सफेद स्पोर्ट्स शूज, हाथ में बंधी घड़ी... राजीव गांधी की आखिरी रैली और धमाके की कहानी, महिला पत्रकार की जुबानी

श्रीपेरंबदुर में राजीव गांधी की चुनावी सभा को लेकर लोगों में एक तरह का क्रेज था. उनकी एक झलक पाने के लिए सड़कों पर लोगों का भारी भीड़ उमड़ी थी. उन के स्वागत में आतिशबाजी हो रही थीं. जब-जब राजीव गांधी की कार की स्पीड कम होती,  लोग कार के पास आने की कोशिश करते और राजीव गांधी की कार की खुली खिड़की से उनके गालों को छूने की कोशिश करते.

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राजीव गांधी हत्याकांड राजीव गांधी हत्याकांड

Ritu Tomar

  • नई दिल्ली,
  • 21 मई 2024,
  • अपडेटेड 2:35 PM IST

21 मई 1991...रात 10.21 बजे...तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर में एक चुनावी सभा में जोरदार धमाका हुआ. धमाका ऐसा कि चारों तरफ चीख-पुकार मच गई. धुएं के गुबार के बीच क्षत-विक्षत शव बिखरे नजर आ रहे थे. इस धमाके में 16 लोगों की मौत हुई जबकि कई गंभीर रूप से घायल हुए. घायलों को अस्पताल ले जाने का सिलसिला शुरू हुआ, तो तमिलनाडु के तत्कालीन राज्यपाल भीष्म नारायण सिंह भी अस्पताल पहुंचे. उन्होंने धमाके के बारे में पूछते हुए कहा कि कोई वीआईपी भी मारा गया है क्या? इस पर जवाब आया हां, देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी धमाके में मारे गए हैं. 

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राजीव गांधी की हत्या की साजिश श्रीलंका के विद्रोही संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) ने रची थी. यहां फ्लैशबैक में इस घटना पर गौर करना जरूरी है. 1991 चुनावी साल था और राजीव की अगुवाई में कांग्रेस एक बार फिर केंद्र की सत्ता में आने की पूरी जोरआजमाइश कर रही थी. राजीव को पूरा यकीन था कि चुनाव जीतकर वह एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. धुआंधार प्रचार में व्यस्त राजीव गांधी का अगला पड़ाव तमिलनाडु था. इससे पहले वह आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में प्रचार की कमान संभाल चुके थे. 

राजीव गांधी 21 मई की रात 8.20 बजे खुद विमान उड़ाकर विशाखापट्टनम से चेन्नई पहुंचे थे. वह चेन्नई एयरपोर्ट से एक सफेद एंबेसेडर कार में बैठकर श्रीपेरंबदुर के लिए रवाना हो गए. इस दौरान उनके साथ तमिलनाडु के कांग्रेसी नेता जीके मूपनार, जयंती नटराजन और मार्गाथम चंद्रशेखर भी थे. उनकी कार में गल्फ न्यूज की पत्रकार नीना गोपाल भी थीं. वह राजीव गांधी का इंटरव्यू करने वाली आखिरी पत्रकार थीं. गाड़ियों का काफिला तेजी से श्रीपेरंबदुर की तरफ जा रहा था. 

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श्रीपेरंबदुर में राजीव गांधी की चुनावी सभा को लेकर लोगों में एक तरह का क्रेज था. उनकी एक झलक पाने के लिए सड़कों पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ी थी. उन के स्वागत में आतिशबाजी हो रही थीं. जब-जब राजीव गांधी की कार की स्पीड कम होती,  लोग कार के पास आने की कोशिश करते और राजीव गांधी की कार की खुली खिड़की से उनके गालों को छूने की कोशिश करते. वह रात 10.10 बजे श्रीपेरंबदुर पहुंच गए. 

राजीव गांधी की सुरक्षा शुरुआत से ही चर्चा का विषय थी. तत्कालीन सरकार ने राजीव की Z सिक्योरिटी वापस ले ली थी और यहां श्रीपेरंबदुर में भी उनकी सुरक्षा ना के बराबर थी. 

कैसा था चुनावी सभा स्थल का हाल?

श्रीपेरंबदुर में जिस चुनावी सभा को राजीव गांधी संबोधित करने वाले थे. वहां की सुरक्षा हैरान करने वाली थी. चुनावी सभा स्थल पर वीआईपी एरिया और दर्शक दीर्घा के बीच बिल्कुल भी दूरी नहीं थी. ये एक तरह का खुला ग्राउंड था, जहां बांस की बैरिकेडिंग की गई थी. लाइट की व्यवस्था बेहद खराब थी. स्टेडियम का अधिकतर हिस्सा अंधेरे में डूबा हुआ था. चुनावी सभा स्थल की तैयारियों को लेकर राजीव गांधी ने चुटकी लेते हुए कहा कि यहां इतनी कम रोशनी क्यों है? ये तो चुनावी रैली किसी भी लिहाज से नहीं लग रही. 

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घड़ी की सुइयां और 10.21 बजे...

