बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी का भाषा आंदोलन कितना कारगर?

ममता बनर्जी के भाषा आंदोलन का मकसद बांग्ला बोलने वालों को एकजुट करना, और विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ नाकेबंदी की कोशिश है. ममता बनर्जी ने प्रवासी बंगालियों से भावनात्मक अपील की है और लौटने पर हर संभव मदद का आश्वासन भी दे रही हैं.

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ममता बनर्जी ने बांग्ला बोलने वाले प्रवासी मजदूरों से पश्चिम बंगाल लौट आने की अपील की है, और हर संभव मदद का आश्वासन दिया है. (Photo: PTI) ममता बनर्जी ने बांग्ला बोलने वाले प्रवासी मजदूरों से पश्चिम बंगाल लौट आने की अपील की है, और हर संभव मदद का आश्वासन दिया है. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 30 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 10:22 AM IST

ममता बनर्जी आने वाले पश्चिम बंगाल चुनाव में संभावित खतरों को लेकर काफी सशंकित हैं, लिहाजा काफी पहले से ही नाकेबंदी शुरू कर दी है. ममता बनर्जी को SIR में भी CAA और NRC जैसा ही राजनीतिक खतरा महसूस हो रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की बातों से तो ऐसा ही लगता है, और यही वजह है कि केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ आक्रामक हो गई हैं. 

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देश के कुछ हिस्सों में बांग्लाभाषी लोगों के खिलाफ पुलिस एक्शन ने ममता बनर्जी को मौका भी दे दिया है. असल में, ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट उन राज्यों से ही आई है जहां बीजेपी की सरकार है. मौका हाथ लगते ही, ममता बनर्जी खुल कर बीजेपी के खिलाफ खेलने लगी हैं, ताकि आने वाले विधानसभा चुनाव में फिर से 'खेला' किया जा सके - लेकिन, बीजेपी भी अब पहले से ज्यादा सतर्क है. 

केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बाद से कई राज्य बीजेपी नेतृत्व की आंखों में खटकता रहा है. दिल्ली के किले पर फतह के बाद बीजेपी का अगला लक्ष्य पश्चिम बंगाल ही है. कहां बीजेपी 2019 के आम चुनाव में मिली कामयाबी से आगे बढ़ना चाहती थी, और कहां 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में झटके पर झटके खाने पड़ गये - अब तो वो जख्मी शिकारी की तरह मौके की तलाश में बैठी है.  

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ममता बनर्जी को मालूम है कि अगर समय से बीजेपी के खिलाफ मुहिम शुरू नहीं की, मुश्किलें विकराल और बेकाबू हो सकती हैं - और यही सब देख और सोच-समझकर ममता बनर्जी ने भाषा आंदोलन शुरू किया है. 

अब सवाल ये उठता है कि बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी का भाषा आंदोलन कितना कारगर साबिते हो पाता है? 

ममता का भाषा आंदोलन कितना प्रभावी होगा

नाम भले ही भाषा आंदोलन रखा गया हो, लेकिन असल में ये तृणमूल कांग्रेस का चुनाव कैंपेन है. ममता बनर्जी ने भाषा आंदोलन की शुरुआत पश्चिम बंगाल के बोलपुर से की है. भाषा आंदोलन के तहत कदम कदम पर बांग्ला भाषा पर जोर है. ममता बनर्जी ने कहा भी था कि आगे से वे लोग बांग्ला भाषा में ही बात करेंगे - और संसद के मॉनसून सत्र में टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी ने बांग्ला भाषा में अपना भाषण देकर मुहिम को विस्तार देने की पूरी कोशिश भी की है. 

ममता बनर्जी का भाषा आंदोलन थोड़ा अलग है. ये मुहिम किसी एक भाषा के लिए दूसरी भाषा से परहेज की बात नहीं करती. जैसे महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में देखने को मिलता है. महाराष्ट्र में तो मराठी भाषा के नाम पर बीस साल से बिछड़े भाई राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे हाथ मिलाकर रैली करने लगे हैं, और इतने करीब आ गये हैं कि घर पहुंचकर बर्थडे की बधाई तक देने लगे हैं. महाराष्ट्र की तरह ही तमिलनाडु में भी ये मुद्दा हिंदी विरोध का रूप ले लेता है - लेकिन ममता बनर्जी को हिंदी से बिल्कुल भी विरोध नहीं है. 

