इंडस्ट्री में बीते 50 साल, कैसे टेक्स्टाइल वर्कर का बेटा बना ह‍िंदी सिनेमा का दिग्गज सिंगर?

साहित्य आजकल 2025 के मंच पर दिग्गज सिंगर सुरेश वाडकर आए. 72 साल के सुरेश ने बताया कि कैसे 4 साल की उम्र में ही वो गाने लगे थे. पिता से उन्हें गायिका का शौक आया था. आज सुरेश ने फिल्म इंडस्ट्री में 50 साल पूरे कर लिए हैं.

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सुरेश वाडकर ने बताई जर्नी (Photo: Atul Kumar Yadav, Vidushi Mehrotra) सुरेश वाडकर ने बताई जर्नी (Photo: Atul Kumar Yadav, Vidushi Mehrotra)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:20 PM IST

हिंदी सिनेमा के दिग्गज सिंगर सुरेश वाडकर, साहित्य आजतक 2025 में आए. यहां वेतरन सिंगर ने अपनी 50 सालों की फिल्म इंडस्ट्री में बिताई जर्नी पर बात की. होस्ट संग रूबरू होते हुए सुरेश ने बताया कि चार साल की उम्र में उन्होंने 'सुर श्रृंगार' प्रोग्राम जीत लिया था. और पहली फिल्म के लिए साल 1977 में गाना गाया था. 

सुरेश ने सुनाया किस्सा
एक बार लता मंगेशकर ने कहा कि सुरेश वाडकर की आवाज में जो मिठास है वो बहुत कम लोगों के में है. सुरेश ने डिवोशनल गाने, मराठी, हिंदी और अन्य भाषाओं में गाने गाए हैं. सुरों की मिठास जो सुरेश जी की आवाज में है वो किसी में नहीं है. बता दें कि सुरेश ने अपना फेवरेट गाना गुनगुनाकर सेशन की शुरुआत की. 

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सुरेश ने कहा- मैं आजतक का आभारी हूं, जिन्होंने मुझे याद किया. वैसे मेरी जिंदगी के बारे में बहुत बार बहुत न्यूजपेपर्स में आया हुआ है. मगर नए तरीके से उसको कह सकता हूं कि अगर आप सवाल करेंगे, आप घेरेंगे तो और भी अच्छा लगेगा. सुरेश वाडकर ने इंडस्ट्री में 50 साल पूरे किए हैं. सुरेश ने कहा कि ये छोटा सा बच्चा इस वक्त 72 साल का है. और आपका प्यार मुझे मिलता आ रहा है, वो मेरा बहुत बड़ा भाग्य है. ये बोलते हुए सुरेश ने अपना फेवरेट गाना गाया, ऐ जिंदगी गले लगा ले...

कैसी रही सुरेश वाडकर की जिंदगी
वेतरन सिंगर सुरेश, मराठी हैं. और महाराष्ट्रियन होने का उन्हें गर्व है. सुरेश एक साधारण परिवार से आते हैं. पिता टेक्स्टाइल वर्कर थे. एक टेक्स्टाइल वर्कर का बेटा इतना ऊंचा उठा. सुरेश कहते हैं कि ये भगवान की ही देन है. तभी जाकर इंसान गाने वाला बनता है. और अच्छा गाने वाला बनने के लिए ऊपरवाले का आशीर्वाद होना जरूरी है. जब तक वो नहीं होता, तब तक कोई अच्छा गाना नहीं गा सकता. और आपको जो देन मिली है, उसका परिश्रम करके, रियाज करके अच्छे गुरु से सीखकर. और जबतक आप सीखेंगे नहीं, तब तक आप अच्छा गाने वाला नहीं बन सकते.

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मैं खुशकिस्मत हूं, मेरे पिता सीताराम मिल्स में कपड़ा खाते में काम करते थे. हमारा एरिया कल्चरली एडवांस था. छोटी से छोटी कोई बात होती थी या कुछ होता था तो उसमें गाना-बजाना, भजन-कीर्तन होता था. मेरे पिता को गाने का शौक था तो उनके साथ मैं प्रोग्राम सुनने जाता था. बचपन में वो संस्कार मुझे मिले. और चार साल की उम्र में घरवालों को पता चल गया कि ये बच्चा अच्छा गाता है. मेरे पिता जिनसे सीखते थे, उन्होंने मुझे सुना. असल में मैं एक बंदिश गा रहा था. उन्होंने सुना तो मेरी मां से पूछा. मां ने कहा कि मेरा सुरेश गा रहा है. उन्होंने मुझे बुला और पूछा कि कहां से सीखा तुमने ये. मैंने कहा कि मैंने सुन-सुनकर ही याद किया है. मैंने पूरी बंदिश उन्हें सुना दी थी. 4 साल का था मैं.

साल 1976 में कोई 'इंडियन आइडल' नहीं था, कुछ प्रोग्राम नहीं होते थे. 'सुर श्रृंगार' प्रोग्राम हुआ था, उसमें काफी बड़े-बड़े दिग्गज जजेज बनकर आए थे. वो सुरेश वाडकर ने जीता था. साल 1977 में सुरेश ने पहला गाना फिल्म में गाया था. वो था सोना करे, झिलमिल झिलमिल... 

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