बुधवार को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की आई एक सोशल मीडिया पोस्ट एक झलक में तो नारी सशक्तिकरण का प्रतीक लगी, लेकिन गहराई से देखें तो यह राजनीतिक दूरदर्शिता या कहें कि मजबूरी का नमूना भी प्रतीत हुई. उनकी एक्स पोस्ट में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी की चार महिला सांसदों प्रिया सरोज, इकरा हसन चौधरी, डिंपल यादव और कृष्णा देवी शिवशंकर की एक हंसमुख तस्वीर साझा की गई है.
कैप्शन में लिखा है कि 'संसद में पीडीए का परचम लहरातीं सपा की ज़िम्मेदार जन प्रतिनिधि. नारी शक्ति का विकास कहने से नहीं, उन्हें सच्चा प्रतिनिधित्व देने से होगा. पीडीए में ‘आधी आबादी’ के रूप में शामिल हर स्त्री का सम्मान और समृद्धि हमारा संकल्प है.' फिर आगे आखिलेश ने पीडीए का नया फुल फॉर्म दिया है... PDA में शामिल ‘A’ मतलब ‘आधी आबादी’ मतलब हर बच्ची, युवती, नारी, महिला को सामाजिक-आर्थिक रूप से सम्मान देने और अपने पैरों पर खड़े होने के लिए हम ‘स्त्री सम्मान-समृद्धि योजना’ लाएंगे.
यह ट्वीट तुरंत वायरल हो गया—21 हजार से ज्यादा व्यूज, 1500 लाइक्स. लेकिन जल्द ही कमेंट्स की बाढ़ आ गई. कई मुस्लिम हैंडल्स ने इस पर रोष जताया. लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार परवेज अहमद तंज करते हुए लिखते हैं कि - 'बहुत खूब, PDA के A का अर्थ आधी आबादी... P: पिछड़ा, D: दलित, A: आधी आबादी ( महिलाएं). एक यूजर ने लिखा कि 'A मतलब आधी आबादी तो अल्पसंख्यक कहां गया, दरी बिछाने? पहले पीडीए का फुल फॉर्म तो कन्फर्म कर लो.' बिहार चुनावों को याद करिए असदुद्दीन ओवैसी ने आरजेडी जैसी पार्टियों के लिए यही तंज कसा था कि ये पार्टियां मुसलमानों से दरी बिछाने का काम करवाती है. शायद मुसलमानों को उनकी बात समझ में भी आ गई. बिहार में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने कुल 5 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. वहीं, कई सीटों पर मुस्लिम वोट बिखर जाने से RJD और कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ.
कैसे-कैसे बदला अखिलेश का पीडीए फॉर्मूला
समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का 'पीडीए' फॉर्मूला उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक क्रांतिकारी रणनीति साबित हुआ. पीडीए का पूरा रूप 'पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक' है, जो पारंपरिक 'मुस्लिम-यादव' (एमवाई) वोट बैंक को विस्तार देने का प्रयास था. यह फॉर्मूला 2024 लोकसभा चुनावों में सपा को 37 सीटें दिलाने का प्रमुख कारण बना, जिसने बीजेपी को कड़ी टक्कर दी. लेकिन बीच-बीच में अखिलेश ने 'ए' (A) के अर्थ को विस्तृत किया—'आधी आबादी' (महिलाएं) और 'अगड़ा' (उच्च वर्ग) को जोड़कर इसे अधिक समावेशी बनाने की कोशिश की. पर कभी भी उन्होंने अल्पसंख्यक वर्ग को निगलेक्ट नहीं किया.
पीडीए फॉर्मूला की जड़ें 2022 यूपी विधानसभा चुनावों में हैं, लेकिन इसका औपचारिक उद्घाटन जून 2023 में हुआ. अखिलेश ने 21 जून 2023 को एक्स पर पीडीए को परिभाषित करते हुए लिखा कि पीडीए शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक की एकजुटता का नाम है. यह बयान पटना में विपक्षी एकता बैठक से ठीक पहले आया, जहां नीतीश कुमार ने इंडिया गठबंधन की नींव रखी थी.
