सिद्धारमैया बनेंगे अमरिंदर या गहलोत की तरह बचा ले जाएंगे कुर्सी? शिवकुमार से चुनौती

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में अंदरूनी लड़ाई तेज हो गई है, जहां डीके शिवकुमार खुलकर ढाई-ढाई साल के कथित सत्ता-साझेदारी फॉर्मूले को लागू करने की मांग कर रहे हैं. सिद्धारमैया का ढाई साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद शिवकुमार दिल्ली में गांधी परिवार से मिलकर अपनी बात रखना चाहते हैं.

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कर्नाटक में कुर्सी की जंग तेज (Photo: ITG) कर्नाटक में कुर्सी की जंग तेज (Photo: ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:32 PM IST

कर्नाटक में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने की लड़ाई कांग्रेस में तेज हो गई है. डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार अब खुलकर मैदान में उतर गए हैं और उस फॉर्मूले की याद दिला रहे हैं, जिसके तहत ढाई साल पहले सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने थे. सिद्धारमैया ने फैसला कांग्रेस हाईकमान के ऊपर छोड़ रखा है, तो डीके शिवकुमार के सब्र का बांध टूट रहा है. 

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डीके शिवकुमार के समर्थक विधायकों ने तीन चरणों में दिल्ली आकर कांग्रेस नेतृत्व से मुलाकात कर सीएम के बदलाव करने की बात रखी. अब खुद डीके शिवकुमार गांधी परिवार से मिलकर अपनी बात रखना चाहते हैं. राहुल गांधी से मिलने का टाइम नहीं मिला तो डीके शिवकुमार ने सोनिया गांधी से मुलाकात का वक्त मांगा है. 

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच आरपार की लड़ाई छिड़ गई है. सिद्धारमैया पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का दम भर रहे हैं, तो शिवकुमार ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले की याद दिला रहे हैं. ऐसे में देखना होगा कि सिद्धारमैया पंजाब के सीएम रहे कैप्टन अमरिंदर की तरह बीच में कुर्सी छोड़ते हैं या फिर अशोक गहलोत की तरह अपनी कुर्सी बचाए रख पाते हैं? 

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सिद्धारमैया से आरपार के मूड में शिवकुमार

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कर्नाटक में कांग्रेस सीएम पद को लेकर लंबे समय से अंतर्कलह से जूझ रही है. मौजूदा सीएम सिद्दारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच सियासी टकराव खुलकर सामने आ गई है. शिवकुमार के समर्थक विधायकों ने दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात कर मुख्यमंत्री पद रोटेशन के लिए 2023 के 'सत्ता-साझाकरण' वादे को लागू का दबाव बनाया. इस बैकग्राउंड में मंगलवार को डीके शिवकुमार और सतीष जरकीहोली के बीच बैठक हुई, जिसका मुख्य केंद्र दोनों के बीच मतभेदों को सुलझाना था. 

सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार अपना ढाई साल का कार्यकाल 20 नवंबर को पूरा कर चुकी है. अब डीके शिवकुमार के समर्थक और विधायक अब मुख्यमंत्री को बदलने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए 18 मई 2023 के उस कथित समझौते की याद दिलाई जा रही है, जिसमें ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री बनने का फार्मूले पर समझौता हुआ था. डीके शिवकुमार इसी समझौते के तहत सीएम बनने के लिए खुलकर उतर गए हैं. पावर शेयरिंग के ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले को आधार बनाकर डीके शिवकुमार दिल्ली आ रहे हैं ताकि शीर्ष नेतृत्व के सामने अपनी बात रख सकें. 

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ढाई साल वाले फॉर्मूले की दिला रहे याद

2023 में कांग्रेस कर्नाटक की चुनावी जंग जीतकर सरकार बनाई थी, उस समय सीएम पद को लेकर डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया आमने-सामने आ गए थे. उस समय  सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, केसी वेणुगोपाल, रणदीप सुरजेवाला और सांसद डीके सुरेश के बीच लंबी बातचीत हुई थी. इस दौरान यह तय हुआ था कि ढाई-ढाई साल दोनों लोग सीएम रहेंगे. 

