UCC में आदिवासियों को छूट की सिफारिश, 19 लाख सुझाव... जानिए संसदीय समिति की बैठक में पक्ष-विपक्ष ने क्या क्या कहा?

संसदीय समिति की बैठक में लॉ कमीशन के अधिकारियों ने बताया कि 14 जून से आयोग ने UCC पर देशभर से सुझाव मांगे थे. अब तक 19 लाख सुझाव मिले हैं. 13 जुलाई तक लोग UCC पर अपने सुझाव भेज सकते हैं. संसदीय समिति की बैठक में कांग्रेस और डीएमके समेत ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने UCC के मुद्दे को लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए राय मांगने के समय पर सवाल उठाए.  इस बैठक में 31 में से 17 सदस्य शामिल हुए. 

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समान नागरिक संहिता पर देशभर में छिड़ी बहस समान नागरिक संहिता पर देशभर में छिड़ी बहस

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 04 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 2:47 PM IST

देशभर में समान नागरिक संहिता (UCC) पर बहस जारी है. इसी बीच कानून मंत्रालय की संसदीय समिति ने सोमवार को अहम बैठक बुलाई. बैठक में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों ने UCC पर अपनी अपनी बात रखी.  इस दौरान जहां संसदीय पैनल के अध्यक्ष और भाजपा सांसद सुशील मोदी ने पूर्वोत्तर समेत देशभर के आदिवासियों को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे से बाहर रखने की वकालत की. तो वहीं, विपक्षी दलों ने लॉ कमीशन द्वारा UCC पर मांगे गए सुझाव के समय पर सवाल उठाया. 

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दरअसल, लॉ कमीशन ने पिछले महीने ही समान नागरिक संहिता पर धार्मिक संगठनों और आम जनता से राय मांगी थी. सूत्रों के मुताबिक, संसदीय समिति की बैठक में कांग्रेस और डीएमके समेत ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने UCC के मुद्दे को लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए राय मांगने के समय पर सवाल उठाए.  इस बैठक में 31 में से 17 सदस्य शामिल हुए. 
 
शिवसेना सांसद संजय राउत ने इस मुद्दे पर चर्चा के समय पर सवाल उठाया, जबकि कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा और डीएमके सांसद पी विल्सन ने अलग-अलग लिखित बयान दिए, जिसमें कहा गया कि भावनात्मक मुद्दे पर नए सिरे से चर्चा करने की कोई जरूरत नहीं है. विवेक तन्खा ने लॉ कमीशन की पुरानी रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता की इस स्तर पर कोई जरूरत नहीं है. 

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मॉनसून सत्र में UCC पर बिल ला सकती है मोदी सरकार
 
वहीं, बीजेपी सांसद सुशील मोदी ने आदिवासियों को किसी भी प्रस्तावित UCC के दायरे से बाहर रखने की सिफारिश की और कहा कि सभी कानूनों में अपवाद हैं.  बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि केंद्रीय कानून कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में उनकी सहमति के बिना लागू नहीं होते हैं. बीजेपी के सांसद महेश जेठमलानी ने UCC लागू करने की वकालत की. उन्होंने संविधान सभा में हुई बहस का हवाला देते हुए कहा कि इसे हमेशा अनिवार्य माना गया था. माना जा रहा है कि मोदी सरकार 20 जुलाई से शुरू हो रहे मॉनसून सत्र में UCC पर बिल ला सकती है. 
 
लॉ कमीशन को मिले 19 लाख सुझाव 

संसदीय समिति की बैठक में लॉ कमीशन के अधिकारियों ने बताया कि 14 जून से आयोग ने UCC पर देशभर से सुझाव मांगे थे. अब तक 19 लाख सुझाव मिले हैं. 13 जुलाई तक लोग UCC पर अपने सुझाव भेज सकते हैं. 

क्या है UCC?

यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का मतलब है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून. अगर सिविल कोड लागू होता है तो विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होंगे. 

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समान नागरिक संहिता भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 का हिस्सा है. संविधान में इसे नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 44 में कहा गया है कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है.

बीजेपी के घोषणापत्र में भी शामिल था UCC

- UCC बीजेपी के घोषणापत्र में शामिल रहा है. पिछले दिनों पीएम मोदी ने भोपाल में एक रैली को संबोधित करते हुए UCC को देश के लिए जरूरी बताया था. पीएम मोदी के बयान के बाद इस मुद्दे पर सियासी घमासान छिड़ गया. इस मुद्दे पर सियासी दल भी दो गुटों में बंटते नजर आ रहे हैं. जहां दिल्ली-पंजाब की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी, शिवसेना (उद्धव गुट)  ने इसे समर्थन देने का ऐलान किया है. तो वहीं, कांग्रेस, डीएमके, टीएमसी, राजद, जदयू समेत तमाम विपक्षी दल मुखालफत पर उतर आए हैं. जबकि शरद पवार की एनसीपी ने इस मुद्दे पर न्यूट्रल रहने का ऐलान किया है. 

- उधर, AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करते हुए कहा, 'भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं. इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं. शायद भारत के प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 29 के बारे में नहीं पता. क्या आप UCC के नाम पर देश से उसकी बहुलता और विविधता को छीन लेंगे?'

 

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