आज भी हम एक ऐसे सामाज का हिस्सा है जहां खुले में पीरियड्स पर बात नहीं होती. जहां इस पूरे विषय को टैबू बना रखा है. जहां पैड को दुकानदार अख़बार या काली पन्नी में ऐसे बाँध के देता हैं जैसे कोई आपत्तिजनक चीज हो. वहां बिहार की एक लड़की बड़ी उम्मीदों से एक महिला IAS ऑफिसर से पूछती है कि क्या सरकार उन्हें ये 20-30 रुपये की चीज़ नहीं दे सकती. क्या उसे उस महिला अफसर से ऐसे ही जवाब की उम्मीद करनी चाहिए थी? फिर कैसे सशक्त होगी बेटी और कैसे समृद्ध होगा बिहार?