भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी... यह नाम सुनते ही मन अपने-आप श्रद्धा, सम्मान और आत्मीयता से भर जाता है. वे केवल एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि एक विचार, एक परंपरा और एक ऐसी प्रेरणा थे जो समय, सत्ता और परिस्थितियों से कहीं ऊपर थी. उन्होंने जिन-जिन पदों को सुशोभित किया, वे पद उनसे बड़े नहीं हुए; बल्कि उनके व्यक्तित्व, उनके आचरण और उनके शब्दों ने हर पद को गरिमा दी. इसलिए वे सिर्फ वाजपेयी नहीं थे, वे अटल थे. अडिग, दृढ़ और विचारों में अमर.
25 दिसंबर 2025 को हम भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की 101वीं जयंती मना रहे हैं. यह दिन केवल एक महान नेता का जन्मदिन नहीं है, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक चेतना, शालीन राजनीति और सुशासन की परंपरा का उत्सव है. इसी कारण अटल जी की जयंती को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि उनका संपूर्ण जीवन ही सुशासन की जीवंत परिभाषा था- ऐसा शासन जो नियमों से नहीं, मूल्यों से चलता है; जो अधिकार से नहीं, कर्तव्य से प्रेरित होता है.
नई दिल्ली में ‘सदैव अटल’ स्थित उनका स्मारक इस सत्य को मूर्त रूप देता है. काले पॉलिश किए गए ग्रेनाइट के नौ वर्गाकार शिलाखंड, केंद्र में प्रज्ज्वलित दीया और चारों ओर उभरी दीवारों पर अंकित उनके गद्य-पद्य- यह सब मिलकर बताता है कि अटल जी देह से भले ही हमारे बीच न हों, लेकिन उनके विचार, उनके शब्द और उनका राष्ट्रबोध आज भी निरंतर प्रकाशित है. देश के विभिन्न भागों से लाए गए पत्थरों से बना यह स्मारक उसी भारत का प्रतीक है, जिसे वे देखते थे- विविधता में एकता वाला भारत.
कवि के रूप में अटल जी निर्भीक थे, पत्रकार के रूप में राष्ट्रहित के प्रति सजग, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में समाज के लिए समर्पित और राजनेता के रूप में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश को अर्पित कर दिया. सत्ता उनके लिए कभी साध्य नहीं रही, वह केवल सेवा का माध्यम थी. यही कारण है कि जब सत्ता छोड़ने का समय आया, तो उन्होंने बिना किसी जोड़-तोड़, बिना किसी सौदेबाज़ी के उसे त्याग दिया. आज की राजनीति में यह आचरण दुर्लभ है, लेकिन अटल जी के लिए यह स्वाभाविक था.
1998 से 2004 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व ने विकास और समावेशन का संतुलन बनाते हुए भारत की आर्थिक-प्रशासनिक दिशा को नई परिभाषा दी. राजनीतिक अस्थिरता के दौर में उन्होंने स्थिर और प्रभावी शासन देकर भारत को 21वीं सदी में आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ाया. पोखरण परमाणु परीक्षणों में उनका साहस, और विकास के क्षेत्र में उनकी दूरदृष्टि- दोनों समान रूप से निर्णायक रहे.
स्वर्णिम चतुर्भुज ने देश के आर्थिक मानचित्र को जोड़ा, 1999 की दूरसंचार क्रांति ने डिजिटल इंडिया की नींव रखी, और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के माध्यम से 1.5 लाख से अधिक बस्तियाँ विकास की मुख्यधारा से जुड़ीं. FRBM अधिनियम ने राजकोषीय अनुशासन को सुशासन का आधार बनाया. दिल्ली मेट्रो, आईटी, शिक्षा और दूरसंचार में हुई पहलें उनके सुशासन की स्थायी पहचान हैं.
रक्षा मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी ने राष्ट्रीय सुरक्षा को गंभीरता, पेशेवर सोच और दीर्घकालिक दृष्टि दी. कारगिल युद्ध के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना, कमांड ढांचे में सुधार और रणनीतिक योजना को संस्थागत रूप देने से रक्षा प्रशासन मजबूत हुआ. आत्मनिर्भरता पर उनका विश्वास आज आत्मनिर्भर भारत के रूप में आगे बढ़ रहा है, जहाँ हजारों रक्षा MSMEs नवाचार कर रहे हैं, स्वदेशी रक्षा उत्पादन लगातार बढ़ रहा है और मेक इन इंडिया को ठोस समर्थन मिल रहा है. इसी निरंतर सुधार और संकल्प की कड़ी में ऑपरेशन सिंदूर भारत की सैन्य तत्परता, स्वदेशी क्षमता और समुद्री शक्ति का प्रतीक है और यह शांति बनाए रखने के लिए सशक्त तैयारी का संदेश देता है. यही सोच विकसित भारत @2047 की नींव है.
