Operation Sindoor: असदुद्दीन ओवैसी का राष्ट्रवादी रूप कथित लिबरल्स के लिए चुनौती है?

Operation Sindoor के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने भारतीय सेना के इस कदम का तहेदिल से स्वागत किया है. पहलगाम हमले के बाद ओवैसी लगातार पाकिस्तान पर हमलावर रहे हैं, जबकि कई लिबरल्स और कांग्रेस नेता पहलगाम हमले से जुड़ी अपनी टिप्‍पणियों के कारण विवाद में आए. मोदी सरकार के प्रबल आलोचक रहे ओवैसी का इस मामले में रुख बेहद संतुलित रहा है.

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असदुद्दीन ओवैसी (फाइल फोटो) असदुद्दीन ओवैसी (फाइल फोटो)

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 07 मई 2025,
  • अपडेटेड 11:59 AM IST

भारतीय राजनीति में असदुद्दीन ओवैसी एक दिलचस्‍प किरदार हैं. संघ परिवार उन्हें मुस्लिम लीग के अवशेष के रूप में देखता है और देश की तथकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां उन्हें बीजेपी की बी टीम कहकर संबोधित करती हैं. उनकी बातें इतनी खरी होती हैं कि उनके विरोधी भी उनको जरूर सुनते हैं. यही कारण हैं कि टीवी चैनलों के वो दुलारे हैं. कारण कि उनके नाम पर टीवी हो या यूट्यूब व्यूज मिलने पक्के होते हैं. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति का पहलगाम हमले के बाद नया अवतार दिखाई दिया है. मुस्लिम राष्ट्रवाद के वो पोस्टर बॉय बन कर देश में उभरे हैं. मुसलमानों के अधिकार के नाम पर आग उगलने वाले नेता की छवि से इतर नए ओवैसी अब एक धर्मनिरपेक्ष और प्राउड इंडियन मुस्लिम की भाषा बोल रहे हैं. ओवैसी का राष्ट्रवाद लिबरल्स के धर्मनिरपेक्ष और सांप्रदायिक सद्भाव के वैचारिक ढांचे को चुनौती देता है. यह लिबरल्स को अपने तर्कों को और अधिक मजबूत बनाने पर मजबूर कर सकता है, खासकर जब जनमत राष्ट्रवाद की ओर झुकता दिखाई दे. ओवैसी ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना का स्वागत करते हुए लिखा है कि मैं हमारी रक्षा सेनाओं द्वारा पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर किए गए लक्षित हमलों का स्वागत करता हूं. पाकिस्तानी डीप स्टेट को ऐसी सख्त सीख दी जानी चाहिए कि फिर कभी दूसरा पहलगाम न हो. पाकिस्तान के आतंक ढांचे को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए. जय हिन्द! #OperationSindoor

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1-ओवैसी का घोर राष्ट्रवाद 

उनकी पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) का चुनावी अभियान मुस्लिम पहचान के मुद्दों पर केंद्रित रहा है, जिसके चलते उन्हें मुख्यधारा की राष्ट्रीय पार्टियों के बीच जगह नहीं मिलती रही है. वह न केवल उदारवादियों बल्कि हिंदू दक्षिणपंथ के लिए भी एक समस्या रहे हैं. इस्लाम खतरे में है जैसे नारों , मुस्लिम जनभावनाओं से जुड़े मुद्दों जैसे कि स्कूल की बच्चियों के हिजाब पहनने की ज़िद, मुस्लिम संस्थाओं में सुधार को नकारने में वो सबसे आगे रहे हैं. लेकिन अब उनकी राजनीति बदल गई है.

पहलगाम हमले के बाद उनके सार्वजनिक बयानों का मुख्य विषय यह रहा है कि सभी भारतीय, चाहे उनका धर्म या राजनीति कुछ भी हो, अपने मतभेदों को भूलकर पाकिस्तान और उसके आतंकी प्रतिनिधियों के खिलाफ एकजुट हो जाएं.

 पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो ज़रदारी द्वारा भारत को खून-खराबे की धमकी दिए जाने पर उनका जवाब वायरल हो गया. ओवैसी ने याद दिलाया कि बिलावल की मां बेनज़ीर भुट्टो की हत्या भी घरेलू आतंकवादियों ने की थी.उन्होंने कहा ,उन्हें पहले सोचना चाहिए कि उनकी मां की हत्या किसने की थी. उनकी मां की हत्या घरेलू आतंकवाद से हुई थी. अगर वो यह नहीं समझ सकते, तो कोई उनसे तर्क कैसे कर सकता है? अगर आतंकवाद ने उनकी मां की जान ली, तो हमारी माताओं और बेटियों की हत्या करने वाले भी आतंकवादी ही हैं. उन्हें यह समझना होगा. 