अखिलेश ने कहा था कि पीडीए ही एनडीए को हराएगा. यह फॉर्मूला सपा के कोर वोट यादव (8-10%) और मुस्लिम (19%) को अन्य पिछड़ों (45%) और दलितों (21%) से जोड़ने का हथियार था. 30 अक्टूबर 2023 को लखनऊ में साइकिल यात्रा के दौरान अखिलेश ने कहा: पीडीए में 'ए' का मतलब अल्पसंख्यक के अलावा अगड़ा (उच्च वर्ग), आदिवासी और आधी आबादी (महिलाएं) भी है. जुलाई 2024 के एक्स पोस्ट में अखिलेश ने लिखा: पीडीए पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक-आदिवासी-आधी आबादी और अगड़ों में उत्पीड़ितों को बचाने वाली नीति है.
अखिलेश यादव ने इसी आधार पर लोकसभा चुनावों में 11 उच्च वर्ग, 27 ओबीसी और 15 दलित उम्मीदवार उतारे, जो 'अगड़ा' को जोड़ने का प्रमाण था. लेकिन कभी भी अखिलेश ने पीडीए में से अल्पसंख्यकों को हटाने की जुर्रत नहीं की. पर अब अगर वो ऐसा कर रहे हैं तो जाहिर है उनकी यह रणनीति हो सकती है.
अखिलेश का ताजा और तीसरा सबक- अल्पसंख्यकों से बड़ी है आधी आबादी
बिहार की हार का एक प्रमुख कारण माना गया तेजस्वी यादव की 'मुस्लिम परस्त' छवि, जिसके चलते ओबीसी और अगड़ा दोनों ही वोट बैंक को सीमित कर दिया. जिस तरह तेजस्वी ने वक्फ संशोधन बिल को कूड़ेदान में फेंकने का वादा किया वह एक गैरजिम्मेदारी भरा फैसला था. जिसके चलते बीजेपी ने 'मुस्लिम तुष्टिकरण' को हथियार बना लिया. इस 'सबक नंबर-3' से प्रेरित होकर समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले में बदलाव किया. शायद यही कारण है कि 3 दिसंबर 2025 को एक्स पर पोस्ट में उन्होंने 'A' को 'आधी आबादी' बता दिया, अल्पसंख्यकों का नाम तक नहीं लिया.
शायद यही कारण है कि 'समावेशी' दिखावे में समाजवादी पार्टी अल्पसंख्यक पहचान मिटाना चाहती है. अखिलेश जानते हैं कि यूपी में 19% मुस्लिम वोट कोर है, लेकिन 'परस्त' टैग से हिंदू-ओबीसी खिसक जाते हैं.अखिलेश यादव यह समझ गए हैं कि स्पेसिफिक अल्पसंख्यक अपील से 'परस्त' टैग लगता है, जिससे हिंदू वोटों का नुकसान होता है. हालांकि अगर अल्पसंख्यक गायब रहे, तो एआईएमआईएम जैसा ध्रुवीकरण यूपी में समाजवादी पार्टी के लिए और नुकसानदायक साबित हो सकता है. सपा को PDA को 'पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक + आधी आबादी' रखना चाहिए. शायद इस भूल के लिए अखिलेश यादव जल्द ही स्पष्टीकरण जारी करें.
अखिलेश का दूसरा सबक ये था कि- 'समाजवाद तो ठीक है, धर्म-विरोधी नहीं दिखना है
बिहार की हार से 'सबक नंबर-2' लेते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रणनीति बदली है. 25 नवंबर 2025 को अयोध्या राम मंदिर के ध्वजारोहण के जब पीएम नरेंद्र मोदी ने शिखर पर भगवा धर्मध्वजा फहराई. ठीक उसी दिन अखिलेश ने एक्स पर पोस्ट कर भविष्य में राम मंदिर दर्शन का संकेत दिया.
