साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10 'जीवनी, संस्मरण और डायरी': 2025 में रिसते रहे आंसू, नम रहा वर्ष

'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' में वर्ष 2025 के शीर्ष 'जीवनी/ संस्मरण/ डायरी' संग्रहों में सीमा कपूर, मालिनी अवस्थी, मेहेर वान, और जुवि शर्मा की लिखी कृतियों के अलावा रतन टाटा, केएम पणिक्कर और 'नौशेरा के शेर' पर लिखी पुस्तकों ने भी अपनी जगह बनाई. वर्ष 2025 के दस उम्दा जीवनी/ संस्मरण/ डायरी-संग्रहों की पूरी सूची यहां आप पढ़ें, उससे पहले कुछ बातें आपसे...

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जय प्रकाश पाण्डेय

  • नोएडा,
  • 29 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:00 PM IST

'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' में वर्ष 2025 के शीर्ष 'जीवनी/ संस्मरण/ डायरी' संग्रहों में सीमा कपूर, मालिनी अवस्थी, मेहेर वान, और जुवि शर्मा की लिखी कृतियों के अलावा रतन टाटा, केएम पणिक्कर और 'नौशेरा के शेर' पर लिखी पुस्तकों ने भी अपनी जगह बनाई. वर्ष 2025 के दस उम्दा जीवनी/ संस्मरण/ डायरी-संग्रहों की पूरी सूची यहां आप पढ़ें, उससे पहले कुछ बातें आपसे...
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पुस्तकें आपको बताती हैं, जताती हैं, रुलाती हैं. वे भीड़ में तो आपके संग होती ही हैं, आपके अकेलेपन की भी साथी होती हैं. शब्द की दुनिया समृद्ध रहे, आबाद हो, फूले-फले और उम्दा पुस्तकों के संग आप भी हंसें-खिलखिलाएं, इसके लिए इंडिया टुडे समूह ने अपने डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' पर वर्ष 2021 में पुस्तक-चर्चा कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की थी... आरंभ में सप्ताह में एक साथ पांच पुस्तकों की चर्चा से शुरू यह कार्यक्रम आज अपने वृहत स्वरूप में सर्वप्रिय है.
भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब 'साहित्य तक' के 'बुक कैफे' में लेखक और पुस्तकों पर आधारित कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. इनमें 'एक दिन एक पुस्तक' के तहत हर दिन पुस्तक चर्चा; 'नई पुस्तकें' कार्यक्रम में हमें प्राप्त होने वाली हर पुस्तक की जानकारी; 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में लेखक से उनकी सद्य: प्रकाशित कृतियों पर बातचीत; और 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में किसी वरिष्ठ रचनाकार से उनके जीवनकर्म पर संवाद शामिल है. 
'साहित्य तक' पर हर शाम 4 बजे प्रसारित हो रहे 'बुक कैफे' को प्रकाशकों, रचनाकारों और पाठकों की बेपनाह मुहब्बत मिली है. 'साहित्य तक' ने वर्ष 2021 से 'बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला शुरू की तो उद्देश्य यह रहा कि उस वर्ष की विधा विशेष की दस सबसे पठनीय पुस्तकों के बारे में आप अवश्य जानें. 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला इसलिए भी अनूठी है कि यह किसी वाद-विवाद से परे सिर्फ संवाद पर विश्वास करती है. इसीलिए हमें साहित्य जगत, प्रकाशन उद्योग और पाठकों का खूब आदर प्राप्त होता रहा है. यहां हम यह भी स्पष्ट कर दें कि यह सूची केवल बेहतरीन पुस्तकों की सूचना देने भर तक सीमित है. यह किसी भी रूप में पुस्तकों की रैंकिंग नहीं है. 
'बुक कैफे' पुस्तकों के प्रति हमारी अटूट प्रतिबद्धता और श्रमसाध्य समर्पण के साथ ही हम पर आपके विश्वास और भरोसे का द्योतक है. बावजूद इसके हम अपनी सीमाओं से भिज्ञ हैं. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक न पहुंची हों, यह भी हो सकता है कुछ श्रेणियों की बेहतरीन पुस्तकों की बहुलता के चलते या समयावधि के चलते चर्चा में शामिल न हो सकी हों... फिर भी हमारा आग्रह है कि इससे हमारे प्रिय दर्शकों, पुस्तक प्रेमी पाठकों के अध्ययन का क्रम अवरुद्ध नहीं होना चाहिए. आप खूब पढ़ें, पढ़ते रहें, पुस्तकें चुनते रहें, यह सूची आपकी पाठ्य रुचि को बढ़ावा दे, आपके पुस्तक संग्रह को समृद्ध करे, यही कोशिश है, यही कामना है. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों को समर्थन, सहयोग और अपनापन देने के लिए आप सभी का आभार.
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साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' वर्ष 2025 की 'जीवनी/ संस्मरण/ डायरी' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं ये- 
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* यूँ गुज़री है अब तलक |  सीमा कपूर  