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ओवैसी पाकिस्तान को हर स्तर पर घेरते हैं.  महाराष्ट्र के परभणी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए वे कहते हैं कि हमारी ज़मीन पर हमारे लोगों की हत्या कर के, और धर्म के आधार पर उन्हें निशाना बना कर, आप किस ‘दीन’ की बात कर रहे हैं?… आपने तो ISIS जैसी हरकत की है. 

उन्होंने यहां तक कहा कि भारत को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) पर आक्रमण करके वापस लेना चाहिए.वे पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को जमकर लताड़ते हैं. टू-नेशन थ्योरी को खारिज करते हैं और पाकिस्तानी राज्य की प्रकृति पर सवाल उठाते हैं. और पाकिस्तान पर इस्लाम को बदनाम करने का आरोप लगाते हैं.

ओवैसी सरकार के हर  सैन्य कार्रवाई पर उसे समर्थन देने की बात करते हैं.हो सकता है कि यह उनकी छवि सुधारने का एक रणनीति हो पर जो भी है यह एक शुभ शुरूआत हो सकती है. ओवैसी ने पाकिस्तान को कई बार विफल राष्ट्र और गरीब देश कहते हैं.

2. कांग्रेस की वर्तमान स्थिति

पहलगाम हमले और सिंधु जल संधि निलंबन जैसे मुद्दों पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है.कांग्रेस ने हमले की निंदा की और संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की. राहुल गांधी और अन्य नेताओं ने पाकिस्तान के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की, लेकिन उनके बयान ओवैसी की तरह तीव्र या आक्रामक नहीं थे. उदाहरण के लिए, राहुल गांधी ने कहा, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, और सरकार को जवाब देना होगा. जबकि ओवैसी सीधे पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हैं और पाकिस्तान को एक विफल राष्ट्र की संज्ञा देते हैं.

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कांग्रेस पर अक्सर नरम या पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति रखने का आरोप लगता रहा है. पर जिस तरह कांग्रेस नेताओं सिद्धारमैया, अजय राय आदि ने पाकिस्तान के प्रति नरम रुख वाला भाव दिखाया है उससे बीजेपी के टुकड़े टुकड़े गैंग जैसे आरोपों को बल मिला है. कांग्रेस की रणनीति में एक संतुलन की कोशिश दिखती है, जहां वे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों वोटरों को आकर्षित करना चाहते हैं. यही कारण है कि सोशल मीडिया में पाकिस्तान के खिलाफ बयानों में कांग्रेस की तुलना में ओवैसी के बयानों को अधिक प्रभावी बताया गया. यह कहते हुए कि कांग्रेस के पास ओवैसी जैसा साहस नहीं है. 

3- ओवैसी के नए रुख से लिबरल्स को बेचैन कर सकता है

ओवैसी का यह राष्ट्रवादी रुख लिबरल्स और धर्मनिरपेक्ष ताकतों के लिए बेचैनी भरा  हो सकता है जो पाकिस्तान के साथ संबंधों को लेकर अधिक संवादात्मक या नरम नीतियों की वकालत करते हैं. जैसे मणि शंकर अय्यर या सैफुद्दीन सोज, को पाकिस्तान के साथ बातचीत करने की वकालत करते हैं , पर ओवैसी का रुख इनके दृष्टिकोण के विपरीत है.ओवैसी का बयान जैसे पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है, जो भारत को शांति से जीने नहीं देगा भारत के तथाकथित लिबरल्स के संवादात्मक दृष्टिकोण को चुनौती देता हैं.  ओवैसी की राजनीति को कुछ लोग सांप्रदायिक राजनीति के रूप में देखते रहे हैं, जबकि अन्य उनकी राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा करते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ लोग मानते हैं कि ओवैसी का रुख मुसलमानों की एकता और भारत की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि अन्य इसे राजनीतिक लाभ के लिए एक रणनीति मानते हैं. 

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ओवैसी का नया रुख लिबरल्स के लिए भविष्य में कई चुनौतियां पैदा कर सकता है.ओवैसी का राष्ट्रवादी रुख विपक्षी दलों, विशेष रूप से लिबरल्स के बीच गठबंधन बनाने में बाधा डाल सकता है. यदि ओवैसी दक्षिणपंथी नेताओं के साथ अनजाने में गठबंधन बनाते हैं, तो यह लिबरल्स की एकता को प्रभावित कर सकता है. मुस्लिम वोटरों के बीच ओवैसी का बढ़ता प्रभाव लिबरल्स को अपनी चुनावी रणनीतियों में बदलाव करने पर मजबूर कर सकता है. उनकी बेबाकी और सोशल मीडिया पर उन्हें मिल रहे समर्थन से लिबरल्स को भविष्य में एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी मिलना तय है. 

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