वोट बनाकर बीजेपी की मदद की है. शुक्रवार को भी राहुल गांधी बेंगलुरू में मोदी सरकार पर वोट चोरी करने का आरोप लगाते हुए हल्ला बोल रहे हैं. एक राजनीतिक दल होने के नाते कांग्रेस अपने इस अभियान में कामयाब होती भी नजर आ रही है. लेकिन, क्या ये मुद्दा लंबे समय तक कायम रह सकेगा?
बीजेपी नेता और पार्टी के आईटी सेल के हेड अमित मालवीय लिखते हैं कि 'इस बात को बार-बार दोहराना पड़ेगा कि जब विपक्ष विशेष सघन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) को लेकर संसद को बंधक बनाए बैठा है, तब तक बिहार में मतदाता सूची में किसी के नाम शामिल किए जाने या हटाए जाने को लेकर एक भी औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की गई है. यह साफ दिखाता है कि I.N.D.I. गठबंधन के पास कोई रचनात्मक एजेंडा नहीं है. वे हर उस प्रगतिशील कानून और सुधार का विरोध करते हैं .चाहे वह उन्हीं का प्रस्ताव क्यों न रहा हो, जिसे वे कभी राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में लागू नहीं कर पाए.'
गुरुवार को राहुल गांधी ने कर्नाटक के सेंट्रल बेंगलुरू लोकसभा की एक विधानसभा महादेवपुरा का उदाहरण देते हुए बताया था कि यहां पर हजारों लोगों के पते गलत हैं, कितने लोगों के पास डबल वोटर आईडी है. पर दुर्भाग्य से राहुल गांधी या उनकी पार्टी या उनकी पार्टी के कार्यकर्ता अभी जहां चुनाव होने वाला है वहां सक्रिय नहीं हैं. अभी मौका था कि अगर बिहार में इस तरह की कोई गलती हो रही है उसे सुधार लिया जाए पर कोई भी आगे नहीं आया.
प्रोफेसर दिलीप मंडल लिखते हैं कि 'विपक्षी दलों के बिहार में 65,000 से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट (BLA) हैं. इनको चुनाव आयोग ने ड्राफ्ट वोटर लिस्ट दी. कहा: जो भी छूट गया या गलत जुड़ गया, वह बताइये. हम 7 दिन में ठीक कर देंगे. आज सुबह तक एक भी शिकायत नहीं. राहुल गांधी की एक और क्रांति होने से रह गई!'
बायोमेट्रिक से फर्जी और डुप्लीकेट वोट रुक सकता था विरोध किया गया
प्रोफेसर दिलीप मंडल लिखते हैं कि फ़र्ज़ी व डुप्लीकेट वोटर हटाने व घुसपैठियों को वोट देने से रोकने का दुनिया में एक ही तरीका है कि इसे बायोमेट्रिक से लिंक किया जाए. जब केंद्र सरकार ने आधार लिंकिंग के लिए संसद में क़ानून पास किया गया तो कांग्रेस ने अड़ंगा डालने के लिए सुरजेवाला को सुप्रीम कोर्ट क्यों भेजा?
मंडल लिखते हैं कि फ़र्ज़ी, डुप्लीकेट व घुसपैठिए वोटर के समाधान के लिए 2021 में वोटर कार्ड-आधार लिंक करने का कानून संसद से पास हुआ. यही दुनिया का मान्य तरीका है.
लेकिन…
कांग्रेस और ओवैसी वगैरह ने वोट बैंक के चक्कर में कोहराम मचा दिया. कांग्रेस तो पिटीशन लेकर सुप्रीम कोर्ट चली गई कि ये न हो. सरकार ने 2021 में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक ले आई जिसका उद्देश्य डुप्लिकेट और फर्जी मतदाताओं को हटाना था. बायोमेट्रिक सत्यापन से मतदाता सूची में दोहरे नामों को आसानी से हटाया जा सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट्स में यह सफल रहा. कहीं इसका विरोध नहीं हुआ क्योंकि यहां बीजेपी की सरकार नहीं बनी.
पर विपक्ष पूरे देश में यह प्रणाली नहीं लागू होने देना चाहता. संसद में हंगामा और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं के जरिए प्रक्रिया पर सवाल उठाए. लेकिन कोर्ट ने बायोमेट्रिक सिस्टम को पूरी तरह खारिज नहीं किया. उनकी चिंताएं दुरुपयोग और तकनीकी खामियों पर केंद्रित थीं. अगर किसी भी सिस्टम में खामियों हैं तो उनमें सुधार किया जा सकता है पूरी तरह खारिज नहीं . पर जब सोच ईमानदार हो तब ही ऐसा हो सकता है. अभी तो केवल यह नरेटिव सेट करना है कि कर्नाटक, महाराष्ट्र के बाद बिहार में भी फर्जी तरीके से एनडीए चुनाव जीतने की तैयारी कर रही है. इसलिए भी किसी भी तरह के सुधार का विरोध करना है.
एसआईआर से भी फर्जी और डुप्लीकेट वोट रोका जा सकता था पर इसका भी विरोध किया गया
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया का उद्देश्य मतदाता सूची को शुद्ध करना था, ताकि फर्जी और डुप्लिकेट वोट को रोका जा सके. 2025 में SIR के तहत 1 अगस्त को जारी मसौदा मतदाता सूची में 65 लाख नाम हटाए गए, जो मृत, स्थानांतरित, या डुप्लिकेट मतदाताओं के थे. चुनाव आयोग ने इसे पारदर्शी प्रक्रिया बताया, जिसमें दावे-आपत्तियों के लिए समय दिया गया. पर संसद को बंधक बनाए रखने के लिए टाइम है, बेंगलुरू के फ्रीडम पार्क में 2023 की मतदाता सूची पर विरोध करने का समय है पर बिहार में एसआईआर ने अगर गलत तरीके से नाम हटाएं हैं तो उनके खिलाफ आपत्ति दर्ज कराने का समय नहीं है.
SIR के जरिए डुप्लिकेट नाम, जैसे एक व्यक्ति के कई मतदाता आईडी, और फर्जी एंट्री (जैसे गैर-मौजूद मतदाता) की जांच के लिए चुनाव आयोग के बीएलओ और राजनीतिक दलों के बीएलए ने डोर टू डोर सर्वे किया है. यह प्रक्रिया बायोमेट्रिक सत्यापन जितनी प्रभावी नहीं, लेकिन नियमित जांच और स्थानीय सत्यापन के जरिए फर्जी वोटिंग को कम करने का एक प्रयास है. पर इस प्रक्रिया का भी इतना विरोध किया गया कि आम लोग यह समझ लें कि चुनाव आयोग एनडीए की सरकार बनवाने में मदद करने के लिए ये सब कर रही है.
संयम श्रीवास्तव