हिन्दी सिनेमा की प्रसिद्ध निर्माता, निर्देशक और लेखिका सीमा कपूर की यह आत्मकथा एक समूचे दौर की बानगी है. इसमें पारसी थियेटर से लेकर फ़िल्म इंडस्ट्री के सुनहरे दौर तक की दास्तानें दर्ज हैं- जिनमें मदनलाल कपूर, अन्नू कपूर, रंजीत कपूर जैसे कलाकारों के परिवार की सांस्कृतिक विरासत और ओम पुरी के जीवन के अनसुने पहलू इस किताब में खुलकर सामने आते हैं. पुस्तक का भाषा प्रवाह इतना प्रवण है कि इसे पढ़ना एक अनोखे अनुभव और शब्द संसार से गुजरना है. कपूर लिखती हैं, इस संसार में 'ऑर्डिनरी' यानी साधारण होना अनेक विडम्बनाओं, अनेक दुखों का कारण है. फिर सोचिए, अति साधारण जीवन कैसा होगा? पूरी ज़िन्दगी झंझावातों से लड़ते बीत जाएगी. ऐसा ही एक अति साधारण जीवन जिसे मैंने क़रीब से देखा और जाना, मेरा है. मैं इसे क़लमबद्ध इसलिए कर रही हूँ कि मेरे साथ जुड़ी हैं, समाज के उपेक्षित और वंचित कुछ स्त्री-पुरुषों के साधारण जीवन की कहानियाँ जिन्हें मैंने अपने बाबूजी की नाटक-कम्पनी में देखा और जाना था. वे साधारण जिन्दगियाँ दुर्लभ और नायाब थीं. मेरे साथ जुड़ी हैं कुछ और असाधारण नायाब जिन्दगियाँ, जिन्हें जानने-पहचानने का अवसर मुझे मिला, और मिला उनके साथ जीने का सौभाग्य. लोगों को जानना और उन्हें पढ़ना मेरा पेशा, शौक़ और आनन्द है. इसलिए अपने साथ उनको भी लिये चलने का लोभ संवरण न कर सकी. ज़िन्दगी को जब लिखने बैठो तो लगता है हज़ारों लम्हे इकट्ठे होकर क़लम से लिपटते हुए काग़ज़ पर उतरने को मचल रहे हों. कितना कुछ याद है, कितना कुछ भूल गई! यह आत्मकथा हीरो ओम पुरी से कपूर के प्रेम, उनके जीवन-संघर्ष और अनुभवों की बेलौस सच्चाई भी है. 
- प्रकाशकः राजकमल प्रकाशन
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* चन्दन किवाड़ | मालिनी अवस्थी 

