मध्य प्रदेश की फिजाओं में राजनीतिक गर्माहट महसूस की जा सकती है. इस साल के अंत में सूबे में विधानसभा चुनाव होने हैं. सत्ता की शीर्ष पर पहुंचने के लिए बीजेपी-कांग्रेस एड़ी से लेकर चोटी तक का जोर लगा रही हैं. इसी क्रम में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी 21 जुलाई को ग्वालियर के दौरे पर थीं. उन्होंने यहां से अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार अभियान का बिगुल फूंका. यहां पहुंचने के बाद वह रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल पर पहुंची. प्रियंका के लक्ष्मीबाई की समाधि पर पहुंचने के कई मायने निकाले जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि उन्होंने समाधि स्थल पर पहुंचकर परोक्ष रूप से सिंधिया परिवार पर निशाना साधा है.
तीन साल पहले पूर्ववर्ती शाही परिवार के वंशज और वरिष्ठ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी का साथ दिया था. कांग्रेस ने उनके इस कदम को विश्वासघात बताया था. जबकि करीब 166 साल पहले शाही परिवार पर 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजों का साथ देने और रानी लक्ष्मीबाई के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगा था. कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने रानी लक्ष्मीबाई पर अपनी मशहूर कविता लिखी थी जिसमें उन्होंने सिंधियाओं को अंग्रेजों का मित्र बताया था.
विजयाराजे ने डीपी मिश्रा के खिलाफ चलाया था अभियान
इसके अलावा साल 1967 में ज्योतिरादित्य की दादी विजयाराजे सिंधिया ने मध्य प्रदेश में डीपी मिश्रा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिरा दिया था. जानकारों का कहना है कि जनसंघ के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने वाली विजयाराजे ने डीपी मिश्रा के खिलाफ अभियान चलाया और मध्य भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाने में सफल रही थी.
ग्वालियर में लगाए गए ये पोस्टर
स्वतंत्रता संग्राम से पहले और बाद में कथित तौर पर विश्वासघात की घटनाओं को बताने वाले पोस्टर प्रियंका गांधी की ग्वालियर यात्रा से पहले लगाए गए थे. लिहाजा लक्ष्मीबाई के समाधि स्थल पर चस्पा किए गए पोस्टरों पर लिखा था- "1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ गद्दारी, 1967 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा के साथ गद्दारी, 2020 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ गद्दारी. गद्दारी से नाता है गद्दारी करना आता है." साफ शब्दों में कहें तो पोस्टरों में सिंधिया परिवार पर निशाना साधते हुए इतिहास और समकालीन राजनीति में उनके फैसलों को विश्वासघात की तरह बताया गया है.
शाही परिवार के वंशज कई विचारधाराओं में बंटे
ब्रिटिश काल में ग्वालियर बहुत बड़ी रियासत हुआ करती थी. इस रियासत के राजा 21 तोपों की सलामी के हकदार थे. आजादी के बाद राजपरिवार के वंशज अलग-अलग विचारधाराओं में बंट गए. इनके पूर्वज भारतीय जनसंघ, जबकि उनके उत्तराधिकारी बीजेपी और कांग्रेस की विचारधारा को मानने लगे. राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, पूर्व मंत्री यशोधरा राजे और ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्तमान में बीजेपी में हैं. रानी लक्ष्मीबाई के साथ शाही परिवार का कथित विश्वासघात हमेशा एक पेचीदा मुद्दा रहा है, लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के प्रमुख नेताओं ने हमेशा ही इस मुद्दे को नजरअंदाज ही किया है. फिर भी ऐतिहासिक जुड़ाव हमेशा पृष्ठभूमि में छिपा रहा है और कभी-कभी वरिष्ठ नेताओं पर इसका विस्फोट हुआ, जैसा कि 2006 और 2017 में हुआ था.
वसुंधरा का इंदौर में हो गया था विरोध
साल 2006 में जब वसुंधरा राजे सिंधिया रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा का अनावरण करने इंदौर आईं थीं, तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा था. उस दौरान वह राजस्थान की मुख्यमंत्री थीं, जबकि मध्य प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार थी, इसके बावजूद 150 साल पुरानी ऐतिहासिक घटना ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. संयोग से कई साल बाद उन्होंने राजस्थान में स्कूल से सिलेबस से सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता के एक पैराग्राफ को हटाने का आदेश दिया था.