डीके शिवकुमार ने शुरुआती ढाई सालों की मांग की थी, लेकिन वरिष्ठ नेता होने का हवाला देकर सिद्धारमैया ने इनकार कर दिया था. ऐसे में पहले सिद्धारमैया ढाई साल सीएम रहेंगे और बचा हुआ ढाई साल का कार्यकाल शिवकुमार पूरा करेंगे.  इसी फॉर्मूले के तहत 2023 में सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने और डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम बने थे. सिद्धारमैया का मुख्यमंत्री के तौर पर ढाई साल का कार्यकाल 20 नवंबर को पूरा हो गया, लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं छोड़ी. ऐसे में डीके शिवकुमार अब अपनी लाबिंग शुरू कर दी. 

डीके शिवकुमार सियासी लॉबिंग में जुटे

डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने सियासी लॉबिंग शुरू कर दी है. दिल्ली में गांधी परिवार से मुलाकात करने से पहले डीके शिवकुमार और पीडब्ल्यूडी मंत्री सतीश जरकीहोली के बीच मंगलवार देर रात मुलाकात की. दोनों नेताओं ने इस मुलाकात के लिए अपने सभी निर्धारित कार्यक्रम रद्द कर दिए थे. जरकीहोली को सीएम सिद्धारमैया का करीबी माना जाता है. 

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पिछले दिनों सिद्धारमैया के बेटे ने एक बयान दिया था कि कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन होता है तो सीएम की कुर्सी जरकीहोली जैसे नेता को मिलनी चाहिए. ऐसे में शिवकुमार ने जरकीहोली के साथ मिलकर अपने मतभेदों को सुलझाने की कवायद की. साथ ही डीके शिवकुमार ने सतीश जरकीहोली को बताया कि उनके और मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बीच पार्टी के 5-6 सीनियर नेताओं की मौजूदगी में ढाईसाल बाद सत्ता सौंपने का एक समझौता हुआ था, लेकिन इस वादे का पालन नहीं किया गया.

डीके शिवकुमार इस रह से सिद्धारमैया के सबसे करीबी नेता जरकीहोली को अपने साथ मिलाने का दांव चल रहे हैं. शिवकुमार और जरकीहोली  2023 के चुनावों के दौरान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में एक साथ काम किया था. सूत्रों की मानें तो उन्होंने 2028, 2029 के लिए पार्टी के रोडमैप और सिद्धारमैया युग के बाद की स्थिति पर व्यापक बातचीत की, क्योंकि मुख्यमंत्री अपने चुनावी सफर के अंत के करीब माने जा रहे हैं. 

सिद्धारमैया को क्या अमरिंदर की तरह छोड़ेंगे कुर्सी 

सिद्धारमैया के खिलाफ डीके शिवकुमार ढाई साल तक चुप रहे, लेकिन अब खामोश नहीं बैठना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने अपने समर्थक विधायकों को दिल्ली भेजकर सियासी मिजाज समझा और अब खुद दिल्ली आ रहे हैं. डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने पिछले हफ्ते राहुल गांधी से संपर्क करने के कॉल की थी, लेकिन उनकी बात नहीं हो सकी. राहुल गांधी ने उन्हें व्हाट्सएप पर 'कृपया प्रतीक्षा करें, मैं आपको कॉल करूंगा' का जवाब दिया था.

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राहुल से बात नहीं होने के स्थिति में डीके शिवकुमार ने अब सोनिया गांधी से मिलने का समय मांगा है. माना जा रहा है कि 29 नवंबर को शिवकुमार दिल्ली आकर सोनिया गांधी और कांग्रेस नेतृत्व से मिलकर ढाई साल वाले फॉर्मूले की बात रख सकते हैं. 

बिहार चुनाव के बाद दिल्ली में थे दोनों नेता

बिहार चुनाव के नतीजे आने के दूसरे दिन सिद्दारमैया और शिवकुमार दोनों दिल्ली में थे. सिद्दारमैया ने राहुल गांधी से मुलाकात की भी. हालांकि, यह मुलाकात केवल 15 से 20 मिनट की थी. सिद्धारमैया ने कहा था कि मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर राहुल गांधी से चर्चा हुई. उसी के बाद शिवकुमार के समर्थक दिल्ली में आकर सीएम बदलने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है. ऐसे में कांग्रेस क्या पंजाब की तरह कर्नाटक में भी अपना सीएम बदलने का फैसला करेगी. 