यह पुस्तक लोकधुनों की भावभीनी गायिका मालिनी अवस्थी की स्मृति-कथाओं की वो मंजूषा है, जिसके पृष्ठ पलटते ही कुछ बहुत मार्मिक, बहुत करुण, अभावों से जर्जरित लेकिन अदम्य साहस, कर्तव्यनिष्ठा और लोकमंगल की भावना से पूरित पूर्वजों एवं पूर्वजाओं के संस्मरण का सिमसिम-सा खुलता चला जाता है. मालिनी कहती हैं, चन्दन किवाड़ खोलकर ही भीतर प्रवेश करें. ये किताब नहीं, मेरे मन का प्रवाह है. मालिनी सतत प्रवाही हैं. उनके अबोध मन पर कन्दीलों-सी ही जगमग, कहीं मण्डला स्टेट की राजसी ठाट-बाट वाली, असीम धैर्य और आत्मविवेक वाली नानी हैं, तो कहीं अक्षत फूलों की प्रतिश्रुति के साथ पर्व-त्योहारों की लोककथाएं सुनाती ममतामयी दादी हैं, कहीं सुर-साधिका मां और क्रमशः परम्परा के प्रवाह में शामिल होतीं स्वयं मालिनी. गुरुमाता गिरिजा देवी, वत्सला ताई और बचपनिया संग-साथवाली सुमंगलाओं को भला कैसे विस्मृत कर पातीं वे. तो इन सबको शब्दों की भावपूरित आचमनी देती गायिका अपनी जीवंत भाषा और सहज प्रवाही भाषा-शैली से विभोर कर देती हैं. आख्यानों के शीर्षक ऐसे लोकगीतों की पंक्तियां हैं, जिन्हें न केवल इस लोक-स्वरा ने गाया है, बल्कि जिनसे भारतीय ग्राम्य लोक का मानस बनता है तो सभ्यता और संस्कृति भी.  
- प्रकाशकः वाणी प्रकाशन
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* Ratan Tata: A Life | Thomas Mathew
        
1868 में स्थापित, टाटा समूह नमक से लेकर स्टील और सॉफ्टवेयर तक कई उद्योगों में फैला हुआ है, और गुणवत्ता और भरोसे का पर्याय है. यह 100 से ज़्यादा देशों में काम करता है, और दुनिया भर में अरबों लोगों के जीवन को प्रभावित करता है. टाटा ब्रांड की आज जो स्थायी सद्भावना और सम्मान है, उसका श्रेय काफी हद तक उस व्यक्ति की दूरदर्शिता और ईमानदारी को जाता है, जिसने दो दशकों से ज़्यादा समय तक समूह का नेतृत्व किया.
एक टाटा कंपनी में एक नौसिखिए के रूप में शुरुआत करते हुए रतन टाटा ने चेयरमैन के रूप में टाटा समूह के लिए एक अद्वितीय विकास दर हासिल की और इस दौरान कई गंभीर चुनौतियों को पार करते हुए वैश्विक अधिग्रहणों के माध्यम से भारत को दुनिया भर में ले गए. यह पुस्तक हमारे समय के सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायक व्यक्तित्वों में से एक प्रतिष्ठित व्यवसायी नेता, जिन्होंने स्वतंत्र भारत के औद्योगिक परिदृश्य को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, के जीवन और को बेदाग तरीके से दर्शाती है. यह जीवनी रतन टाटा के एकाकी बचपन से लेकर उनके अदम्य उत्साही युवा बनने, समूह में पहली बड़ी नौकरी से लेकर टाटा संस का अध्यक्ष नियुक्त होने, तथा भारत के सबसे बड़े परोपकारी उद्यम टाटा ट्रस्ट्स के प्रमुख के रूप में उनकी भूमिका तक को दर्शाती है. पुस्तक रतन टाटा, उनके परिवार, मित्रों, पूर्व सहकर्मियों और व्यापारिक सहयोगियों के साथ सैकड़ों घंटों के साक्षात्कारों पर आधारित, तथा पहले से अज्ञात तथ्यों, उपाख्यानों और अंतर्दृष्टि के व्यापक विवरण के चलते अनूठी है.
- प्रकाशकः Harper Collins
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* अबोली की डायरी | जुवि शर्मा 
              
