उत्तराखंड के जोशीमठ और आसपास के इलाकों में जमीन धंसने के कारण जो तबाही हो रही है क्या उसे रोका जा सकता था? क्या वाकई में शासन और प्रशासन ने इस प्रकृतिक आपदा को रोकने की ईमानदारी से कोशिश की? और आखिर स्थानीय लोगों के लिए बेइंतहा दर्द का सबब बनती इस परेशानी के लिए असल में जिम्मेदार कौन है?
इसी तरह के कुछ चुभते हुए सवालों को शामिल करते हुए उत्तराखंड के जनकवि गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ने साल 2008 में ‘नदी बचाओ आन्दोलन’ के दौरान एक कविता लिखी थी. इस कविता को सुनने-पढ़ने के बाद ऐसा लगता है मानो आज घट रही घटनाओं की भविष्यवाणी जनकवि ‘गिरदा’ ने 14 साल पहले ही कर दी थी. पढ़िए उनकी कविता...
बोल व्यापारी तब क्या होगा ?
एक तरफ बर्बाद बस्तियां, एक तरफ हो तुम.
एक तरफ डूबती कश्तियां, एक तरफ हो तुम.
एक तरफ हैं सूखी नदियां, एक तरफ हो तुम.
एक तरफ है प्यासी दुनियां, एक तरफ हो तुम.
अजी वाह! क्या बात तुम्हारी, तुम तो पानी के व्यापारी,
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी, बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी,
सारा पानी चूस रहे हो, नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी, चलेगी कब तक ये मनमर्जी
जिस दिन डोलगी ये धरती, सर से निकलेगी सब मस्ती
महल-चौबारे बह जाएंगे, खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूंद-बूंद को तरसोगे जब, बोल व्यापारी तब क्या होगा ?
दिल्ली – देहरादून में बैठे योजनकारी तब क्या होगा?
आज भले ही मौज उड़ा लो, नदियों को प्यासा तड़पा लो
गंगा को कीचड़ कर डालो, लेकिन डोलेगी जब धरती
बोल व्यापारी तब क्या होगा?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी तब क्या होगा?
योजनकारी तब क्या होगा ?
नगद-उधारी तब क्या होगा ?
एक तरफ हैं सूखी नदियां एक तरफ हो तुम.
एक तरफ है प्यासी दुनियां एक तरफ हो तुम.
लीला सिंह बिष्ट