नितिन नबीन की नियुक्ति का बंगाल कनेक्‍शन, भद्रलोक में कितने प्रभावशाली हैं कायस्‍थ

बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन कायस्थ जाति से आते हैं. इनकी जनसंख्या यूपी-बिहार ही नहीं पूरे देश में कहीं भी भी इतनी नहीं है कि वो राजनीति को प्रभावित कर सकते हों. पर बंगाल में आजादी के बाद 37 साल तक कायस्थों के हाथ में सत्ता रही है. आइये देखते हैं कि नबीन की नियुक्ति का बंगाल से क्या है रिश्ता?

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बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए नितिन नबीन की उम्र महज 45 साल है. (File Photo- ITG) बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए गए नितिन नबीन की उम्र महज 45 साल है. (File Photo- ITG)

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 15 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:03 PM IST

भारतीय जनता पार्टी ने 14 दिसंबर 2025 को एक ऐसा फैसला लिया, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है. बिहार के कैबिनेट मंत्री और पांच बार के विधायक नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. मात्र 45 वर्ष की आयु में यह नियुक्ति भाजपा के इतिहास में सबसे युवा राष्ट्रीय नेता के रूप में दर्ज हो गई है. नितिन नबीन, जो बिहार के बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं, अब जेपी नड्डा के बाद पार्टी के संगठनात्मक चेहरे के रूप में उभर रहे हैं. सोशल मीडिया पर यह कहा जा रहा है कि नितिन नबीन के बहाने भारतीय जनता पार्टी बंगाल विधानसभा चुनावों में बढ़त बनाना चाहती है.

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लेकिन सवाल यह उठता है कि बिहार के इस नेता का पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनावों से क्या लेना-देना? और क्या यह नियुक्ति भाजपा की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसमें बंगाली 'भद्रलोक' को प्रभावित करने का प्रयास किया जा रहा है? पश्चिम बंगाल 2026 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की नजरें टीएमसी की ममता बनर्जी पर टिकी हैं. 

2021 के चुनावों में भाजपा ने 77 सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी, लेकिन अब लक्ष्य 200 से अधिक सीटें हासिल करना है. बंगाल की राजनीति में जाति, संस्कृति और बौद्धिक वर्ग (भद्रलोक) की भूमिका हमेशा से महत्वपूर्ण रही है. नितिन नबीन की नियुक्ति को विशेषज्ञ एक 'मास्टरस्ट्रोक' बता रहे हैं, क्योंकि उनकी कायस्थ जाति बंगाल के भद्रलोक से सीधे जुड़ती है. क्या नबीन की नियुक्ति बंगाली भद्रलोक को इम्प्रेस करने में सफल होगी?

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नितिन का बंगाल से कनेक्शन उनकी जाति और छवि से जुड़ा है. कायस्थ होने के नाते वे बंगाल के उस वर्ग से जुड़ते हैं, जो सदियों से राज्य की सत्ता और संस्कृति को आकार देता आया है. बिहार और बंगाल के बीच सांस्कृतिक समानताएं हैं. दोनों में कायस्थ, ब्राह्मण और वैद्य समुदायों का प्रभाव है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला अमित शाह की रणनीति का हिस्सा है, जो बंगाल को 'अगला बड़ा लक्ष्य' मानते हैं. 

क्या है बंगाली भद्रलोक

भद्रलोक शब्द बंगाली संस्कृति का प्रतीक है. 19वीं शताब्दी के बंगाल रेनेसां के दौरान यह शब्द उभरा, जब ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य समुदायों ने शिक्षा, साहित्य और प्रशासन पर कब्जा किया. भद्रलोक को 'जेंट्री' या 'इंटेलिजेंटसिया' कहा जाता है. ये वे लोग हैं जो कोलकाता के कॉफी हाउस, रवींद्र सदन और दुर्गा पूजा की सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़े हैं. ऐतिहासिक रूप से, बंगाल की सत्ता भद्रलोक के हाथ रही है. स्वतंत्रता के बाद सीपीआई(एम) के 34 वर्षों के शासन में ज्योति बसु (कायस्थ) 23 वर्ष मुख्यमंत्री रहे, जबकि विधान चंद्र रॉय (कायस्थ) 14 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे. कुल 37 वर्ष कायस्थ मुख्यमंत्रियों के हाथ में पश्चिम बंगाल की सत्ता रही. 

सुभाष चंद्र बोस, स्वामी विवेकानंद जैसी महान विभूतियां भी कायस्थ थे. भद्रलोक वोट (लगभग 15-20%) शहरी क्षेत्रों में निर्णायक होता है. और सबसे बड़ी बात यह है कि यह भद्रलोक ही बंगाल में माहौल बनाता है. ये लोग जो करते हैं बाकी लोग उनका अनुसरण करते हैं. यूपी और बिहार की तरह यहां का पिछड़ा समुदाय खुद को इन भद्रलोक से प्रतिस्पर्धा या चुनौती के रूप में नहीं देखता है. 

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भद्रलोक की विशेषता रही है कि ये लोग खुद को बौद्धिक समझते रहे हैं. इसके कारण ये अपने को सेकुलर कहलाने में गर्व फील करते रहे हैं. शायद वाम दलों के लंबे समय तक शासन में रहने के चलते भी ये कारण रहा हो. दक्षिणपंथी विचारधारा को ये लोग बहुत हेय दृष्टि से देखते रहे हैं. बीजेपी ये समझ गई है कि बंगाल पर विजय हासिल करना है तो यहां के भद्रलोक में पैठ बनानी होगी. 