यह डायरी की शक्ल में दर्ज एक स्त्री की मार्मिक और भावपूर्ण गाथा है, जो पाठकों को एक अनोखे दृष्टिकोण से जीवन के विभिन्न पहलुओं से परिचित कराती है. यह डायरी बताती है कि यौन हिंसा से बचाव के कोई तयशुदा टूल नहीं है. कुछ लड़कियों के लिए ‘सुरक्षित’ जैसा शब्द कहीं नहीं है, अपने घर में भी नहीं. यह आत्मकथ्य है उस क्रमबद्ध त्रासदी का, जिसको लेखिका ने जिया है, ख़ुश होने की उम्मीद में वह पुराने नरक से निकल कर दूसरे नए नरक में जाने का दुख भोगती है. वह अपने डिजिटल प्रेमी के उत्पीड़न का शिकार है. डायरी बताती है कि अपने घरों की बेकदर स्त्रियों ने चुटकी भर कदर करने वाले पुरुषों को अपना सर्वस्व सौंप दिया, उन्हें देवता बना दिया, उनके लिए गालियां खायीं, लात जूते खाए, ताने खाए, फिर भी डट के खड़ी रहीं सिर्फ इस भरोसे पर कि इस भरी दुनिया में कोई एक तो है जो उन्हें प्यार करता है, ख़्याल रखता है, तवज्जुह देता है. लेखिका के शब्दों में मिट्टी की देह से बना मनुष्य जब पश्चात्ताप की अग्नि में झुलसता है, तो उसके कर्म की स्वीकारोक्ति के मार्ग भी स्वयं प्रशस्त हो जाते हैं. यह डायरी भारतीय समाज में पुरुष सत्ता, स्त्री द्वारा स्त्री जाति के शोषण और एक स्त्री की अपनी भटकन के बीच अपने बच्चों से मोह की वह गाथा है, जो कई बार चौंकाती है, तो कई बार रुलाती भी है.
 - प्रकाशकः सेतु प्रकाशन
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* A Man for All Seasons: The Life of K M Panikkar | Narayani Basu

- केएम पणिक्कर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी और आज़ादी के बाद के भारत के पहले पब्लिक इंटेलेक्चुअल में से एक थे. औपनिवेशिक और स्वतंत्र भारत के इतिहास पर उनकी छाप हर जगह दिखाई देती है. वे रियासतों में संवैधानिक सुधारों से लेकर, भारत के मौजूदा संघीय मॉडल के एक मज़बूत समर्थक थे. वे नवस्वतंत्र भारत की समुद्री नीति बनाने वालों में शुमार होते हैं. धर्मनिरपेक्ष होते हुए भी उनका मानना ​​था कि एक ज़रूरी हिंदू संस्कृति ही है जो देश को एक साथ रखे हुए है. वे गांधी के दूत और हिंदुस्तान टाइम्स के संस्थापक थे. वे स्वतंत्र भारत के पहले और सबसे ज़्यादा विवादित राजदूत थे, जो नेशनलिस्ट चीन और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना दोनों के काल में वहां रहे. वे काहिरा और फ्रांस में नेहरू के आदमी थे और राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य भी. केवल CIA ही नहीं भारतीय विदेश मंत्रालय में भी उनके दुश्मनों की कमी न थी. उन्होंने अपने प्रशंसकों को जितना निराश किया, उतना ही उन्होंने उनका अनिच्छुक सम्मान भी हासिल किया. ब्रिटिश राज से लेकर संविधान सभा तक, दो विश्व युद्धों और उसके बाद के शीत युद्ध के दौरान, पणिक्कर हर हाल में भारत के भरोसेमंद आदमी थे. इतनी व्यस्तता के बावजूद, उन्होंने लिखना कभी बंद नहीं किया- भारतीय पहचान, राष्ट्रवाद, इतिहास और विदेश नीति पर- उनका लिखा आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना सात दशक पहले था. लेखिका बसु इस जीवनी में भारत के संस्थापक पिताओं में सबसे रहस्यमय व्यक्ति का एक जीवंत, बेहद आकर्षक चित्र प्रस्तुत करती हैं.
- प्रकाशक: Context
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* सूफ़ी वैज्ञानिक | मेहेर वान        
 
