दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित साहित्य के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2025' के तीसरे और अंतिम दिन आयोजित सत्र 'कहानियों का असीमित संसार, पुराण से विज्ञान तक' ने श्रोताओं को परंपरा, मिथक, लोककथा, विज्ञान और साहित्य के एक अद्भुत संगम से रूबरू कराया. मंच पर मौजूद लेखिका गीताश्री, लेखक-पत्रकार अनिमेष मुखर्जी, और वैज्ञानिक डॉ. मेहरबान ने अपने-अपने अनुभव और शोधों के माध्यम से बताया कि कहानी का संसार कितना विस्तृत है और पुराण से लेकर विज्ञान तक हर क्षेत्र एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है.
स्त्री विमर्श और लोककथाओं में स्त्री का ब्रह्मांड: गीताश्री
सत्र के दौरान प्रसिद्ध लेखिका गीताश्री ने कहा कि उन्हें अपनी जड़ों, परंपरा और लोक में स्त्री के वास्तविक अस्तित्व की खोज करनी थी, इसलिए उन्होंने इतिहास के पारंपरिक विवरणों से हटकर लोककथाओं और पुराणों में स्त्री के दुनिया को तलाशना शुरू किया.
उन्होंने कहा, 'इतिहास ने स्त्रियों को कुछ नहीं दिया, हमें हाशिए पर छोड़ दिया, लोक में स्त्री की दशा, संघर्ष और योगदान की कहानियां कहीं अधिक जीवंत हैं. गीताश्री ने बताया कि कृष्ण को केवल एक चरित्र के रूप में नहीं, बल्कि पिता, पति और युगों के साक्षी के रूप में देखने की जरूरत है. उन्होंने मिथिला की 'शामा-चकवा' लोककथा का उदाहरण देते हुए कहा कि लोक-पुराणों में अनकही कथाओं की गहराई आज भी शोध का इंतज़ार कर रही हैं.
टैगोर परिवार का मानवीय पक्ष: अनिमेष मुखर्जी
लेखक और पत्रकार अनिमेष मुखर्जी ने ठाकुरबाड़ी और रवींद्रनाथ टैगोर के जीवन के उन पहलुओं का उल्लेख किया जो अक्सर किताबों में नहीं मिलते हैं. उन्होंने कहा कि महान व्यक्तित्वों को केवल 'महापुरुष' कहकर सीमित कर देना गलत है. वो पिता, भाई, पति और इंसान भी थे.
अनिमेष ने बताया कि भारत की पहली बेस्ट-सेलर महिला लेखिका टैगोर की बहन थीं, और आज की लोकप्रिय साड़ी पहनने की शैली टैगोर परिवार की भाभी द्वारा दुनिया को दी गई. उन्होंने बताया कि ठाकुरबाड़ी में भोजन व्यवस्था, व्यंजनों की खोज और कला-संस्कृति का अद्भुत मिश्रण था, जो एक साहित्यिक और सांस्कृतिक प्रयोगशाला जैसा था.
विज्ञान और साहित्य की दोस्ती: डॉ. मेहरबान
वैज्ञानिक डॉ. मेहरबान ने कहा कि विज्ञान और साहित्य को दो विपरीत धाराओं की तरह देखने की धारणा गलत है. उन्होंने कहा कि टैगोर और जगदीश चंद्र बोस की दोस्ती इसका प्रमाण है. दोनों ने विज्ञान को मानवीय दृष्टि से समझाया और साहित्य को वैज्ञानिक दृष्टि दी.
उन्होंने बताया कि 1930 के दशक में टैगोर की किताबें विज्ञान को सरल भाषा में समझाने का प्रयास थीं. मेहरबान ने कहा, 'मेरा काम विज्ञान को ह्यूमनाइज़ करना है, ताकि आम लोगों तक उसका दर्शन, भाव और सार पहुंच सके.'
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