दक्षिण अफ्रीका भारत को आने वाले समय में दर्जनों अफ्रीकी चीते देगा. अफ्रीका ने इसके लिए भारत के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है. ये समझौता आठ से दस साल के लिए है. हर साल 12 चीते भारत भेजे जाएंगे. फिलहाल फरवरी में भारत को 12 चीते मिलने वाले हैं. पर्यावरण विभाग ने गुरुवार को यह जानकारी दी. लगभग 70 साल पहले भारत जैसे देश से चीता गायब हो गए थे. मालूम हो कि पिछले साल नामीबिया ने भारत को चीते दिए थे.
भारत लाए गए थे 8 चीते
सितंबर 2022 में नामीबिया से 5,000 मील (8,000 किमी) का सफर तय कर आठ चीते भारत में आए थे. इन्हें भारत के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया था, सभी चीते एक विशेष तरह के फ्लाइट से लाए गए थे. पहली बार जंगली चीतों को एक द्वीप से दूसरे द्वीप भेजा गया. दक्षिण अफ्रीका के पर्यावरण विभाग ने एक बयान में कहा कि शुरुआत में फरवरी 2023 में 12 चीतों का जत्था दक्षिण अफ्रीका से भारत लाया जाएगा. ये सभी नामीबिया से लाए गए चीतों के साथ रहेंगे. विभाग ने कहा कि अगले आठ से दस वर्षों में हर साल 12 चीते भारत को भेजे जाएंगे.
फरवरी से खुले जंगल में छोड़ दिए जाएंगे चीते
17 सितंबर को नामीबिया से लाकर श्योपुर के कूनो नेशनल पार्क में बसाए गए चीतों को फरवरी में खुले जंगल में छोड़ दिया जाएगा. पहले ही सभी चीते छोटे से बड़े बाड़े में शिफ्ट किए जा चुके हैं. सभी 8 चीते जिनमें 3 नर और 5 मादा हैं. पार्क प्रबंधन चीता टॉस्क फोर्स और केंद्र सरकार के निर्देशन में बड़े बाड़े में रह रहे चीतों को खुले में छोड़ने के साथ ही पर्यटकों के लिहाज से पार्क में तैयारियां अंतिम चरण में हैं.
एक चीता बीमार
कूनो नेशनल पार्क के डीएफओ प्रकाश कुमार वर्मा ने बताया कि नामीबिया से लाए गए आठ चीतों में से एक अस्वस्थ है. उसके किडनी में इन्फेक्शन पाया गया है. रूटीन निगरानी के दौरान मादा चीता में थकान और कमजोरी के लक्षण दिखाई दिए. उसे अलग शिफ्ट कर दिया गया है.
नामीबिया से लाए गए चीतों को चरणबद्ध तरीके से छोटे बाड़े से 500 हेक्टयर के बड़े बाड़े में रिलीज किया जा चुका है. हालांकि, चीतों को बड़े बाड़े से खुले जंगल में रिलीज करने की तारीख तय नहीं है. लेकिन फरवरी माह में चीतों को खुले में छोड़ने योजना के मद्देनजर सभी तरह की तैयारियां की जा रही हैं. साथ ही टूरिज्म की शुरुआत को लेकर भी इंतजाम किए जा रहे हैं. कूनो पार्क का पिछले सीजन से बंद टिकटोली गेट अब पर्यटकों के लिए खुल जाएगा.
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