जगदीश चंद्र बोस को 'भारत में आधुनिक विज्ञान का जनक' माना जाता है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, इंग्लैंड से भौतिकी की पढ़ाई करने के बाद भी बोस ने शोध कार्य के लिए अपने देश को चुना. अत्यधिक प्रतिरोध के बावजूद उन्होंने अपनी प्रयोगशाला को स्थानांतरित करने के लिए पश्चिम से मिले कई आकर्षक प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया. बोस एक राष्ट्रवादी थे. उन्होंने भारत में आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लिए मंच तैयार किया. वह अपने जीवन काल में कम से कम दो बार नोबेल पुरस्कार जीतने के करीब आए. उनके कई छात्रों को वैज्ञानिक योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. सर जेसी बोस ने अपनी आखिरी साँस तक वैज्ञानिक शोध किया. बोस के वैज्ञानिक शोध का विस्तार माइक्रोवेव्स से लेकर पादप विज्ञान तक था. वह अमेरिकी पेटेंट प्राप्त करने वाले पहले भारतीय ही नहीं वरन प्रथम एशियाई थे. वे 19वीं सदी में विषयों को एक दूसरे से अलग करती ऊंची दीवारों को ढहाकर पादप-तंत्रिका विज्ञान जैसे विषयों की शुरुआत करने वाले लोगों में से एक थे. बोस ने भारतीय भाषाओं की पहली साइंस-फ़िक्शन कहानी भी लिखी थी. स्वयं वैज्ञानिक और प्राध्यापक होकर भी लेखक मेहेर वान इस जीवनी की लेखन-प्रक्रिया को जीवन बदलने वाला अनुभव कहते हैं.
- प्रकाशकः पेंगुइन स्वदेश
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* क्रांति पथ का पथिक दास्तान भगत सिंह की | प्रदीप गर्ग 
        
पुस्तकों में भगतसिंह की दुर्धर्ष क्रान्तिकारी, महान देशभक्त और शहीद-ए-आज़म की छवि को बहुत उभारा गया है, लेकिन उनके व्यक्तित्व के अनदेखे पहलुओं को उतना महत्त्व नहीं मिला, जो उनके जीवन-दर्शन के क्रमिक विकास को बताने वाला हो. भारत के नौजवानों में क्रान्ति के प्रति जागृति और कटिबद्धता उत्पन्न करना भगत सिंह की शहादत का लक्ष्य था. पर वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उनको साहित्य, संगीत, गाना, सिनेमा इन सब चीज़ों से लगाव था. सांडर्स को मारने के बाद पुलिस और सीआईडी की ऐन नाक के नीचे से निकलकर, लाहौर से कलकत्ता भगतसिंह जिन क्रान्तिकारिणी दुर्गा भाभी की मदद से जा पाए, उनका कहना था, ‘वह सौन्दर्य का उपासक था, कला का प्रेमी था और जीवन के प्रति उसे आसक्ति थी.’ देशहित में फाँसी के फन्दे पर झूलने वाले इस महान क्रांतिकारी के जीवन को समग्रता में देखने वाली अनोखी दास्तान.
- प्रकाशकः लोकभारती प्रकाशन
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* A Life Less Extraordinary: My Journey through Politics, Passion, and Purpose | Lav Bhargava 

इस बेबाक संस्मरण में अवध निवासी लव भार्गव आत्म-चिंतन की एक यात्रा पर निकलते हैं, और दिल को छू लेने वाले किस्से शेयर करते हैं जो हास्य और गहरी आत्म-निरीक्षण का मिश्रण हैं. यह कहानी जीत या पछतावे को बताने की बजाय, उन लोगों और पलों पर फोकस करती है जिन्होंने एक अच्छी ज़िंदगी को आकार दिया. लेखक जीवन की गहरी सच्चाइयों पर विचार करते हैं, जिनमें कर्म और भाग्य की सूक्ष्म कार्यप्रणाली, और उस पर इनसान का नियंत्रण और उसकी सीमाओं पर बात करते हैं. सफलता की पारंपरिक कहानियों से दूर, यह व्यक्तिगत विकास की एक कहानी है - जो कमियों को अपनाने, अप्रत्याशित सीखों और समय के साथ मिलने वाली समझदारी को उजागर करती है. यह पुस्तक प्रामाणिकता के प्रति लेखक की स्थायी प्रतिबद्धता और बस खुद होने में मिलने वाली शांति का प्रमाण है. लेखक सत्तर के दशक के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर उन कई भूमिकाओं पर विचार करते हैं जो उन्होंने बतौर राजनेता, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, पति, पिता की भूमिका में निभाईं. यह संस्मरण दशकों की सार्वजनिक सेवा और व्यक्तिगत विकास से निर्मित एक ईमानदार आत्म-मूल्यांकन है.
- प्रकाशकः Hay House India
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* The Lion of Naushera | Ziya Us Salam & Anand Mishra 

