बीजेपी एक समय सवर्णों की पार्टी मानी जाती थी, लेकिन समय के साथ काफी बदलाव हो चुका है. बीजेपी अब सिर्फ सवर्णों की ही नहीं बल्कि दलित और पिछड़ों को भी नुमाइंदगी देने वाली पार्टी भी बन गई है. बीजेपी के इस सोशल इंजीनियरिंग को अब और भी व्यापक रूप देने के लिए नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम समाज में पिछड़े माने जाने वाले पसमांदा मुसलमान को पार्टी से जोड़ने का 'मंत्र' हैदराबाद की बैठक में दिया था. मोदी के इस सियासी मंत्र को अमलीजामा पहनाने की कवायद शुक्रवार से शुरू हो रही है.
पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की पीएम नरेंद्र मोदी की अपील के बाद दिल्ली के गालिब अकादमी में शुक्रवार को शाम पांच बजे 'पसमांदा मुस्लिम स्नेह मिलन और सम्मान समारोह' अयोजित किया जा रहा है. दिल्ली बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रभारी और राष्ट्रवादी मुस्लिम पसमांदा के अध्यक्ष आतिफ रशीद ने कार्यक्रम कर रहे हैं, जिसमें बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के लक्ष्मण मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हो रहे हैं.
'पसमांदा मुस्लिम स्नेह मिलन और सम्मान समारोह' कार्यक्रम के जरिए पसमांदा मुस्लिम समुदाय के लोगों को बड़ा संदेश देने की कोशिश होगी कि बीजेपी उन्हें पार्टी से जोड़ने को लेकर बहुत गंभीर है. इसके अलावा उनको बीजेपी संगठन के साथ ही सरकार में भी नेतृत्व देना शुरू किया है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष से लेकर यूपी की योगी सरकार में पसमांदा मुस्लिमों की रहनुमाई करने वाले नेता भी शामिल हो रहे हैं. कार्यक्रम में बीजेपी के साथ पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने की रूपरेखा की जाएगी?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में मंत्रिमंडल के साथ ही प्रमुख पदों के माध्यम से आगे लाए गए पसमांदा समाज के लोगों को सम्मानित किया जाएगा, जिसमें प्रदेश सरकार मंत्री दानिश आजाद अंसारी, उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अशफाक सैफी, यूपी मदरसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष डा. इफ्तिखार अहमद जावेद और उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष चौधरी कैफुल वरा शामिल हैं. इसके अलावा देश के दस राज्यों से मुस्लिम पसमांदा इस कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं, जिसमें उन्हें सम्मानित किया जाएगा.
बीजेपी के साथ पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने की मुहिम की अगुवाई कर रहे आतिफ रशीद ने बताया कि देश में 80 फीसदी पसमांदा मुस्लिम हैं, जो पिछड़ी जाति के तहत आते हैं और अलग-अलग जातियों में बंटे हुए हैं. वहीं, 20 फीसदी उच्च जाति के मुस्लिम है. पसमांदा मुस्लिम सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी पिछड़े हुए हैं, जो तथाकथित सेक्युलर दल हैं, उन्होंने कभी भी पसमांदा मुस्लिमों को विकास के लिए कोई काम नहीं किया. न ही उन्हें राजनीतिक रूप से आगे लाए और न ही आर्थिक रूप से आगे बढ़ाया.
आतिफ रशीद ने कहा कि मुस्लिमों में पसमांदा समाज की तरफ पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया. पीएम नरेंद्र मोदी ने इन्हें अपने साथ जोड़ने को कहा है. हम पहले से पसमांदा समाज को जोड़ने और उनके मुद्दों को लेकर का काम कर रहे हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए 'पसमांदा मुस्लिम स्नेह मिलन और सम्मान समारोह' कार्यक्रम किया जा रहा है, जिसमें समाजिक उत्थान में पिछड़े अल्पसंख्यक समाज की भूमिका पर बात की जाएगी. समुदाय के सामने आने वाली बाधाओं और चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी.
