बिहार विधानसभा चुनावों में NDA की शानदार जीत ने भाजपा को एक नया आत्मविश्वास दिया है. विशेषकर इसलिए क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि इस जीत में कुछ हिस्सों में मुस्लिम मतदाताओं का अप्रत्याशित समर्थन मिला है. यही कारण है कि जब चुनाव आयोग देश के अलग-अलग राज्यों में Special Intensive Revision (SIR) के तहत वोटर सूची की समीक्षा आगे बढ़ा रहा है, तब भाजपा की भाषा और प्राथमिकताएं राज्यों के हिसाब से बदलती दिख रही हैं.
बिहार में ‘घुसपैठियों को हटाने’ का मुद्दा बेहद आक्रामक रूप से उठाया गया था, लेकिन बंगाल में भाजपा अब नरम लहजे का प्रयोग कर रही है.और यह बदलाव सिर्फ रणनीति नहीं, बल्कि राजनीतिक आवश्यकता का संकेत है. हाल ही में बिहार विधानसभा चुनावों में भारी जीत दर्ज करने से पहले, भाजपा ने चुनाव आयोग (EC) की मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर कड़ा रुख अपनाया था. पार्टी का दावा था कि यह प्रक्रिया घुसपैठियों जिनमें बांग्लादेश से आए लोग शामिल हैं को बाहर करना है. वहीं विपक्ष का आरोप था कि इस प्रक्रिया में मुसलमानों को मतदाता सूची से हटाने का निशाना बनाया जा रहा है.
बंगाल में बीजेपी क्यों अलग फॉर्मूला अपना रही है
बिहार में जाति-आधारित राजनीति और प्रो इंकंबेंसी का गणित भाजपा-जेडीयू गठबंधन के लिए अनुकूल रहा. लेकिन पश्चिम बंगाल में सत्ता विरोधी लहर सीमित है और 2011 से लगातार सत्ता में रही ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने अल्पसंख्यक वोट को मजबूती से साध रखा है.
2011 की जनगणना के अनुसार, बंगाल की लगभग 27% आबादी मुस्लिम है. और इनका निर्णायक प्रभाव 40–50 सीटों तक सीमित नहीं है. कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता बहुसंख्यक न होकर भी ‘किंगमेकर’ की भूमिका में हैं. 2021 विधानसभा और 2024 लोकसभा चुनावों में भाजपा को मुस्लिम वोट लगभग न के बराबर मिले. यही भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई.
अब, पार्टी नेतृत्व स्वीकार कर रहा है कि मुस्लिम वोटों को पूरी तरह खोने की रणनीति बंगाल में नहीं चल सकती.कई मुस्लिम समूह TMC से नाराज़ हैं या CPI(M)-कांग्रेस की ओर झुकते नजर आ रहे हैं. भाजपा इनका कुछ प्रतिशत वोट भी अपनी ओर खींच लिया तो परिणामों पर प्रभाव पड़ना तय है.यही वजह है कि भाजपा अब ‘सॉफ्ट आउटरीच’ की राह पर है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार एक वरिष्ठ भाजपा नेता कहते हैं कि बंगाल के लिए अलग फ़ॉर्मूला चाहिए क्योंकि यहां जाति राजनीति प्रमुख मुद्दा नहीं है और ध्रुवीकरण भी उतना गहरा नहीं है. इसलिए भाजपा को क्षेत्रीय और धार्मिक समीकरणों का संतुलन बनाना होगा बिहार में इस बार भाजपा को मुस्लिम समुदाय से वोट मिले हैं इससे हमें बंगाल में भी भरोसा मिला हैं.
राष्ट्रवादी मुसलमान के नाम पर बीजेपी की नई रणनीति
बंगाल BJP के नए अध्यक्ष, समीक भट्टाचार्य, पार्टी की भाषा में एक स्पष्ट बदलाव लेकर आए हैं. वे खुले मंचों से सवाल उठाते हैं कि गुजरात या महाराष्ट्र के मुसलमानों जैसी आर्थिक प्रगति बंगाल के मुसलमान क्यों नहीं कर पा रहे? वे कहते हैं कि पिछले तीन वर्षों में बंगाल में राजनीतिक हिंसा में मारे गए ज़्यादातर लोग मुसलमान हैं. ये मुसलमान ही मुसलमानों को मार रहे हैं.
यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिंदुत्व बनाम धर्मनिरपेक्षता के टकराव से हटकर मुसलमानों की आंतरिक समस्याओं, अवसरों और विकास की चर्चा की ओर बढ़ता है. भाजपा इसे नया नैरेटिव बनाना चाहती है, विकास बनाम पहचान की राजनीति. इसके साथ भाजपा नेताओं का नया संदेश है कि हम ‘राष्ट्रवादी भारतीय मुसलमानों’ के खिलाफ नहीं हैं. हम सिर्फ घुसपैठियों, जिहादियों और रोहिंग्या के खिलाफ हैं.
यह लाइन भाजपा को दो मोर्चों पर मदद करती है. मुस्लिम वोटर्स को संकेत मिलता है कि पार्टी सभी मुसलमानों को एक वर्ग के रूप में नहीं देखती. हिंदू समर्थकों को यह आश्वासन मिलता है कि ‘राष्ट्रवाद’ की केंद्रीय धारा कमजोर नहीं होगी.