- भारत को आज़ादी मिलने के कुछ ही हफ़्तों के अंदर, पाकिस्तान ने भारत की मुस्लिम-बहुल रियासत पर कब्ज़ा करने की बार-बार की कोशिश की. इस वजह से कश्मीर युद्ध का मैदान बन गया, जो आज भी बना हुआ है. पर पाकिस्तान के इस नापाक मंसूबों को नाकाम करने के लिए हिम्मत और बहादुरी से जिन सैन्य योद्धाओं ने लड़ाई लड़ी उनमें ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान सबसे आगे था. वे मजहब के नाम पर विभाजित बहुलवादी भारत में रहने का फ़ैसला करने वाले सबसे बड़े अफसरों में से एक थे. दुख की बात है कि अपने 36वें जन्मदिन से बारह दिन पहले ही उन्होंने पाकिस्तानी सेना से लड़ते हुए अपनी शहादत दे दी. नए बने देश ने उस निडर योद्धा को सलाम किया और उनकी बहादुरी के लिए उन्हें 'नौशेरा का शेर' का खिताब दिया. लेकिन समय के साथ, बदलते हालातों में जहां कुछ नायकों को सही तरीके से और कृतज्ञता के साथ सम्मानित किया गया, कइयों को हमेशा उनका हक नहीं मिला. 'नौशेरा का शेर' ब्रिगेडियर उस्मान के प्रति लेखकों द्वारा उनके हिस्से का कर्ज़ चुकाने की एक कोशिश है. यह न सिर्फ़ उस बहादुर सैनिक की कहानी बताता है, बल्कि यह भारत की एक बहुआयामी कहानी भी पेश करता है - कि कैसे सभी धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों ने देश की आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ी और उसकी सीमाओं की रक्षा की.
- प्रकाशकः Bloomsbury 
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* दास्तान-ए-हेमलता | डॉ अरविंद यादव
           
'अँखियों के झरोखों से मैंने देखा जो साँवरे', 'कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया?', 'तू इस तरह से मेरी ज़िंदगी में शामिल है', 'तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले संग गा ले', 'मेघा ओ रे मेघा, तू तो जाए देश विदेश', 'जब दीप जले आना जब शाम ढले आना...' जैसे गीतों से भारतीय जन मानस के दिलों पर अमिट छाप छोड़ने वाली प्रतिष्ठित और लोकप्रिय गायिका हेमलता का जीवन अपने आपमें एक बड़ी गाथा है. उनके पिता पंडित जयचंद भट्ट सर्वोन्नत कोटि के शास्त्रीय गायक थे, इसी वजह हेमलता को बचपन से ही संगीत का माहौल मिला. लेकिन पिता नहीं चाहते थे कि बेटी मंच या फिल्मों के लिए गाये. आखिर एक ऐसे वातावरण से जिसकी हवाओं में संगीत के साथ शास्त्रीय अनुशासन तैरता है से निकलकर हेमलता ने कैसे रवींद्र जैन, उषा खन्ना, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और कल्याणजी-आनंदजी जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम किया? हेमलता ने अपनी मधुर और भावपूर्ण आवाज़ से हिंदी सिनेमा जगत में गहरी छाप छोड़ी है. उनकी आवाज़ में अद्भुत सादगी और कोमलता है, जो उनके गीतों को गहराई देती है और श्रोताओं के मन पर भावनात्मक प्रभाव छोड़ती है. उन्होंने अपने गीतों में भारतीय सांस्कृतिक तत्त्वों को बड़ी सुंदरता से समाहित किया है. लेकिन इस गायिका का जीवन संघर्ष, अनुशासन, जीत-हार की अनूठी गाथा का सम्मिश्रण है. इसमें भारत की आध्यात्मिकता, मिली-जुली संस्कृति, पारिवारिक अलगाव, तनाव, व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता और लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी जैसे दिग्गजों के संस्मरण भी शामिल हैं. यह पुस्तक हेमलता की आधिकारिक जीवनी है.
- प्रकाशकः सर्व भाषा ट्रस्ट 
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'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' के वर्ष 2025 की 'जीवनी/ संस्मरण/ डायरी' सूची में शामिल सभी रचनाकारों, लेखकों, अनुवादकों प्रकाशकों को हार्दिक बधाई! साहित्य और पुस्तक संस्कृति के विकास की यह यात्रा आने वाले वर्षों में भी आपके संग-साथ बनी रहे. 2026 शुभ हो. पाठकों का प्यार बना रहे.

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