आतिफ रशीद ने कहा कि पसमांदा मुस्लिमों को सियासी तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोड़ने की पहल की है और उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कवायद की जा रही. बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं कों कैसे पसमांदा मुस्लिमों को कैसे ज्यादा से ज्यादा लाभ दिलाया जाए. इस बार भी बात होगी. बीजेपी उन्हें सामाजिक, शैक्षणिक रूप से भी सक्षम बना रही है जबकि सेक्युलरों ने बीजेपी का डर दिखाकर सिर्फ उन्हें ठगने का काम किया है. उन्होंने कहा कि बीजेपी जिस तरह से पसमांदा मुस्लिमों को लेकर आगे बढ़ रही है, वो देश की सियाासत के लिए ये 'गेम चेंजर' साबित होगा.
बता दें कि बीजेपी मुस्लिमों को जोड़ने के लिए कई तरह के सियासी प्रयोग कर चुकी है, लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है. मुस्लिम समुदाय का वोट बैंक मोटे तौर पर बीजेपी से दूर ही रहा. इसके बावजूद पार्टी ने उन्हें पार्टी से जोड़ने की उम्मीद नहीं छोड़ी. ऐसे में बीजेपी ने जिस तरह से हिंदू वोटों में दलित और पिछड़ों को जोड़कर अपनी सोशल इंजीनियरिंग को मजबूत किया है, उसी तर्ज पर मुस्लिम को ओबीसी समुदाय को भी जोड़ने की दिशा में कदम बढ़ा है.
2022 में बीजेपी दोबारा यूपी की सत्ता पर काबिज हुई तो इस बार की सफलता में अहम बदलाव शामिल है. बीजेपी के इस बार की जीत में पसमांदा मुसलमानों के कुछ समर्थन भी शामिल है, जिससे पार्टी उत्साहित हैं. केंद्र और ज्यादातर राज्यों में दोनों ही जगह बीजेपी की सत्ता है, ऐसे में तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के रास्ते के पसमांदा समाज में पार्टी अपनी जगह बनाने की कोशिश कर सकती है. ऐसे में आतिफ रशीद ने बीजेपी के साथ पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने का बीढ़ा उठाया है.
दरअसल मुस्लिम समाज में पिछड़े और दलित वर्ग से आने वाले मुसलमानों को पसमांदा मुसलमान कहा जाता है. मुस्लिम समुदाय में इनकी संख्या करीब 80 प्रतिशत बताई जाती है. बाकी के 20 प्रतिशत में सैयद, शेख, पठान जैसे उच्च जाति के मुसलमान हैं. 20 फीसदी अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर ये मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है जबकि पसमांदा समाज सियासी तौर पर हाशिए पर ही रहा है.
पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने के लिए बीजेपी में आवाजें लगातार उठती रहीं. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष रहते हुए आतिफ रशीद ने पसमांदा मुस्लिमों के बीच बीजेपी का सियासी आधार बढ़ाने का काम शुरू कर दिया था. इसके पीछे एक वजह यह भी है कि आतिफ रशीद बीजेपी के छात्र राजनीति एबीवीपी से सियासत में आए हैं. बीजेपी के सियासी मिजाज और एजेंडा को भी वो बाखूबी समझते हैं, जिसे ध्यान में रखते हुए पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने का काम कर रहे हैं ताकि पार्टी के कोर वोटबैंक छिटक न सके.
बता दें कि यूपी में चुनावों से कहीं पहले बीजेपी में संगठन स्तर पर एक कमेटी बनी, जिसने प्रदेश में हर बूथ पर पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने के लिए रणनीति के तहत काम शुरू किया. बीजेपी ने पसमांदा मुसलमान माने जाने कहार, मल्लाह, कुम्हार, गुज्जर, गद्दी-घोसी, माली, तेली, दर्जी, नट, कुरैशी, धुनिया, मंसूरी, जुलाहा, राज मिस्त्री, मोची आदि समाज पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया. केंद्र और राज्य की सरकारी योजनाओं के माध्यम से भी इस समाज को टारगेट किया, जिसका उसे विधाानसभा चुनावों में लाभ मिला. 8 फीसदी मुस्लिमों ने बीजेपी को वोट किया है, लेकिन अब 2024 में उसे बढ़ाने के एजेंडे पर पार्टी काम कर रही है.
कुबूल अहमद / राम किंकर सिंह