सुवेंदु अधिकारी की टोन भी बदली हुई है
ऐसा देखा जा रहा है कि विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने भी TMC के भाजपा मुस्लिम-विरोधी है वाले आरोपों का मुकाबला करने के लिए हाल में अपने हिंदू ध्रुवीकरण वाले रुख को नरम किया है. नवंबर 2024 में बांग्लादेश में हिंदू सन्यासी चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद, अधिकारी के नेतृत्व में बंगाल भाजपा ने सनातनी हिंदुओं के समर्थन में कई रैलियां की गईं थीं. तब उन्होंने कहा था कि बंगाल में हिंदू एकजुट नहीं हैं. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में हिंदू एकजुट हुए… हरियाणा में हुए… महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी की भूमि पर भी हुए हैं.
इसके बाद उनका बयान और तीखा होता गया, और भाजपा ने ममता व TMC को हिंदू-विरोधी के रूप में प्रस्तुत किया. अधिकारी ने यहां तक कहा कि 2026 के चुनावों के बाद भाजपा बंगाल में सत्ता में आएगी और मुस्लिम विधायकों को विधानसभा से बाहर का रास्ता दिखाएगी.
लेकिन बिहार में NDA की जीत के एक सप्ताह बाद अधिकारी के सुर बदले बदले से हैं. उन्होंने कहा कि TMC ने झूठी कहानी फैलाई है कि भाजपा मुस्लिम-विरोधी है. हम तो सभी समुदायों के समावेशी विकास के पक्ष में हैं. हमने कभी मुसलमानों को वोट बैंक नहीं माना. भाजपा-शासित राज्यों और केंद्र में मुसलमानों के लिए हुए विकास कार्यों को देखिए. भारतीय मुसलमान SIR का समर्थन कर रहे हैं, जिसका मकसद केवल अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या को मतदाता सूची से हटाना है.
हालांकि राष्ट्रवादी मुसलमानों के समर्थन की बात आज की नहीं है
बीजेपी नेता अब कह रहे हैं कि हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि हम राष्ट्रवादी भारतीय मुसलमानों के खिलाफ नहीं हैं. हमारी समस्या केवल घुसपैठियों, जिहादियों और रोहिंग्या से है. पर पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने कहते हैं कि हमने कभी अपनी बात नहीं बदली. हमने हमेशा कहा है कि जो मुसलमान देश से प्रेम करते हैं, हम उनके खिलाफ नहीं हैं.
भाजपा के इस नए रुख पर TMC और CPI(M) दोनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी.CPI(M) के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम कहते हैं कि यह कौन तय करेगा राष्ट्रवादी कौन है और कौन नहीं है. ये तो हो नहीं सकता कि भाजपा के साथ जो हैं वे राष्ट्रवादी और बाकी सब देश-विरोधी? सलीम कहते हैं कि दरअसल बीजेपी यही चाहती है. TMC नेता भी यही कहते हैं कि भाजपा को लोगों को राष्ट्रवादी या गैर-राष्ट्रवादी कहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं. पहले भाजपा ने हिंदुओं और मुसलमानों को बांटा. अब मुसलमानों को भी राष्ट्रवादी और गैर-राष्ट्रवादी में बांट रही है.
लेकिन अगर इतिहास पर दृष्टि डालें तो भाजपा और उसके वैचारिक परिवार में राष्ट्रवादी मुसलमान की अवधारणा नई नहीं है. समय-समय पर भाजपा ने मुस्लिम समुदाय के भीतर एक ऐसे वर्ग को पहचानने की कोशिश की है, जो राष्ट्रवाद, सुरक्षा, विकास और सांस्कृतिक सामंजस्य जैसे मुद्दों पर उसके साथ चल सके. इसी के तहत एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाया गया था. 1990 और 2000 के दशक में भाजपा ने कई मुस्लिम संगठनों से संवाद की कोशिश की. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में यह प्रयोग और भी स्पष्ट दिखा. जहां विकास योजनाओं, मदरसा सुधार, और अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से भाजपा यह संदेश दे रही थी कि वह ‘समग्र विकास’ की पक्षधर है.
नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल के दौरान भी सबका साथ -सबका विकास का नारा मुस्लिम समुदाय तक पहुंचाने की कोशिश की गई. गुजरात के कुछ जिलों में मुस्लिम उद्यमियों और कारीगर समुदाय का भाजपा की ओर झुकाव इसी नीति का परिणाम माना गया. हाल के वर्षों में भी भाजपा ने कई बार यह दोहराया है कि वह कट्टरपंथियों के खिलाफ है, मुसलमानों के खिलाफ नहीं है.
बीजेपी के लिए यह नीति बैकफायर भी हो सकती है
पश्चिम बंगाल में 2026 चुनावों से पहले बीजेपी की राष्ट्रवादी मुसलमानों को लुभाने की रणनीति पर जोर एक जोखिम भरा दांव भी है. क्योंकि यह नीति बैकफायर भी कर सकती है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षो् में बीजेपी का वोटर हिंदुत्व को लेकर कट्टर होता जा रहा है. अगर पार्टी अपनी मूल विचारधारा से फिलसती है तो जाहिर है कि कोर वोटर्स छला हुआ महसूस करेगा. दूसरी तरफ मुस्लिम वोट (27-33%) मिलना इतना आसान भी नहीं है. मतलब साफ है कि मुस्लिम आउटरीच के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि पार्टी न इधर की हो और न ही उधर की है. अर्थात हिंदू और मुस्लिम दोनों ही वोटर्स पार्टी से दूरी बना लें.
संयम श्रीवास्तव