लालू यादव की पार्टी RJD के उपाध्यक्ष अब्दुल माजिद, महासचिव रियाज अंसारी प्रशांत किशोर की जनसुराज में शामिल हो गए हैं.जनसुराज अभी भी राजनीतिक दल का रूप अख्तियार नहीं कर सका है. हालांकि बहुत तेजी से अगला लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है. आरजेडी के इन नेताओं से पहले निकाय चुनाव जीतने वाले 3 विधान पार्षदों ने भी जनसुराज का हाथ थामा था. जिसमें एक बीजेपी का बागी भी था. उसके बाद जब भोजपुरी एक्ट्रेस अक्षरा सिंह ने सुराज का दामन थामा तो भी ऐसा लगा कि अभी प्रशांत किशोर के लिए मंजिल बहुत दूर है.पर बिहार में सत्ताधारी पार्टी आरजेडी के 2 प्रदेश स्तरीय मुस्लिम नेताओं का जनसुराज में शामिल होना बहुत कुछ कहता है. यह संदेश है बिहार के राजनीतिक दलों के लिए है कि वे प्रशांत किशोर की जनसुराज को हल्के में न लें. चूंकि आरजेडी का कोर वोटर मुस्लिम है और इन्हीं के बल पर आरजेडी ने प्रदेश में 15 साल राज किया है. दो बड़े मुस्लिम नेताओं का पार्टी छिटकना वो भी लोकसभा चुनावों के मौके पर पार्टी के लिए सावधान होने की सूचना है. कहां जेडीयू में टूट की बात हो रही थी , कहां आरजेडी में ही पटाखा फूट गया. पार्टी छोड़ने वालों के आरोप भी बहुत तार्किक हैं. इन नेताओं का कहना है कि आरजेडी ने मुस्लिम लोगों का कभी भला नहीं किया.
आरजेडी के लिए क्यों है खतरे की घंटी
2024 लोकसभा चुनाव को लेकर लालू यादव की पार्टी आरजेडी को ऐन चुनाव के मौके पर प्रशांत किशोर ने जोर का झटका दिया है. आरजेडी के प्रदेश उपाध्यक्ष अब्दुल माजिद और प्रदेश महासचिव रियाज अंसारी पार्टी छोड़ने के साथ ही कई सवाल खड़े किए हैं. पार्टी छोड़ते हुए इन नेताओं ने जो कहा वो गौर करने लायक है.इन नेताओं का आरोप है कि राष्ट्रीय जनता दल ने अल्पसंख्यक समुदाय के साथ विश्वासघात किया है. ये पार्टी लगातार उन्हें छलने का काम करती रही है.उन्होंने कहा कि पार्टी के नेता बिहार में सिर्फ डर का माहौल दिखाकर अल्पसंख्यक समुदाय का वोट हासिल करते रहे हैं. हालांकि, अब इस वर्ग में जागरुकता आ रही, वो अपने हक को लेकर आवाज बुलंद कर रहे हैं.
आरजेडी छोड़ने वाले इन नेताओं की बातों को हम दलबदल करने वाले आम नेताओं की तर्ज पर नहीं ले सकते हैं. आम तौर पर दलबदल हमेशा फायदे के लिए होता है. ऐसा बहुत कम होता है कि सत्ताधारी पार्टी छोड़कर नेता किसी दूसरे दल का दामन था्मे. यहां तो जनसुराज अभी राजनीतिक दल भी नहीं बन सका है.सत्ताधारी पार्टी जॉइन करने के तो कई लाभ होते हैं.कभी कभी ईडी- सीबीआई और पुलिस का डर भी काम करता है. पर सत्ताधारी पार्टी के लोग अपनी पार्टी का दामन तभी छोड़ते हैं जब उन्हें लगता है कि पार्टी का जनाधार कम हो रहा है. अगले चुनावों में पार्टी की हार निश्चित है. विपक्ष के लोगों का सत्ताधारी में पार्टी में आना स्वभाविक प्रक्रिया है. इसलिए आरजेडी से आए दोनों नेताओं ने आरजेडी के बारे में जो कहा है उसे अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए दिया गया बयान नहीं कह सकते हैं. मतलब साफ है कि आरजेडी का भविष्य उन्हें दांव पर दिख रहा है. इसमें जेडीयू भी बहुत बड़ा कारण है. नीतीश कुमार के बिना आरजेडी की राजनीतिक ताकत बिल्कुल जीरो हो जाती है. 2019 के चुनावों में आरजेडी को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिलना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है.
बिहार में लालू यादव की पार्टी आरजेडी के कोर वोटर्स यादव और मुस्लिम हैं.अगर कोई विधायक पार्टी छोड़कर जाता तो यही समझ में आता कि इनका टिकट कटने वाला होगा पर पार्टी छोड़ने वाले लोग संगठन के हैं. जाहिर है कि संगठन के लोगों को पार्टी का भविष्य अच्छी तरह समझ में आता है. आरजेडी से मुस्लिम वोटर्स ही नहीं दूर हो रहे हैं यादव भी बड़ी संख्या में टूटने वाले हैं. बिहार में बीजेपी यादव वोटों की सर्जिकल स्ट्राइक में लगी हुई है.कृष्ण चेतना मंच के कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का दौरा तय है.लालू यादव और तेजस्वी यादव के बीच एक नई पीढ़ी आ चुकी है.इस पीढ़ी को जाति का वर्चस्व तो चाहिए पर उसे अपने विकास भी होता दिखना चाहिए. उस पर बीजेपी का हिंदुत्व का छौंका भी उन्हें अट्रेक्ट कर रहा है. बीजेपी ने मध्यप्रदेश में यादव समुदाय से सीएम बनाकर और प्रदेश के नित्यानंद राय को कैबिनेट में जगह देकर यह दिखा दिया है कि यादव लोगों का भविष्य बीजेपी में भी बढ़िया है.