यह संकेत न सिर्फ आस्था का था, बल्कि 2027 यूपी चुनावों की चालाकी भरी तैयारी का भी था. बिहार चुनाव में आरजेडी की हार का बड़ा कारण हिंदू त्योहारों और राम मंदिर पर लालू परिवार के अपमानजनक बयान थे. रोहिणी आचार्य (तेजस्वी की बहन) ने छठ पूजा को 'ड्रामा' कहा, जबकि मीसा भारती ने 'सेकुलरिज्म' का बहाना बनाया. लालू ने कुंभ मेले को 'फालतू खर्च' करार दिया, और परिवार ने हैलोवीन जैसी विदेशी परंपराओं को प्राथमिकता दी. राम मंदिर पर तेजस्वी का 2024 का बयान—भूख लगेगी तो मंदिर जाओगे? वहां तो उल्टा दान मांग लेंगे बीजेपी ने खूब भुनाया.
पीएम मोदी ने सहरसा रैली में तंज कसा था कि कांग्रेस का शाही परिवार, राजद का शाही परिवार विदेशी त्योहार मनाते हैं, लेकिन छठ को ड्रामा कहते हैं. अखिलेश यह सब देख रहे थे. 2024 लोकसभा में सपा ने 37 सीटें जीतीं, क्योंकि अखिलेश ने हिंदू अपील संतुलित रखी. राम नवमी पर 'जय सियाराम' पोस्ट, राम कथा सुनना उन्होंने जारी रखा था.
अखिलेश ने बिहार से सबक लेते हुए एक्स पर पोस्ट किया कि पूर्णता ही पूर्णता की ओर ले जाती है. ईश्वरीय प्रेरणा से इटावा में निर्माणाधीन ‘श्री केदारेश्वर महादेव मंदिर’ के पूर्ण होने पर अन्य मंदिरों के दर्शन का संकल्प भी पूर्ण करेंगे. आस्था जीवन को सकारात्मकता और सद्भाव से भरनेवाली ऊर्जा का ही नाम है. दर्शन के लिए ईश्वरीय इच्छा ही मार्ग बनाती है. यह पोस्ट संयोग नहीं था. 'अन्य मंदिरों' में राम मंदिर स्पष्ट था. 2024 में अखिलेश ने कहा था: मंदिर निर्माण पूरा होने पर परिवार सहित दर्शन करेंगे. अखिलेश समझ गए हैं कि यूपी में 80% हिंदू वोटर हैं इसलिए हिंदू अपील जरूरी हो गया है.
...और सबसे पहले बिहार नतीजे आते ही कहा था- 'नहीं चाहिए 'दबंगई' वाले गाने
बिहार में आरजेडी की हार के कारणों में सबसे चर्चित रहे विवादास्पद गाने. इन गीतों में 'दबंगई', 'लाठी-गोली', 'यादव जाति' जैसे शब्दों ने आरजेडी की छवि को 'गुंडा राज' वाली बना दिया, जिसका फायदा बीजेपी ने उठाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैलियों में इन्हें निशाना बनाया कि ये गाने सुनकर लगता है, बिहार में फिर लालू राज लौट आया है.
इस 'सबक नंबर-1' से सबसे ज्यादा सीखा समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने. 30 नवंबर 2025 को लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने अपनी पार्टी के कलाकारों, गायकों और सोशल मीडिया टीम को सख्त हिदायत दी: बिहार में RJD के लिए जैसे गाने बने, वैसे गाने समाजवादी पार्टी के लिए न बनाएं. अखिलेश ने चेताया, AI का जमाना है, कोई भी गाना तुरंत वायरल हो जाता है. गानों में रंगबाजी, दबंगई या हथियारों का जिक्र न हो. और मीडिया से अपील है—किसी भी गाने को हमसे न जोड़ें. जाहिर है कि बिहार की हार से सबक को लेकर अखिलेश यादव काफी गंभीर हैं.
संयम श्रीवास्तव