जब शिवराज सिंह ने साधा था ज्योतिरादित्य पर निशाना
फिर साल आता है 2017 का. जब सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भिंड जिले में एक रैली को संबोधित करते हुए सिंधिया राजवंश पर हमला किया था. इतिहास में गहराई से झांकते हुए शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि अटेर क्षेत्र महारानी लक्ष्मी बाई के साथ खड़ा था, न कि अंग्रेजों के साथ. मैं जानता हूं कि सिंधिया ने अंग्रेजों का पक्ष लिया और लोगों पर अत्याचार किया. संभवतः उन्होंने तत्कालीन गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना साधा था, जो उस समय लोकसभा में मुख्य सचेतक थे. साथ ही भिंड उनके प्रभाव क्षेत्र में आता था, जब टिकटों के वितरण और संगठनात्मक नियुक्तियों की बात आती थी तो ज्योतिरादित्य ही निर्णय लेते थे.
यशोधरा ने किया था शिवराज के बयान पर पलटवार
इस घटना ने ज्योतिरादित्य की बुआ यशोधरा को नाराज कर दिया था, जो मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार में शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में मंत्री थीं. उन्होंने गुस्से में पलटवार करते हुए कहा था कि सीएम के हवाले से दिया गया बयान अपमान के समान है. उन्होंने अपनी मां विजयाराजे सिंधिया के योगदान को याद किया, जो बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक थीं. विडंबना ये है कि कांग्रेस ने राजमाता का अपमान करने के लिए सीएम शिवराज चौहान पर निशाना साधा था और उनसे कहा था कि अगर सिंधिया उत्पीड़क हैं, तो वे वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे पर अपना रुख स्पष्ट करें.
ज्योतिरादित्य के दलबदल से लगा था कांग्रेस को झटका
साल 2020 में मार्च का महीना था. सर्दियों की विदाई के साथ ही गर्मियों का मौसम दस्तक देने वाला था. इसके साथ ही मध्य प्रदेश में सियासत भी गर्मा गई थी. दरअसल, ज्योतिरादित्य के दलबदल ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था. इसके बाद हुए उप-चुनावों में कांग्रेस ने अपनी ही पार्टी को धोखा देने के लिए ज्योतिरादित्य को "गद्दार" कहा था. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था, लेकिन उपचुनाव में जीत से समीकरण बीजेपी के पक्ष में बदल गए. वहीं, सिंधिया ने 2021 में रानी लक्ष्मीबाई की पुण्य तिथि पर ग्वालियर के फूलबाग इलाके में उनकी समाधि का दौरा किया था, तब यह कहा गया था कि यह शायद सिंधिया परिवार के किसी सदस्य की पहली यात्रा थी. सिंधिया परिवार ने इस दावे का विरोध नहीं किया, कम से कम खुले तौर पर तो नहीं.
ट्विटर पर भिड़ गए थे सिंधिया और जयराम रमेश
इस साल अप्रैल में ज्योतिरादित्य और कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश के बीच ट्विटर वॉर छिड़ गया था. सिंधिया ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस की एक ही विचारधारा देश विरोधी है. इसके बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने उन्हें सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता याद दिलायी. सिंधिया ने पलटवार करते हुए कई ट्वीट किए और जयराम रमेश से कविता से ज्यादा इतिहास पढ़ने को कहा. सिंधिया ने जवाहरलाल नेहरू की 'Glimpses of World History' का हवाला दिया, जिसमें ब्रिटिश वर्चस्व को चुनौती देने में मराठा शक्ति की भूमिका की प्रशंसा की गई थी.
प्रियंका बोलीं- मैं सिंधिया पर 10 मिनट बोल सकती हूं
उधर, प्रियंका गांधी ने रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धांजलि देने के बाद ग्वालियर में जन आक्रोश रैली को संबोधित किया तो उन्होंने शाही परिवार के बारे में बात नहीं की. प्रियंका गांधी ने रानी लक्ष्मीबाई का एक से अधिक बार जिक्र किया, लेकिन केवल एक बार भी ज्योतिरादित्य सिंधिया का जिक्र नहीं किया और कहा कि मैं चाहूं तो सिंधिया पर भी 10 मिनट तक बोल सकती हूं कि किस तरह से उनकी विचारधारा पलट गई, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी, क्योंकि मैं जनता का ध्यान भटकाने के लिए नहीं आई हूं.
मिलिंद घटवई