उत्तर प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में बसपा ने एक सीट अपने नाम कर लिया है, लेकिन पार्टी विधायकों की संख्या घट गई. बसपा प्रमुख मायावती ने बागी रुख अख्तियार करने वाले अपने सात विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. मायावती का विश्वास खोने वाले सात विधायकों में तीन मुस्लिम, दो पिछड़ा वर्ग, एक दलित और राजपूत विधायक शामिल हैं. बसपा के बहुजन के फॉर्मूले में दलित, पिछड़े और मुस्लिम ही आते हैं. ऐसे में तीनों ही वर्ग के विधायकों के बागी रुख अपनाने और सपा के साथ उनकी बढ़ती नजदीकियों से बसपा के सोशल इंजीनियरिंग के समीकरण को गहरा झटका लगा है.
मायावती ने गुरुवार को बागी रुख अपना वाले जिन विधायकों को निलंबित किया है, उसमें असलम राइनी (भिनगा-श्रावस्ती), असलम अली (धौलाना-हापुड़), मुजतबा सिद्दीकी (प्रतापपुर-इलाहाबाद), हाकिम लाल बिंद (हांडिया- प्रयागराज), हरगोविंद भार्गव (सिधौली-सीतापुर), सुषमा पटेल(मुंगरा बादशाहपुर) और वंदना सिंह (सगड़ी-आजमगढ़) शामिल हैं. बसपा विधायकों के इस बगावत का सपा को तात्कालिक तौर तो बड़ा फायदा होने नहीं जा रहा, लेकिन 2022 में होने वाले चुनाव के मद्देनजर इसे बड़े सियासी घटनाक्रम के रूप में देखा जा रहा है.
प्रतापपुर के बसपा विधायक मुज्तबा सिद्दीकी और हंडिया के हाकिम लाल बिंद प्रयागराज मंडल से आते हैं. सपा के पास पूरे मंडल में महज एक विधायक उज्जवल रमण सिंह है. ऐसे में बसपा के इन दोनों बागी विधायकों के जरिए सपा अपने राजनीतिक समीकरण को मजबूत करने की कवायद में है, क्योंकि इसमें एक मुस्लिम और एक अति पिछड़ा मल्लाह जाति से आते हैं. ऐसे ही जौनपुर से मुंगरा बादशाहपुर सीट से सुषमा पटेल हैं, जो कुर्मी समुदाय से हैं. जौनपुर में सपा के तीन विधायक हैं, जिनमें दो यादव और एक दलित हैं. ऐसे में सुषमा पटेल के बसपा से निष्कासन के बाद उनके सपा में जाने की संभावना है, क्योंकि सपा भी जौनपुर में अपने समीकरण को मजबूत करने के लिए गैर-यादव ओबीसी समाज को साधने की कवायद में है.
सुषमा पटेल ने aajtak.in से कहा कि उन्हें जनता ने चुना है और वह जनता की सेवा के लिए सदैव काम करती रहेंगी. किसी से मिलना-जुलना गुनाह नहीं है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से हमने औपचारिक मुलाकात की थी. बसपा अध्यक्ष मायावती ने हमारे खिलाफ जो भी कार्रवाई की है, वह स्वीकार्य है. पार्टी उनकी है, लिहाजा वह ऐसा कर सकती हैं. बस मलाल इतना है कि कार्रवाई से पहले उनका पक्ष भी जानना चाहिए था.
वहीं, हाकिम लाल बिंद ने कहा कि हमारी नाराजगी की वजह मायावती नहीं बल्कि पार्टी कोऑर्डिनेटर से है. मायावती से न तो हमें मिलने दिया जाता है और न ही पार्टी की बैठकों में हमारी बात सुनी जाती है. हमारी सीट से किसी दूसरे प्रत्याशी को तलाश की जा रही है. मायावती ने हमारा पक्ष जाने बगैर हमें पार्टी से निष्कासित कर दिया है. ऐसे में हमें जो राजनीतिक बेहतर विकल्प लगेगा वहां जाएंगे.
वहीं, श्रावस्ती से बसपा विधायक असलम राइनी काफी समय से पार्टी से नाराज चल रहे थे. पिछले साल पार्टी लाइन से हटकर विधानसभा के विशेष सत्र में शामिल हुए थे. राइनी कई बार मुख्यमंत्री योगी के कई निर्णयों की तारीफ भी कर चुके हैं और अब वो सपा के साथ अपनी नजदीकिया बढ़ा रहे हैं. ऐसे में मायावती ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है, जिसके बाद वो खुलकर सपा के साथ खड़े होने की बात कर रहे हैं. ऐसे ही पश्चिम यूपी के धौलाना से विधायक असलम अली चौधरी ने तो अखिलेश यादव से मिलने से एक दिन पहले ही अपनी पत्नी को सपा में एंट्री करा दी थी.
आजमगढ़ के सगड़ी सीट से विधायक वंदना सिंह का पुराना रिश्ता सपा से रहा है. वंदना के ससुर सपा से विधायक रह चुके हैं और अखिलेश के आजमगढ़ से सासंद चुने जाने के बाद अब उन्हें सपा में अपना सियासी भविष्य मजबूत नजर आ रहा है. हालांकि, अभी भी वंदना सिंह कह रही हैं कि उन्होंने हमेंशा पार्टी के हित में कार्य किया है और उनकी आस्था अभी बसपा के साथ है. वो कह रही हैं कि हमें तो यह पता भी नहीं है कि मुझें पार्टी से क्यों निकाला गया है जबकि पार्टी नेताओं से हमारी लगातार बात हो रही थी.
सिधौली से विधायक हरगोविंद भार्गव दलित समुदाय से आते हैं. सपा प्रमुख से मिलने वाले नेताओं में इनका भी नाम शामिल है. इनका कहना है कि बसपा सुप्रीमो मायावती हाथरस समेत कई मुद्दों पर उस तरह से मुखर होकर सामने नहीं आईं, जोकि उनकी पहचान है. यही वजह है कि वो ही नहीं बल्कि पार्टी के तमाम नेता अपने सियासी भविष्य के लिए नए राजनीतिक विकल्प की तलाश में हैं. वहीं, बीजेपी के साथ मायावती के खड़े होने को लेकर मुस्लिम विधायकों में असहजता नजर आने लगी. ऐसे में इन्हें बसपा के साथ रहते हुए मुस्लिम समुदाय वोट न मिलने की संभावना दिख रही है. इसीलिए ये नए सियासी ठिकाने की तलाश रहे हैं.
बता दें कि बसपा ने 2017 विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीती थीं, लेकिन एक के बाद एक विधायकों के बागी तेवर अपनाने से पार्टी का आंकड़ा इकाई के अंक में सिमट गया है. बसपा को पहला झटका मार्च 2018 के राज्यसभा चुनाव में लगा, जब उन्नाव से बसपा विधायक अनिल सिंह ने पार्टी लाइन से हटकर बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में मतदान कर दिया. इसके बाद दूसरा झटका अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट से विधायक रीतेश पांडेय के सांसद चुने जाने के बाद हुए उपचुनाव में बसपा से यह सीट सपा ने छीन लिया. पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय बसपा के ब्राह्मण चेहरा माने जाते रहे हैं, जिन्होंने हाल में बीजेपी का दामन थाम लिया है. सादाबाद सीट से उपाध्याय बसपा के विधायक हैं, जिनकी सदस्यता खत्म करने लिए भी सिफारिश की गई है.
कुबूल अहमद