नशा छुड़ाओ केंद्र पर बड़ी कार्रवाई... 25 लोगों की जगह ठूंसे गए थे 125 मरीज, पुलिस ने दबिश देकर किया रेस्क्यू

पंजाब के जालंधर में एक प्राइवेट नशा छुड़ाओं केंद्र की हकीकत तब सामने आई, जब प्रशासन ने रेड डालकर 102 लोगों को वहां से रिहा कराया. समरा पैलेस में बने इस अवैध डि-एडिक्शन सेंटर में मरीजों को अमानवीय हालात में रखा गया था. न इलाज, न खाना, बस मारपीट और मानसिक प्रताड़ना.

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नशा छुड़ाओ केंद्र पर पुलिस की रेड. (Screengrab) नशा छुड़ाओ केंद्र पर पुलिस की रेड. (Screengrab)

aajtak.in

  • जालंधर,
  • 25 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 7:15 AM IST

पंजाब में जालंधर जिले के समरावा गांव में स्थित समरा पैलेस के अंदर चल रहे एक अवैध नशा छुड़ाओ केंद्र पर प्रशासन ने बड़ी कार्रवाई की है. यहां डीसी हिमांशु अग्रवाल और तहसीलदार की अगुवाई में पुलिस ने छापेमारी कर इस प्राइवेट डि-एडिक्शन सेंटर से 102 मरीजों को रेस्क्यू किया. बताया गया कि यह सेंटर मान्यता प्राप्त नहीं था और यहां पर गंभीर अमानवीयता के साथ मरीजों को रखा जा रहा था.

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गढ़शंकर के रहने वाले इंद्रपाल ने बताया कि यह एक प्राइवेट सेंटर था, जहां सिर्फ 20 से 25 लोगों के रहने की व्यवस्था थी, लेकिन वहां 125 से अधिक मरीजों को ठूंसा गया था. इनमें से कोई आठ महीने से तो कोई दो साल से सेंटर में बंद था. मरीजों के मुताबिक, उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता था.

रेड के दौरान पुलिस को पता चला कि सेंटर में इलाज के नाम पर नशा छुड़ाने की कोई दवाई नहीं दी जाती थी. सेंटर का एमडी सुखविंदर सिंह सुखी है, जिस पर मारपीट और अमानवीय व्यवहार का आरोप लगा है. एक पीड़ित ने बताया कि अगर कोई मरीज ज्यादा या कम खाना खा लेता था, तो उसे दो दिन तक दीवार की ओर मुंह करके बैठने की सजा दी जाती थी. यहां मरीजों को सिर्फ दोपहर 12 से शाम 4 बजे तक ही सोने की अनुमति थी. जरा सी गलती पर उन्हें 5-6 कर्मचारी मिलकर पीटते थे.

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इस सेंटर में भर्ती मरीजों को परिजनों से मिलने की अनुमति नहीं दी जाती थी. जब भी परिजन मिलने आते, तो बाहर से ही कह दिया जाता था कि मरीज की हालत ठीक नहीं है और उन्हें वापस भेज दिया जाता था. सेंटर के कर्मचारियों पर आरोप है कि मरीजों से सफाई और अन्य काम करवाए जाते थे, जबकि इलाज के नाम पर कुछ नहीं किया जाता था.

15 से 30 हजार फीस, खर्च सिर्फ 2-3 हजार

रेड के दौरान कई चौंकाने वाले खुलासे हुए. एक मरीज ने बताया कि उनसे 15 हजार से लेकर 30 हजार रुपये तक महीना वसूला जाता था, लेकिन खर्च सिर्फ 2-3 हजार रुपये में ही होता था. न तो उन्हें भरपेट खाना दिया जाता था और न ही सुबह की चाय.

एक पीड़ित ने बताया कि उसके चाचा का बेटा दो महीने पहले इस सेंटर से लौटने के बाद नशे की ओवरडोज से मर गया था. इसके बावजूद सेंटर बंद नहीं किया गया. पीड़ितों में एक कनाडा से डिपोर्ट होकर आया युवक भी शामिल था, जिसे परिवार ने इस केंद्र में भर्ती करवाया था. उसका आरोप है कि यहां हर मरीज के साथ बेरहमी से मारपीट होती थी और उन्हें जबरदस्ती रखा जाता था.

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डीसी हिमांशु अग्रवाल और एसीपी नॉर्थ आतिश भाटिया ने मौके पर भारी पुलिस फोर्स के साथ सेंटर पर छापा मारा. सभी मरीजों को सिविल अस्पताल लाया गया, जहां डॉक्टरी जांच के बाद उन्हें परिजनों के सुपुर्द किया गया. पुलिस और प्रशासन ने सेंटर को सील कर आगे की जांच शुरू कर दी है.

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रिपोर्ट: देविंदर कुमार

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