कांग्रेस पिछले एक दो दशक में सिर्फ पंजाब में भी अपना मुख्यमंत्री बदलने में कामयाब रही थी. कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद से हटाने के लिए नवजोत सिद्धू ने खुला मोर्चा खोल रखा था. 2018 से अमरिंदर और सिद्धू के बीच सियासी वर्चस्व की जंग शुरू हो गई थी, जिसे लेकर चंडीगढ़ से दिल्ली तक कई दौर की बैठक हुई. हर बार एक ही बात मिलकर काम करिए, लेकिन पंजाब विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले सिंतबर 2021 को कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद से हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया था. 

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कर्नाटक में 2028 में विधानसभा चुनाव है, कांग्रेस में जिस तरह सियासी कलह मची हुई है, उसके चलते सीएम को बदलने की मांग तेज हो गई है. ऐसे में कांग्रेस हाईकमान क्या पंजाब की तरह कर्नाटक में भी सत्ता परिवर्तन का कदम उठा पाएगा, क्योंकि सिद्धारमैया की लोकप्रियता और सियासी पकड़ को देखते हुए हटाना आसान नहीं है. हालांकि, सूत्रों के मुताबिक सिद्धारमैया अब राहुल गांधी की बात सुनने को तैयार हैं, जिन्होंने उन्हें दो बार मुख्यमंत्री पद पर बिठाया. अगर राहुल बदलाव का निर्देश देते हैं, तो सिद्धारमैया उसका पालन करेंगे.

गहलोत की तरह सिद्धारमैया बचा पाएंगे कुर्सी

कर्नाटक में जिस तरह ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले की याद दिलाकर शिवकुमार समर्थक सिद्धारमैया से मुख्यमंत्री पद छोड़ने की बात कर रहे हैं. ऐसे ही ढाई साल के फॉर्मूला की बात राजस्थान और छत्तीसगढ़ में थी. 2018 में कांग्रेस राजस्थान की सत्ता में आई थी तो सीएम की कुर्सी को लेकर सचिन पायलट और अशोक गहलोत आमने-सामने आ गए थे. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच भी यही मामला था. 

कांग्रेस ने राजस्थान में गहलोत को सीएम और पायलट को डिप्टी सीएम बना दिया था, लेकिन ढाई साल बाद दोनों के बीच सियासी टकराव दिखा था. पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर में डेरा जमा दिया था, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व के दखल के बात बगावत टल गई थी. छत्तीसगढ़ में भी सियासी वर्चस्व की जंग चलती रही. कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान विधानसभा चुनाव से एक साल पहले गहलोत को हटाकर सचिन पायलट को सीएम बनाने का मन बना लिया था. 

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कांग्रेस हाईकमान ने इसे अमलीजामा पहनाने के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को जयपुर भेजा गया था. कांग्रेस के दोनों नेता कोई फैसला लेते, उससे पहले गहलोत के समर्थक विधायकों ने खुली चुनौती दे दी और विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचकर सामूहिक इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया था. गहलोत सियासी ताकत दिखाकर अपनी कुर्सी बचाए रखा और पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहे. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने बदलाव करने का कोई कदम नहीं उठाया था. 

गहलोत और सिद्धारमैया में क्या समानता?

अशोक गहलोत से किसी भी मायने में सिद्धारमैया कम नहीं है. गहलोत की तरह सिद्धारमैया भी ओबीसी समुदाय से आते हैं और कर्नाटक में उनकी अपनी सियासी पकड़ है. कर्नाटक में कांग्रेस के विधायकों में ज्यादा समर्थन सिद्धारमैया के साथ हैं. सिद्धारमैया कर्नाटक में सबसे ज्यादा लंबे समय तक सीएम रहने का रिकार्ड बनाना चाहते हैं, जिसके लिए लगातार कह रहे हैं कि अगला बजट भी वही पेश करेंगे. इतना ही नहीं उन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा करने का भी कई बार ऐलान कर चुके हैं. 

सिद्धारमैया ओबीसी चेहरा हैं तो डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं. सिद्धारमैया कांग्रेस की बदली सियासत और ओबीसी की पॉलिटिक्स पर फोकस देखते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पांच साल तक बने रहने का दावा कर रहे हैं. सीएम सिद्धारमैया इस बात को जानते हैं कि ओबीसी वोट की मजबूरी के चलते कांग्रेस का उन्हें हटाना आसान नहीं है. कर्नाटक के ओबीसी समुदाय पर उनकी पकड़ है और लोकप्रियता में भी पार्टी के तमाम नेताओं से आगे हैं. ऐसे में देखना होगा कि सिद्धारमैया भी गहलोत की तरह अपनी कुर्सी बचाए रख पाते हैं?
 

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