कॉर्पोरेट्स अपने CSR फंड से पीएम केयर्स फंड में कर सकेंगे दान

हालांकि विपक्ष और NGO सेक्टर से जुड़े लोग इस कदम से खुश नहीं हैं. उन्हें लगता है कि कॉरपोरेट्स अपने CSR फंड्स को पीएम केयर्स फंड की ओर मोड़ना शुरू कर देंगे.

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आपात स्थिति में राहत देने के लिए बना पीएम केयर्स फंड (प्रधानमंत्री मोदी की फाइल फोटो) आपात स्थिति में राहत देने के लिए बना पीएम केयर्स फंड (प्रधानमंत्री मोदी की फाइल फोटो)

राहुल श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 27 मई 2020,
  • अपडेटेड 10:45 PM IST

  • पीएम केअर्स फंड को लाभार्थी के तौर पर जोड़ा गया
  • विपक्ष, NGO सेक्टर से जुड़े लोग इस कदम से खुश नहीं

प्रधानमंत्री के सिटीजंस असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन्स (CARES) फंड को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) फंड से धन दिया जा सकता है. भारत सरकार की गजट अधिसूचना के जरिए यह प्रावधान किया गया है. कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की ओर से जारी 26 मई 2020 [G.S.R. 313(E)] की अधिसूचना में कहा गया कि कंपनी अधिनियम, 2013 के सेक्शन 467 (उपधारा 1) से मिली शक्तियों का प्रयोग कर केंद्र सरकार ने एक्ट के शेड्यूल VII में आगे संशोधन किया है.

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इसमें आगे कहा गया है कि शेड्यूल VII , आइटम (viii) में ‘प्राइम मिनिस्टर्स नेशनल रिलीफ फंड’ शब्दों के बाद ‘या प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजंस असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन्स फंड’ शब्दों को जोड़ा जाएगा. ये अधिसूचना 28 मार्च 2020 से प्रभावी मानी जाएगी.

कौन कंपनियां CSR के दायरे में?

अब तक कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) इनके लिए अनिवार्य थी-

-500 करोड़ रुपये या उससे अधिक की कुल संपत्ति वाली कंपनियां, या

-1,000 करोड़ या उससे अधिक के टर्नओवर वाली कंपनियां, या

-5 करोड़ या उससे अधिक के शुद्ध मुनाफे वाली कंपनियां

किन किन कामों के लिए दिया जा सकता है CSR फंड?

कंपनियां CSR के तहत रखे फंड का इस्तेमाल सरकार की ओर से निर्धारित किए कार्यक्रमों की व्यापक श्रेणियों में अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कर सकती हैं. जैसे कि ---

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-अत्यधिक भूख और गरीबी का उन्मूलन

-शिक्षा का प्रचार

-लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और महिलाओं को सशक्त बनाना

-बाल मृत्यु दर को कम करना

-मातृ स्वास्थ्य में सुधार

-ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएन्सी वायरस, एक्वायर्ड इम्युन डेफिशिएन्सी सिंड्रोम, मलेरिया और अन्य बीमारियों से लड़ाई

-पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना

-रोजगार, व्यावसायिक कौशल, सामाजिक व्यापार परियोजनाओं को बढ़ाना

-सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए प्रधान मंत्री नेशनल रिलीफ फंड या केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा स्थापित किसी अन्य फंड में योगदान

-अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं और ऐसे अन्य मामलों के कल्याण के लिए राहत और धन जो निर्धारित हो सकते हैं

विवाद के आसार?

नई गजट अधिसूचना के जरिए सरकार ने CSR फंड्स पाने के लिए पीएम केअर्स फंड को लाभार्थी के तौर पर जोड़ा है.

इस कदम से विवाद के आसार हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नए कोरोना वायरस रिलीफ फंड बनाने और COVID 19 महामारी के फैलने से उत्पन्न संकट को कम करने के लिए पीएम रिलीफ फंड का उपयोग नहीं करने के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. शीर्ष कारोबारी और सेलेब्रिटीज नए डोनेशन के लिए बढ़ चढ़ कर आगे आए.

प्रवासियों की मदद जैसे कामों में होगा इस्तेमाल

CSR से जुड़ी अधिसूचना पर केंद्र में एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, ''COVID 19 के खिलाफ लड़ाई के लिए बड़ी राशि की जरूरत है. अगर कॉर्पोरेट्स पीएम केयर्स फंड में योगदान दे सकते हैं तो इस रकम का प्रवासियों की मदद जैसी तात्कालिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है."

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विपक्ष और NGO सेक्टर की आशंकाएं

हालांकि विपक्ष और NGO सेक्टर से जुड़े लोग इस कदम से खुश नहीं हैं. उन्हें लगता है कि कॉरपोरेट्स अपने CSR फंड्स को पीएम केयर्स फंड की ओर मोड़ना शुरू कर देंगे. ऐसे में गैर मुनाफे के आधार पर चलने वाले NGO जो पब्लिक सर्विस से जुड़े हैं और CSR पर निर्भर हैं, उन्हें वर्ष में आगे मदद नहीं मिलने की आशंका है.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'पुराने मौजूदा नियमों के मुताबिक CSR फंड पीएम नेशनल रिलीफ फंड में दान किए जा सकते हैं. यह पुराने फंड को कमजोर करने और जो पीएम मोदी की ओर से बनाया गया, उसे मजबूत करने का एक और तरीका है.”

उन्होंने आगे कहा, "बहुत से छोटे गैर-मुनाफाकारी संगठन जमीनी स्तर पर जनसेवा के बहुत अच्छे काम कर रहे हैं. वो लोगों की जरूरतों को अच्छी तरह जानते हैं. ये संगठन CSR प्रावधानों से अपने फंड प्राप्त कर रहे थे. नई अनुमति के साथ कॉर्पोरेट्स अपने फंड को पीएम केअर्स फंड की ओर मोड़ने का विकल्प चुनेंगे. इसका मतलब होगा पिरामिड के निचले स्तर पर संसाधन सूख जाएंगे और सरकार की ओर से संचालित फंड के पास धन की प्रचुरता होगी. ये देखा गया है कि दबाव वाले क्षेत्रों को लक्षित करते वक्त सरकार की क्षमता में जमीनी हकीकतों की जानकारी होने का अभाव है.”

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