अटल जी की राजनीति में कटुता नहीं थी. वे विपक्ष में थे, फिर भी राष्ट्रीय चेतना के केंद्र में थे. वे विपक्ष में रहते हुए भी मर्यादा नहीं छोड़ते थे और सत्ता में रहते हुए भी आलोचना का सम्मान करते थे. 1996 में सिद्धांतों के लिए त्यागपत्र देना और 1999 में एक वोट से हार स्वीकार करना भारतीय लोकतंत्र और संविधान के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का प्रमाण है.
अटल बिहारी वाजपेयी केवल तीन बार के प्रधानमंत्री नहीं थे; वे एक युग थे. एक ऐसे युग का नाम, जिसमें विरोध भी शालीन था और सत्ता भी संवेदनशील. वे कहते थे- “मौत की उम्र क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िंदगी सिलसिला, आज-कल की नहीं.”
उन्होंने जीवन को भी और राजनीति को भी इसी दृष्टि से जिया न भय से, न अवसरवाद से, बल्कि मूल्यों से.
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अटल जी के देहावसान पर कहा था- “मैं निःशब्द हूँ, शून्य में हूं, लेकिन भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा है.” यह शून्य एक व्यक्ति के जाने का नहीं, बल्कि एक युग के अवसान का था.
मेरा यह सौभाग्य रहा कि मुझे अटल जी के साथ कई कार्यक्रमों में काम करने और उन्हें निकट से देखने-समझने का अवसर मिला. उन्होंने एक बार स्नेहपूर्वक कहा था- “संजय, हमेशा संगठन का कार्यकर्ता बने रहना. संगठन कार्यकर्ताओं के बल पर चलता है. और याद रखना, जनता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है.”
अटल जी से जुड़ी अनेक स्मृतियां हैं. 1980 में दक्षिण छोटानागपुर के दौरे के दौरान रांची के पिस्का मोड़ गुरुद्वारे में शीश नवाने के बाद वे गुमला जा रहे थे. रास्ते में उन्होंने एक झोपड़ी के पास गाड़ी रुकवाई, भीतर जाकर घर की महिला को “मां” कहकर संबोधित किया और सादा भोजन रोटी, भुजिया, प्याज और हरी मिर्च पूरे सम्मान के साथ ग्रहण किया.
1981 में प्रयागराज अधिवेशन के बाद रांची में अचानक सभा का आग्रह हुआ. तेज बारिश शुरू हो गई. जब छाता आगे बढ़ाया गया, तो अटल जी ने कहा, “जब तक तुम भीगते रहोगे, मैं भी भीगता रहूंगा. जब तक तुम सुनते रहोगे, मैं बोलता रहूंगा.”
1983 में पार्टी सहयोग निधि के लिए एक कार्यकर्ता द्वारा अपनी नई कार बेच देने की बात सुनकर उन्होंने मंच से कहा, “जितना राशन दिया, उतना भाषण दिया. अब और दिया है तो और बोलूंगा.”
अटल जी के व्यक्तित्व में राष्ट्रभक्ति कोई नारा नहीं थी, वह जीवन-शैली थी. उनकी कविता, “हम जिएंगे तो भारत के लिए, मरेंगे तो भारत के लिए… भारत माता की जय.”
1996 में सेवा सदन अस्पताल के उद्घाटन पर उन्होंने कहा, “मैं यह आशीर्वाद नहीं दूँगा कि अस्पताल मरीजों से भरा रहे, बल्कि यह अपेक्षा करता हूं कि आप सेवा ऐसी करें कि लोग स्वस्थ रहें.”
आज अटल जी की इसी परंपरा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में आधुनिक संदर्भों में आगे बढ़ाया जा रहा है. न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन की भावना के साथ बीते 11 वर्षों में पारदर्शिता, दक्षता और नागरिक-केंद्रित प्रशासन को सशक्त किया गया है. लगभग 2,000 पुराने नियम समाप्त किए गए. डिजिटल इंडिया, आधार-आधारित प्रमाणीकरण, फेसलेस टैक्स असेसमेंट, जीएसटी, सीपीग्राम्स और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर लागू किए गए.
कल्याण योजनाओं के माध्यम से सेवा को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाया गया है- जन-धन योजना, उज्ज्वला, स्वच्छ भारत मिशन, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना, पीएम-किसान, आयुष्मान भारत, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना.
प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा, “आज हम एक ऐसे भारत में खड़े हैं जो न केवल विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है, बल्कि अपनी पहचान, अपनी मर्यादा और अपनी आत्मा को भी नए सिरे से गढ़ रहा है.”
राजपथ का कर्तव्य पथ बनना, 7 रेस कोर्स रोड का लोक कल्याण मार्ग बनना ये केवल नाम परिवर्तन नहीं, बल्कि मन परिवर्तन हैं.
अटल जी की कविता, “हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा…” आज का भारत भी यही कर रहा है.
अंततः, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी का जीवन एक चलती-फिरती किताब था. उनके विचार, उनकी कविताएँ और उनका आचरण आज भी हमें राह दिखाते हैं.
~सदैव अटल
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