जैसे ही राजीव गांधी चुनावी सभास्थल पहुंचे. लोगों के बीच उनसे मिलकर हाथ मिलाने की होड़ सी लगने लगी. वह रेड कारपेट से होते हुए मंच पर पहुंचे. यहीं से उन्हें भाषण देना था. इस बीच सुरक्षा व्यवस्था को धत्ता बताते हुए लोग मंच पर पहुंचने लगे. वहां मुस्तैद सिक्योरिटी ने लोगों को रोकने की कोशिश की, लेकिन राजीव गांधी ने ये कहते हुए उन्हें रोक दिया कि सबको पास आने का मौका मिलना चाहिए. इसी भीड़ में लिट्टे की सुसाइड बॉम्बर धनु भी थी. धनु के हाथ में चंदन की माला थी और उसने आरडीएक्स से लैस वेस्ट पहन रखी थी. 

राजीव गांधी के साथ मंच पर ही जयंती नटराजन भी थीं. वह राजीव से मिलने आ रहे लोगों की बातें तमिल से अंग्रेजी में अनुवाद कर उन्हें बता रही थीं. तभी अचानक राजीव ने जयंती से कुछ कहा. शोर-शराबे के बीच जयंती समझ ही नहीं पाईं कि राजीव ने उनसे क्या कहा. वह सिर्फ इतना ही सुन पाई कि राजीव उनसे वहां से जाने को कह रहे हैं. जयंती को लगा कि राजीव उनसे उन दो विदेशी पत्रकारों को लाने को कह रहे हैं, जो चुनाव प्रचार को कवर करने पहुंचे थे. जयंती मंच से उतरी ही थी कि अचानक जोरदार धमाका हुआ. वह जमीन पर जा गिरीं. इससे पहले वह कुछ समझ पातीं, हर तरफ धुआं ही धुआं था. कुछ देर पहले तक दिखाई दे रही खुशी अब चीख-पुकार में बदल चुकी थी. 

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जिस समय ब्लास्ट हुआ, उस समय गल्फ न्यूज की वरिष्ठ पत्रकार नीना गोपाल भी वहीं पर मौजूद थीं. वह राजीव गांधी के मीडिया सलाहकार सुमन दुबे से बातचीत कर रही थीं. जैसे ही ब्लास्ट हुआ, नीना ने कहा कि ये कैसी आतिशबाजी है...लेकिन अगले ही पल उनके मुंह से निकला कि अरे, नहीं..नहीं ये तो बम ब्लास्ट है. नीना बताती हैं कि उनके सामने जितने भी लोग थे, सब उस बम की चपेट में आ गए थे. जमीन पर लाशें बिछी थीं. कई शव जलकर काले पड़ गए थे. उनकी तरफ देखा भी नहीं जा रहा था. कई शवों के शरीर से धड़ गायब था, कुछ के सिर या पैर नहीं थे. नीना ने सफेद रंग की साड़ी पहनी थी, जो मांस के लोथड़ों और खून से सन गई थी. ये दोजख के किसी नजारे जैसा था. क्षत-विक्षत शवों के बीच उन्हें सफेद रंग के लोटो ब्रांड के जूते दिखाई दिए. ये जूते राजीव गांधी के थे, जिन पर एक खरोंच तक नहीं आई थी. धुआं छटने के साथ ही जैसे ही राजीव गांधी की तलाश शुरू की गई. उनके शरीर का एक हिस्सा जमीन पर औंधे मुंह पड़ा नजर आया. हाथ पर गुच्ची की घड़ी बंधी हुई थी. किसी तरह से जयंती, मूपनार और कुछ अन्य लोगों ने राजीव गांधी को अस्पताल पहुंचाया. 

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इतना हैंडसम आदमी और....

जब राजीव गांधी को अस्पताल पहुंचाया गया तो वहां मौके पर मौजूद डॉक्टर ने जयंती नटराजन से पूछा कि आप ये क्या लेकर आई हैं? वह (राजीव गांधी) बहुत ही हैंडसम शख्स थे और आप इस शव को लेकर यहां आई हैं और इसे राजीव गांधी बता रही हैं. इसकी पुष्टि कर दी गई थी कि राजीव गांधी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया है. उसी रात तीन बजे उनके शव को मोर्चरी ले जाया गया. इस घटना में राजीव गांधी और धनु समेत 16 लोगों की मौत हुई थी. 

हत्या से कुछ घंटे पहले जब राजीव गांधी से पूछा गया था कि क्या आपको लगता हैं कि आपकी जिंदगी खतरे में हैं? इस पर उन्होंने कहा था कि आपने कभी नोटिस किया है, जब भी दक्षिण एशिया का कोई नेता सत्ता में आने की कोशिश करता है या वो खुद के लिए या अपने देश के लिए कुछ हासिल करने वाला होता है, उस पर या तो हमला कर दिया जाता है या उसकी हत्या कर दी जाती है. आप मिसेज (इंदिरा) गांधी को देखिए, शेख मुजीबुर्रहमान को देखिए, जुल्फिकार अली भुट्टो या फिर जिया उल हक को देखिए. सच्चाई आपके सामने है.

(नीना गोपाल की किताब The Assassination of Rajiv Gandhi और नीरजा चौधरी की किताब How Prime Ministers Decide से साभार)

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