प्रशांत किशोर लगातार तेजस्वी पर नौंवी फेल कहकर हमला करते रहे हैं
प्रशांत किशोर लगातार हैं लालू यादव पर हमला करते रहे हैं. जन सुराज पदयात्रा के दौरान किशोर सबसे ज्यादा हमलावर लालू परिवार पर ही रहे हैं. तेजस्वी यादव के लिए उनके मुंह से हमेशा नौंवी फेल नेता ही निकलता रहा है. उन्होंने पिछले दिनों एक बार कहा कि बिहार में राजनीतिक दलों के नेता कितने बड़बोले हैं, उन्होंने बिहार की सबसे ज्यादा विधायकों वाली पार्टी आरजेडी का जिक्र करते हुए कहा था कि जिस पार्टी का एक भी सांसद नहीं हैं, वो लोग बता रहे हैं कि देश का प्रधानमंत्री कौन होगा?
क्या सुराज पार्टी छुपा रुस्तम साबित होगी
प्रशांत किशोर लगातार गांव-गांव घूम रहे हैं. उनकी जनसुराज रथयात्रा धीरे-धीरे लोगों में पैठ बना रही है. पिछले महीने प्रसिद्ध भोजपुरी एक्ट्रेस अक्षरा सिंह ने एक इंटरव्य में बताया कि वह राजनीति की दुनिया में जा रही हैं और जन सुराज पार्टी जॉइन करेंगी. उन्होंने प्रशांत किशोर से अपनी मुलाकात के बारे में कन्फर्म भी किया था. कुछ महीने पहले खबर आई थी कि प्रशांत किशोर की जन सुराज अभियान बीजेपी से बागी होकर मुजफ्फरपुर निकाय के चुनाव जीतने वाले सच्चिदानंद राय प्रशांत किशोर के साथ आ गए हैं. सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से जनसुराज समर्थित उम्मीदवार अफाक अहमद भी चुनाव जीतकर विधान पार्षद बन चुके हैं. निर्दलीय विधान पार्षद महेश्वर सिंह भी प्रशांत किशोर के समर्थन में आने की खबर आई थी.पटना के जनसुराज कार्यालय में संवाददाता सम्मेलन तीनों विधान पार्षद ने दावा किया था कि कई पूर्व आईएएस अधिकारी जनसुराज अभियान से जुड़ रहे हैं.
दरअसल प्रशांत किशोर किंग मेकर रहे हैं. देश के करीब सभी राजनीतिक दलों की चुनाव रणनीति वो बना चुके हैं. अधिकतर में उन्हें सफलता ही मिली है.दिल्ली और पंजाब में जिन लोगों ने आम आदमी पार्टी की सफलता देखी है उन्हें कोई ताज्जुब नहीं होगा कि अगले विधानसभा चुनावों में प्रशांत किशोर की पार्टी एक मजबूत राजनीतिक दल के रूप में उभर जाए.
नेतृत्व विहीन हो रहे बिहार में प्रशांत किशोर के लिए संभावनाएं
बिहार में भारतीय जनता पार्टी के पास स्थानीय लेवल पर कोई कद्दावर नेता नहीं बचा है. लालू यादव की उम्र अब सक्रिय राजनीति के लायक नहीं रही है.उनके बेटे तेजस्वी यादव ने अभी तक कोई ऐसा कार्य नहीं किया जिससे कहा जाए कि वो अपने पिता के सही मायने में उत्तराधिकारी बनने लायक हैं. तेजस्वी 2 बार प्रदेश के डिप्टी सीएम बने, दोनों ही बार उनके पीछे उनके पिता का कंधा था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी अंतिम राजनीतिक पारी खेल रहे हैं. पिछले चुनावों में उन्होंने खुद अपना अंतिम चुनाव कहकर जनता से वोट मांगा था. ये अलग बात है कि कुर्सी का मोह छुड़ाए भी नहीं छूटता है. पर इसमें कोई 2 राय नहीं रह गई है कि नीतीश कुमार की राजनीति अब खत्म हो चुकी है.वो अब अपने अस्तित्व की लडा़ई लड़ रहे हैं. रामविलास पासवान की असमय मृत्यु होने के बाद उनके बेटे चिराग पासवान अभी भी पासवान वोटों के बल पर ही राजनीति कर रहे हैं. बाकी जितने भी दल बिहार में हैं उनकी अपनी जाति के लोगों में ही सिर्फ पहचान है. प्रशांत किशोर राजनीति का नया ककहरा लोगों को बता रहा हैं. किशोर के पास खोने के लिए कुछ नहीं है जबकि पाने के लिए पूरा बिहार है.
संयम श्रीवास्तव