यही कारण रहा है कि हाल के वर्षों में आरएसएस ने यहां की सांस्कृतिक गतिविधियों में घुसने का प्रयास किया है. भाजपा जानती है कि भद्रलोक को इम्प्रेस करने से शहरी वोटबैंक मजबूत होगा.

बंगाली पहचान और अस्मिता के लिए भद्रलोक में पैठ

पश्चिम बंगाल की राजनीति हमेशा से जटिल रही है. 2021 के चुनावों में भाजपा ने 18% वोट शेयर के साथ 77 सीटें जीतीं, लेकिन टीएमसी ने 213 सीटों पर कब्जा जमा लिया था. 2026 में भाजपा का लक्ष्य 'मिशन 200' है. लेकिन चुनौतियां कम नहीं. ममता बनर्जी की 'बंगाली अस्मिता' की राजनीति ने भाजपा पर 'बाहरी' का ठप्पा लगा दिया है. इसके अलावा, मुस्लिम वोट बैंक (लगभग 27%) टीएमसी के पक्ष में है, जबकि हिंदू वोट (लगभग 70%) में विभाजन भाजपा के लिए अवसर है.

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पश्चिम बंगाल की राजनीति में 'भद्रलोक' शहरी, शिक्षित ऊपरी जाति (ब्राह्मण, कायस्थ, वैद्य) का प्रतीक हमेशा से निर्णायक रहा है. 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा की नजर इसी वर्ग पर है. बिहार की ऐतिहासिक जीत के बाद, पार्टी 'मिशन बंगाल' में ममता बनर्जी के 'बाहरी'के आरोप को उलट सके, ऐसा चाहती है. भाजपा जानती है कि भद्रलोक (लगभग 15-20% वोटर) शहरी कोलकाता और उत्तरी बंगाल में फैला है, जहां टीएमसी का दबदबा है. 

अब पार्टी 'बंगाली प्राइड' को अपनाने की कोशिश कर रही है. अमित शाह की अगुवाई में 'ऑपरेशन सिंदूर' और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से बंगाली आइडेंटिटी को हाईजैक करने का प्लान है. बंगाली अस्मिता भाजपा के लिए सबसे बड़ा रोड़ा है. ममता ने 'जय बंगाल' और दुर्गा पूजा को अपनी ब्रांडिंग का हथियार बना लिया है, जबकि भाजपा को 'उत्तर भारतीय' ठप्पा लगा दिया है. केंद्र की एनडीए सरकार ने संसद में वंदे मातरम डिबेट भी इसलिए ही कराया. एक रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा का 'आउटसाइडर' टैग 2021 में ही नुकसानदेह साबित हुआ. बीजेपी की कोशिश होगी आगामी विधानसभा चुनावों तक इससे मुक्त हो सके. 

नितिन नबीन: भद्रलोक को इम्प्रेस करने का हथियार?

नितिन की 'सॉफ्ट' इमेज—युवा, शिक्षित, गैर-आक्रामक भाजपा के पारंपरिक 'हिंदुत्व' चेहरे से अलग है. वे ममता बनर्जी के 'भावुक' स्टाइल का काउंटर कर सकते हैं. नबीन की नियुक्ति पर आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने जिस तरह से उनकी तारीफ की है वह बताता है कि नबीन की कार्यशैली आम नेताओं से अलग हटकर है. 

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नियुक्ति के तुरंत बाद एक टीवी इंटरव्यू में नितिन ने कहा, हम बंगाल भी जीतेंगे. एक्स पर एक यूजर ने लिखा, नितिन नबीन कायस्थ भद्रलोक वोट प्रभावित करेंगे, जो बंगाल का बड़ा चंक है. एसआईआर से कांगलू (पिछड़ी जातियों) का ध्यान रखा जा रहा है. यह भाजपा का पिंसर मूव है. नबीन का कायस्थ कनेक्शन महत्वपूर्ण है, क्योंकि बंगाल में कायस्थ वोट भद्रलोक का कोर है. बोस, मित्रा, घोष जैसे उपनाम वाले कायस्थ परिवार भाजपा की ओर झुक सकते हैं, अगर विकास और सांस्कृतिक अपील हो.

बैकग्राउंड: बिहार से राष्ट्रीय पटल तक का सफर

नितिन नबीन का जन्म 1980 में पटना, बिहार में एक कायस्थ परिवार में हुआ. कायस्थ समुदाय, जो परंपरागत रूप से प्रशासनिक और बौद्धिक कार्यों से जुड़ा रहा है, बिहार और बंगाल दोनों राज्यों में प्रभावशाली है. नितिन ने अपनी शिक्षा पटना से पूरी की और शुरू में राजनीति से दूरी बनाए रखी. लेकिन 2005 में वे भाजपा से जुड़े और 2010 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. 2020 के बिहार चुनावों में उन्होंने बांकीपुर 51,000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की.

वर्तमान में वे बिहार सरकार में सड़क निर्माण मंत्री हैं. उनकी छवि एक 'सॉफ्ट' और युवा नेता की है, जो अमित शाह के करीबी माने जाते हैं. भाजपा युवा मोर्चा (बीजेवाईएम) के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके नितिन ने बिहार में पार्टी को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई. 2025 के बिहार चुनावों में भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाने में उनकी मेहनत सराहनीय रही. पीएम मोदी ने खुद उनकी नियुक्ति पर बधाई दी, ये कहते हुए कि नितिन नबीन जैसे युवा नेता पार्टी को नई ऊर्जा देंगे. 

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