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ममता बनर्जी साफ तौर पर कह रही हैं कि वो कभी नहीं चाहेंगी कि हिंदी भाषी बंगाल से चले जाएं. ममता बनर्जी तो बस बांग्ला बोलने वालों को टार्गेट किए जाने से खफा हैं. ममता बनर्जी का आरोप है कि बीजेपी शासित राज्यों में बंगाली प्रवासी मजदूरों को डिटेंशन कैंप में भेजा जा रहा है - और इसी को लेकर कह रही हैं कि वो अपनी जान दे देंगी, लेकिन किसी को अपनी भाषा छीनने की इजाजत नहीं देंगी.

बीजेपी पर भाषाई आतंकवाद का इल्जाम लगाते हुए ममता बनर्जी कहती हैं, हम भाषाई आतंकवाद के नाम पर हमारे अस्तित्व को खतरे में डालने की साजिश, और पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करने की इस कोशिश को रोकेंगे... मैं बंगाल में एनआरसी लागू करने या डिटेंशन कैंप बनाने की इजाजत नहीं दूंगी.

1. ममता बनर्जी ने अपना स्टैंड साफ करने की कोशिश की है. ममता बनर्जी का कहना है, मैं ऐसे राष्ट्र की कल्पना को स्वीकार नहीं करती जो सिर्फ बांग्ला बोलने के कारण प्रवासी की हत्या कर दे.

2. ममता बनर्जी बताती हैं कि बांग्ला दुनिया में पांचवीं और एशिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, फिर भी बंगालियों को प्रताड़ित किया जा रहा है. पूछती हैं, य नफरत क्यों? अगर बंगाल दूसरे राज्यों से आए 1.5 करोड़ प्रवासी मजदूरों को स्वीकार कर सकता है... उनको आश्रय दे सकता है, तो आप दूसरे राज्यों में काम करने वाले 22 लाख प्रवासी बंगालियों को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते? जाहिर है, ममता बनर्जी का ये सवाल बीजेपी से ही है.  

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3. और फिर साफ साफ चेतावनी देती हैं,  अगर बंगाल से नाम हटाने की कोशिश करोगे, तो नतीजे भुगतने होंगे... क्या आप हमारी माताओं, बहनों और हमारे कल्चरल ग्रुप के विरोध को फेस करने के लिए तैयार हैं, जब वे अहिंसक तरीके से आपके खिलाफ उठ खड़े होंगे? 

4. ममता बनर्जी एक बात बात बार बार दोहरा रही हैं, हमारी किसी भाषा से दुश्मनी नहीं है... मैं किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं हूं... लेकिन, अगर आप हमारी भाषा और संस्कृति को मिटाने की कोशिश करेंगे, तो हम शांतिपूर्ण तरीके से, पूरी ताकत से... और राजनीतिक रूप से विरोध करेंगे. 

बंगाली मजदूरों को लौटने पर हर संभव मदद का वादा

जैसे बिहार में प्रशांत किशोर छठ पर आने के बाद किसी को भी काम के लिए लौटकर वापस न जाने देने का दिलासा दिलाते हैं, वैसे ही ममता बनर्जी प्रवासी बंगाली मजदूरों से पश्चिम बंगाल लौट आने की अपील कर रही हैं - खास बात ये है कि ममता बनर्जी ने बड़ी ही भावनात्मक अपील की है. 

बंगाली मिठाइयों का नाम लेते हुए ममता बनर्जी ने कहा, मैं शायद आपको पिठा या पायस न खिला पाऊं... अगर हम एक रोटी खाते हैं, तो आपको भी एक रोटी जरूर देंगे... आपको उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र या राजस्थान में रहने के जरूरत नहीं हैं... आप यहां शांति से रह सकते हैं.

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मुख्यमंत्री के मुताबिक, बंगाल के करीब 22 लाख प्रवासी मजदूर अलग अलग राज्यों में काम कर रहे हैं - और ममता बनर्जी ने ऐसे सभी मजदूरों को राशन कार्ड, हेल्थ कार्ड और रोजगार देने का वादा किया है. कहा है, हम आपको सोशल सिक्योरिटी देंगे और आपके बच्चों का स्कूलों में एडमिशन भी करवाएंगे. 

प्रवासी मजदूरों को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी आश्वस्त करती हैं, आपके पास बंगाल पुलिस का हेल्पलाइन नंबर है... कोई समस्या हो तो हमसे संपर्क करें... हमें बताएं कि आप कब बंगाल में वापस आना चाहते हैं? हम आपको ट्रेन से सम्मानपूर्वक वापस लाएंगे.

भला और क्या चाहिये? ऐसे चुनावी वादे काम तो करते ही हैं, बशर्तें पहले से ही न तय कर रखा हो कि बाद में सवाल उठेगा तो जुमला बता देंगे.
 

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