मध्य प्रदेश में स्कूली बच्चों के पोषण पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र के बयान को लेकर अब सियासत तेज हो गई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस बयान के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव को घेर लिया है.
जीतू पटवारी ने 'X' पर पोस्ट करते हुए लिखा, ''बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रिय धर्मेंद्र प्रधान जी. मैं हृदय से आपको साधुवाद देता हूं. नागरिक अभिनंदन भी करना चाहता हूं. आप 25 साल पुरानी बीजेपी सरकार का असली-चेहरा देश और मेरे मध्यप्रदेश की जनता के सामने लेकर आ गए हैं.
मैं आपकी जानकारी में संशोधन करते हुए यह भी कहना चाहता हूं कि आज से करीब 7 साल पहले मप्र में 1 करोड़ 60 लाख विद्यार्थी अध्ययनरत थे. यह संख्या अब घटकर 1 करोड़ 04 लाख हो गई है. मतलब लगभग 50 लाख बच्चों की संख्या कम हो गई है. पहले बजट 07 हजार करोड़ का था, यही बजट अब 37 हजार करोड़ का हो गया है. यदि फिर भी स्कूली बच्चे सेब और अंजीर नहीं खा पा रहे हैं. दूध भी नहीं पी का रहे हैं, तो सवाल यह है कि इसे कौन 'खा' रहा है?
मुख्यमंत्री मोहन यादव जी, जब यही सवाल तर्क और तथ्य के साथ हम उठाते हैं, तो अहंकार में डूबी आपकी सरकार की समझ समाप्त हो जाती है. अब जबकि बीजेपी की केंद्रीय टोली के 'प्रधान' ने ही आपको आईना दिखाया है, तो यह 'बदशक्ल सरकारी चेहरा' जरूर देखें.
भ्रष्टाचार के असंख्य दाग से बदरंग हुए स्कूली शिक्षा के इस चेहरे के जरिए ही अब विभागीय समीक्षा भी प्राथमिकता से करें. मैं यह भी दोहराना चाहता हूं कि मप्र के बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कांग्रेस भी सकारात्मक विपक्ष की भूमिका के लिए तत्पर है. क्योंकि, यह दलगत राजनीति से अलग एक ऐसा गंभीर मसला है, जिस पर राजनीति तो बिल्कुल ही नहीं हो सकती.''
बता दें कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर रखी गई संगोष्ठी में भाग लेने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान रविवार को भोपाल पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने एमपी में बच्चों की न्यूट्रिशनल वैल्यू को लेकर चौंकाने वाला बयान दिया.
धर्मेंद्र प्रधान ने अपने उद्बोधन के दौरान कहा, ''मैं जिम्मेदारी के साथ और मीडिया के सामने कहता हूं कि मध्य प्रदेश के डेढ़ करोड़ विद्यार्थियों में से 50 लाख बच्चों ने 5वीं क्लास तक Apple (सेब) नहीं देखे होंगे. देखे होंगे तो बाजार में देखे होंगे. उन्हें सेब खाने का सौभाग्य नहीं है. अंजीर तो उनकी जिंदगी में 10वीं के बाद शायद ही आया हो या शायद कभी नहीं आएगा. अनेकों बच्चों को जब एक गिलास दूध चाहिए तब नहीं मिलता हैं. इसको करेगा कौन? ये समाज को सोचने की जरूरत है.''
रवीश पाल सिंह