कांग्रेस ने भले ही कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल की हो. लेकिन अभी भी सरकार गठन को लेकर पार्टी को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना है. पार्टी के सामने सबसे बड़ी बाधा अगले मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के चुनाव की थी, जिसे पार कर लिया गया है. लेकिन कर्नाटक मंत्रिमंडल का गठन एक और सबसे बड़ी समस्या है.
कर्नाटक मंत्रिमंडल का स्वरूप कैसा होगा. अभी इसके कयास ही लग रहे हैं. कहा जा रहा है कि कुछ मंत्री शनिवार को सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के साथ शपथ ले सकते हैं जबकि अन्य कुछ दिनों बाद शपथ लेंगे. कांग्रेस के चुने गए 135 विधायकों और पार्टी के एमएलसी के प्रोफाइल पर गौर करें तो ऐसे 60 नेता हैं, जो मंत्रिमंडल में शामिल होना चाहते हैं. इनमें से 40 से अधिक विधायक और चार से पांच एमएलसी पहले भी कांग्रेस और बीजेपी सरकारों में मंत्री रह चुके हैं.
फिलहाल मंत्रालय में सिर्फ 32 पद उपलब्ध हैं. लेकिन संविधान के हिसाब से कर्नाटक में मंत्रिमंडल की अधिकतम संख्या 34 हो सकती है. ऐसे में जो पहले भी मंत्रिमंडल का हिस्सा रह चुके हैं, उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करना मुश्किल होगा. इसके अलावा ऐसे कई नए लोग हैं, जो मंत्रालय चाहते हैं. मुख्यमंत्री और पार्टी नेतृत्व अनुभवी विधायकों और नए बने विधायकों के बीच संतुलन बैठाना चाहती है.
पूर्व के अनुभव और मौजूदा रुझानों से संकेत मिलते हैं कि ऐसे पांच कारक हैं, जिनसे मंत्रिमंडल का हिस्सा बनने की इच्छा रखने वाले विधायकों की योग्यता मापी जाएगी.
मंत्रिमंडल गठन के जरुरी पांच कारक
1) मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले मंत्रियों की योग्यता को मापने के लिए पार्टी पांच कारकों को ध्यान में रखेगी. इनमें से पहला कारक यह होगा कि ऐसे नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह दी जाए, जो पार्टी के वादों को पूरा करने में मदद करें और एक बेहतरीन सरकार चलाने में योगदान दे सकें.
2) मंत्रिमंडल गठन में दूसरा महत्वपूर्ण कारक क्षेत्रीय संतुलना को साधना है. हाल के समय में कित्तूर कर्नाटक और बेंगलुरु सिटी के अलावा पुराने मैसूर क्षेत्र से चुनकर विधानसभा पहुंचने वाले विधायकों की मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी अधिक रही है. कल्याण कर्नाटक और मध्य कर्नाटक के विधायकों को भी तटीय कर्नाटक से चुनकर आए विधायकों की तुलना में मंत्रिमंडल में पर्याप्त जगह मिलने की उम्मीद है. ऐसे कुछ जिले हैं, जिनमें कांग्रेस ने बेहतरीन काम किया है और ऐसी उम्मीद है कि इन जिलों से बड़ी संख्या में लोगों को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी. ऐसे भी कई जिले हैं, जहां पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के अनुरूप नहीं रहा. लेकिन अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनावों की वजह से इन क्षेत्रों से भी विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है.
3) कांग्रेस का पूरा फोकस रह सकता है कि मंत्रिमंडल में सही जाति संतुलन को भी साधने की कोशिश की जाए. मंत्रिमंडल में वर्चस्वशाली जातियों लिंगायत और वोक्कालिंग दोनों को ही पर्याप्त जगह दी जा सकती है. चुनाव में अनुसूचित जातियों ने बड़ी संख्या में कांग्रेस का समर्थन किया. इन जातियों के नेता चाहते हैं कि मंत्रालयों के बंटवारे में उन्हें सही जगह मिले. इन जाति समूहों से जुड़े नेताओं को मंत्रालय में वरिष्ठ पद मिलने की इच्छा है. कांग्रेस ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित ज्यादातर सीटों पर जीत दर्ज की है. कांग्रेस पार्टी किसी भी रूप में जनता तक सही संदेश देना चाहती है.
4) चौथा कारक वरिष्ठ मंत्रियों के साथ नए चेहरों को जगह देकर संतुलन बैठाना होगा. यह कांग्रेस पार्टी की असल अग्निपरीक्षा होगी क्योंकि पार्टी के एक चौथाई विधायक पूर्व में भी मंत्री रह चुके हैं. इनमें से किन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी. यह वाकई चुनौतीपूर्ण काम होगा. मंत्रिमंडल में किन-किन नए चेहरों को जगह दी जाएगी. इसका चुनाव करना भी कठिन होगा. सिर्फ पुरुष ही नहीं महिला दावेदारों को भी मंत्रिमंडल में जगह देना एक अलग चुनौती होगी.
5) कांग्रेस कई बार पार्टी के भीतर गुटबाजी से परेशान रही है. ऐसे में पार्टी के सामने अलग-अलग गुटों के प्रतिनिधित्व को मंत्रिमंडल में शामिल करने की अग्निपरीक्षा भी रहेगी. इन धड़ों के नेता यकीनन मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम पर दबाव बनाएंगे कि उनके नेताों को मंत्रिमंडल में जगह मिले.
पार्टी के सामने एक और बड़ी समस्या विभागों के बंटवारे की होगी. किन्हें क्या-क्या विभाग मिलेगा, यह तय करना भी आसान नहीं होगा. लेकिन इन पांच कारकों की मदद से विभागों के बंटवारे में मदद मिल सकती है.
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