बुल्डोजर चलाने वालों पर अब कोर्ट का 'हंटर', SC ने कहा- पीड़ित को 25 लाख का मुआवजा दे UP सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने इस अवैध विध्वंस के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया. बेंच ने सुनवाई के दौरान अधिकारियों के आचरण पर घोर नाराजगी और असंतोष जताया. उनकी करतूत को मनमाना बताया.

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 10:00 AM IST

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के महाराजगंज में हाईवे के किनारे बने एक घर को बिना किसी तय प्रक्रिया का पालन किए बुल्डोजर से जमींदोज किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने राज्य सरकार के अधिकारियों पर सड़क चौड़ीकरण के नाम पर अवैध तरीके से मकान ध्वस्त करने के आरोप पर फौरन जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ विभागीय और प्रशासनिक के साथ कानूनी कार्रवाई करने को कहा है.

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चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने 2020 में भेजी गई चिट्ठी पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई की. पत्र याचिका मनोज टीबड़ेवाल ने भेजी थी, जिनका सूबे के जिला महाराजगंज में स्थित मकान 2019 में ध्वस्त कर दिया गया था.

याचिका में क्या था?

मनोज की पत्र याचिका के मुताबिक, नेशनल हाईवे ऑथोरिटी ऑफ इंडिया और जिला प्रशासन ने बिना किसी नोटिस के उनके घर को पौने चार मीटर यानी 3.7 मीटर का हिस्सा हाईवे की जमीन बताते हुए रंपीली लाइन खींच दी. याचिकाकर्ता ने उतना हिस्सा खुद ही ध्वस्त करा दिया लेकिन डेढ़ घंटे के अंदर पुलिस और प्रशासन ने अपनी निगरानी में सिर्फ मुनादी की औपचारिकता कर बुल्डोजर से पूरा घर ध्वस्त करवा दिया. घरवालों  को सामान तो क्या खुद घर से निकलने का मौका नहीं दिया.

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कोर्ट ने इस अवैध विध्वंस के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया. बेंच ने सुनवाई के दौरान अधिकारियों के आचरण पर घोर नाराजगी और असंतोष जताया. उनकी करतूत को मनमाना बताया.

राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण किया था. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप कह रहे हैं कि उसने 3.7 वर्ग मीटर का अतिक्रमण किया था, हम मान लेते हैं. हालांकि, हम इसे प्रमाण पत्र नहीं दे रहे हैं लेकिन आप लोगों के घरों को इस तरह पूरा कैसे तोड़ सकते हैं? किसी के घर में घुसकर बिना नोटिस के उसे गिरा देना गैर-कानूनी है.

'यह पूरी तरह मनमानी...'

सीजेआई ने यह भी कहा कि कोई नोटिस नहीं दिया गया और किसी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. यह पूरी तरह से मनमानी है. यहां प्रक्रिया का पालन कहां किया गया? हमारे पास हलफनामा है, जो कहता है कि कोई नोटिस जारी नहीं किया गया. आप केवल साइट पर गए और लोगों को लाउडस्पीकर के जरिए ध्वस्तीकरण की जानकारी दी.

सुनवाई के दौरान बेंच को बताया गया कि सिर्फ यही नहीं आसपास के 123 अन्य निर्माण भी ध्वस्त कर दिए गए. वहां घर के निवासियों को केवल सार्वजनिक ऐलानों के जरिए सूचना दी गई. जस्टिस पारदीवाला ने टिप्पणी की कि आप बुलडोजर लेकर आ सकते हैं और रातोंरात घर नहीं तोड़ सकते. आप परिवार को खाली करने का वक्त नहीं देते, घर के सामान का क्या? प्रक्रिया का पालन होना चाहिए.

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कोर्ट ने यह भी आश्चर्य व्यक्त किया कि कथित अतिक्रमण से ज्यादा के क्षेत्र में भी विध्वंस क्यों किया गया? यह साफ है कि विध्वंस पूरी तरह से मनमाना था और कानून की अनुमति के बिना किया गया.

यह भी पढ़ें: 'ये मनमानी और अराजकता...', बिना नोटिस मकान तोड़ने पर सुप्रीम कोर्ट की यूपी सरकार को फटकार

याचिकाकर्ता का आरोप था कि यह विध्वंस अधिकारियों के कदाचार पर स्थानीय समाचार पत्र में रिपोर्ट प्रकाशित करने के कारण प्रतिशोध स्वरूप किया गया. इस आरोप पर खंडपीठ ने कोई टिप्पणी नहीं की.

कोर्ट ने राज्य को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है. यह मुआवजा अंतरिम प्रकृति का है और याचिकाकर्ता द्वारा अन्य कानूनी कार्रवाई करने में बाधक नहीं होगा.
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को सभी अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ जांच करने और अवैध विध्वंस के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का भी निर्देश दिया. कोर्ट ने साफ किया कि राज्य भी अवैध कृत्यों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने के लिए आजाद है. इन निर्देशों का पालन एक महीने के अंदर करना होगा.
 

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